Oeko-Tex प्रमाणन ने एरी रेशम को दिलाया वैश्विक पहचान
भारत के सतत वस्त्र क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि में, पूर्वोत्तर राज्यों में उत्पादित एरी रेशम को जर्मनी स्थित Oeko-Tex प्रमाणन प्राप्त हुआ है। यह वैश्विक मान्यता North Eastern Handicrafts and Handlooms Development Corporation Ltd. (NEHHDC) को दी गई, जो उत्तर–पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय (DoNER) के अधीन कार्य करता है। यह प्रमाणन दर्शाता है कि एरी रेशम पर्यावरणीय सुरक्षा और विषरहितता मानकों पर खरा उतरता है, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय हरित बाजारों में मांग और अधिक बढ़ेगी।
प्रमाणन का महत्व
Oeko-Tex टैग उपभोक्ताओं को आश्वस्त करता है कि कपड़ा हानिकारक रसायनों से मुक्त और मानव उपयोग के लिए सुरक्षित है। यह प्रमाणन न केवल भारत की नैतिक और पर्यावरण–अनुकूल कपड़ा उत्पादन प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है, बल्कि इसे उन वैश्विक बाजारों में भी मजबूती देता है, जहाँ इको–फ्रेंडली उत्पादों को प्राथमिकता दी जाती है।
सरकार की पहल: सिल्क समग्र-2 योजना
सिल्क समग्र-2 (2021–2026) योजना के तहत केंद्र सरकार ने एरी रेशम को बढ़ावा दिया है। असम स्थित सेंट्रल मोगा एंड एरी रिसर्च इंस्टीट्यूट और मोगा एरी सिल्कवर्म सीड संगठन जैसी संस्थाएं बीज उत्पादन, अनुसंधान और प्रशिक्षण में सक्रिय हैं। इन प्रयासों से उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार लाया जा रहा है।
क्षेत्रीय चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
हालांकि एरी रेशम को अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन मिल चुका है, फिर भी यह मुख्यतः असंगठित क्षेत्र में बना रहता है। अनेक बुनकर अभी भी पारंपरिक तकनीकों पर निर्भर हैं, और प्रमाणन मानकों की जागरूकता कम है। लेकिन, सरकारी हस्तक्षेप और तकनीकी उन्नयन के माध्यम से भारत जल्द ही एरी रेशम को एक विश्वसनीय और ब्रांडेड हरित वस्त्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | जानकारी |
प्रदान किया गया प्रमाणन | Oeko-Tex (जर्मनी) |
प्रमाणित संस्था | NEHHDC (उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के अंतर्गत) |
प्रमाणित उत्पाद | एरी रेशम |
प्रमाणन का महत्व | विषरहित, टिकाऊ, हरित निर्यात योग्य |
सहायक योजना | सिल्क समग्र-2 (2021–2026) |
प्रमुख संस्थान | सेंट्रल मोगा एंड एरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, मोगा एरी सिल्कवर्म सीड संगठन |
निर्यात क्षमता | सततता पर केंद्रित प्रीमियम वैश्विक बाजारों में प्रवेश |
मुख्य चुनौतियाँ | असंगठित ढांचा, पारंपरिक पद्धतियाँ, कम जागरूकता |
भविष्य की दिशा | आधुनिकीकरण, कौशल विकास, वैश्विक ब्रांडिंग |