भारत में यूपीआई का उदय
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) भारत में डिजिटल भुगतान का प्रमुख साधन बन गया है। 2025 में यूपीआई लेनदेन ₹260 लाख करोड़ वार्षिक स्तर पार कर गए, जो खुदरा भुगतान का 28% है। शुरुआती तौर पर पीयर-टू-पीयर (P2P) के लिए शुरू हुआ यूपीआई अब व्यापारी भुगतान (P2M) को भी कवर करता है। वित्त वर्ष 2025 के आंकड़ों के अनुसार, यूपीआई में 70% P2P और 30% P2M लेनदेन हुए।
स्थैतिक जीके तथ्य: यूपीआई की शुरुआत 2016 में नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने की थी।
पारंपरिक भुगतान से बदलाव
यूपीआई की वृद्धि ने NEFT जैसे पुराने भुगतान तरीकों पर निर्भरता घटा दी है। खुदरा भुगतान में NEFT का हिस्सा FY18 में 61% से घटकर FY25 में 48% रह गया। तुरंत निपटान, कम लागत और आसान उपयोग ने इस बदलाव को गति दी। इससे सभी लेनदेन का डिजिटल रिकॉर्ड बनता है, जिसे कर विभाग विश्लेषित कर सकता है।
कर विभाग द्वारा यूपीआई डेटा का उपयोग
राज्य कर विभाग अब यूपीआई डेटा का इस्तेमाल गैर–पंजीकृत व्यवसायों और कर चोरी का पता लगाने के लिए कर रहे हैं। 2022 से 2025 के बीच, कर्नाटक वाणिज्यिक कर विभाग ने उन विक्रेताओं को निशाना बनाया जिनकी यूपीआई प्राप्तियां जीएसटी छूट सीमा से अधिक थीं। यदि सभी अपंजीकृत कर योग्य बिक्री पर कर लगाया जाए, तो ₹1.5 लाख करोड़ का अतिरिक्त जीएसटी राजस्व मिल सकता है।
जीएसटी छूट संरचना
जीएसटी में, यदि वस्तुओं की वार्षिक बिक्री ₹40 लाख से कम और सेवाओं की ₹20 लाख से कम हो तो व्यवसाय को पंजीकरण से छूट है। फल-सब्जी जैसी छूट प्राप्त वस्तुएं बेचने वाले विक्रेता जीएसटी से बाहर हैं, लेकिन कर योग्य और छूट प्राप्त वस्तुएं साथ बेचने पर कर लग सकता है। कम्पोज़िशन योजना में ₹1.5 करोड़ तक टर्नओवर वाले व्यवसाय कम दर पर कर दे सकते हैं, लेकिन छोटे व्यापारियों में इसकी जानकारी कम है।
स्थैतिक जीके तथ्य: जीएसटी भारत में 1 जुलाई 2017 को लागू हुआ।
छोटे विक्रेताओं की चिंताएँ
कई छोटे व्यापारी यूपीआई को “कैश जैसा” समझते हैं और मानते हैं कि इसका कोई ऑडिट ट्रेल नहीं है। जब बड़े यूपीआई लेनदेन चिह्नित होते हैं, तो उन्हें अपने वास्तविक कारोबार से कहीं अधिक कर मांग का सामना करना पड़ता है। इससे कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन हुए। डेटा एनालिटिक्स में अक्सर निजी लेनदेन और छूट प्राप्त बिक्री को अलग करने में विफलता रहती है।
प्रवर्तन से पहले जागरूकता की आवश्यकता
विशेषज्ञों का सुझाव है कि जीएसटी नियमों, यूपीआई की अनुपालन भूमिका और इनपुट टैक्स क्रेडिट जैसे लाभों पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं। सख्त प्रवर्तन से पहले एक वर्ष की जागरूकता अवधि से स्वैच्छिक पंजीकरण को बढ़ावा मिल सकता है। अन्यथा छोटे विक्रेता यूपीआई से बच सकते हैं, जिससे डिजिटल अपनाने पर असर पड़ेगा।
विकास और अनुपालन में संतुलन
यूपीआई ने भारत के भुगतान तंत्र को बदल दिया है, लेकिन अति-आक्रामक प्रवर्तन व्यापारी को वापस नकद की ओर धकेल सकता है। डिजिटलीकरण और न्यायपूर्ण कराधान का संतुलित दृष्टिकोण ही अनुपालन और डिजिटल भुगतान में विश्वास बनाए रख सकता है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| तथ्य | विवरण | 
| यूपीआई लॉन्च वर्ष | 2016 | 
| यूपीआई प्रबंधन संस्था | नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) | 
| 2025 में यूपीआई लेनदेन | ₹260 लाख करोड़ वार्षिक | 
| खुदरा भुगतान में यूपीआई की हिस्सेदारी | 28% | 
| FY25 में P2P हिस्सा | 70% | 
| FY25 में P2M हिस्सा | 30% | 
| जीएसटी वस्तु छूट सीमा | ₹40 लाख टर्नओवर | 
| जीएसटी सेवा छूट सीमा | ₹20 लाख टर्नओवर | 
| कम्पोज़िशन योजना टर्नओवर सीमा | ₹1.5 करोड़ | 
| जीएसटी लॉन्च तिथि | 1 जुलाई 2017 | 
				
															




