अनुकूलन अंतर (Adaptation Gap) को समझना
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने अपनी अनुकूलन अंतर रिपोर्ट 2025 जारी की है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए वैश्विक प्रयासों को पर्याप्त वित्तीय समर्थन नहीं मिल रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2030 के दशक के मध्य तक प्रति वर्ष 310–365 अरब अमेरिकी डॉलर का अनुकूलन वित्तीय घाटा (Adaptation Finance Gap) रहेगा, जो उपलब्ध वित्तीय सहायता से कई गुना अधिक है।
यद्यपि कई देशों ने अपने राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाएँ (National Adaptation Plans) प्रस्तुत की हैं, परंतु उनका कार्यान्वयन और गुणवत्ता दोनों अपर्याप्त हैं। रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर वित्तीय निवेश में वृद्धि, नवोन्मेषी अनुकूलन तंत्रों, और लचीलापन आधारित योजना की आवश्यकता पर बल देती है।
स्थिर जीके तथ्य: यूएनईपी (UNEP) की स्थापना 1972 में हुई थी और इसका मुख्यालय नैरोबी, केन्या में स्थित है।
वैश्विक वित्तीय संकट
वर्तमान में वैश्विक अनुकूलन वित्त लगभग 26 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो आवश्यक राशि का केवल एक छोटा हिस्सा है।
इसमें से अधिकांश वित्त अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्रोतों से आता है, जबकि निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत सीमित है।
रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका और दक्षिण एशिया के विकासशील देश सबसे गंभीर वित्तीय कमी का सामना कर रहे हैं।
यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाले दशक में जलवायु से संबंधित क्षति की लागत कई गुना बढ़ सकती है।
स्थिर जीके टिप: पेरिस समझौता (Paris Agreement, 2015), जो यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के तहत हुआ, सभी देशों की शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) क्षमताओं को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखता है।
अनुकूलन योजनाओं के कमजोर क्रियान्वयन
विश्व के 80% से अधिक देशों ने अपने राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाएँ (NAPs) प्रस्तुत की हैं, किंतु केवल कुछ ही देशों ने उन्हें पूर्ण कार्यान्वयन स्तर तक पहुँचाया है।
संस्थागत समन्वय की कमी, तकनीकी क्षमता का अभाव, और कमजोर निगरानी तंत्र प्रगति को धीमा कर रहे हैं।
रिपोर्ट सुझाव देती है कि देशों को अनुकूलन रणनीतियों को सीधे अपने राष्ट्रीय विकास नीतियों और बजटीय ढाँचों में शामिल करना चाहिए।
भारत की प्रगति और चुनौतियाँ
भारत ने राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC) और राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाओं (SAPCCs) के माध्यम से अनुकूलन क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।
इन योजनाओं का उद्देश्य कृषि लचीलापन मजबूत करना, जल संसाधनों का प्रबंधन करना, और हीट स्ट्रेस (Heat Stress) के प्रति संवेदनशीलता को कम करना है।
फिर भी, भारत अब भी विश्व के सबसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, जहाँ अनियमित मानसून, तटीय बाढ़, और शहरी गर्मी की लहरें बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट में भारत के लिए वित्तीय चैनलों के विस्तार, निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी, और स्थानीयकृत अनुकूलन योजना की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
स्थिर जीके तथ्य: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 2015 में NAFCC की शुरुआत की थी ताकि जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दी जा सके।
आगे की राह
यूएनईपी अनुकूलन अंतर रिपोर्ट 2025 का निष्कर्ष है कि यदि शीघ्र वित्तीय और नीतिगत कार्रवाई नहीं की गई, तो आगामी दशक में विश्व अपनी अनुकूलन क्षमता से अधिक बोझ झेलने की स्थिति में पहुँच जाएगा।
रिपोर्ट के अनुसार, अनुकूलन केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि विकास और आर्थिक सुरक्षा की प्राथमिकता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जलवायु वित्त नवाचार, और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfer) को 2035 से पहले अनुकूलन अंतर को समाप्त करने के लिए मुख्य साधन (Key Enablers) के रूप में पहचाना गया है।
स्थिर उस्तादियन करेंट अफेयर्स तालिका
| विषय | विवरण |
| रिपोर्ट का नाम | यूएनईपी अनुकूलन अंतर रिपोर्ट 2025 |
| जारी करने वाला संगठन | संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) |
| मुख्यालय | नैरोबी, केन्या |
| अनुमानित वित्तीय घाटा | प्रति वर्ष 310–365 अरब अमेरिकी डॉलर (2030 के दशक के मध्य तक) |
| वर्तमान वैश्विक अनुकूलन वित्त | लगभग 26 अरब अमेरिकी डॉलर |
| भारत की प्रमुख पहलें | राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC), राज्य कार्य योजनाएँ (SAPCCs) |
| भारत की प्रमुख संवेदनशीलताएँ | हीट स्ट्रेस, अनियमित मानसून, तटीय बाढ़ |
| वैश्विक चिंता | अनुकूलन योजनाओं का कमजोर कार्यान्वयन |
| यूएनईपी की स्थापना वर्ष | 1972 |
| संबंधित अंतरराष्ट्रीय समझौता | पेरिस समझौता (2015) – यूएनएफसीसीसी के तहत |





