खाद्य प्रणालियों का बढ़ता महत्व
EAT–Lancet आयोग की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भले ही दुनिया जीवाश्म ईंधनों से संक्रमण में सफल हो जाए, खाद्य प्रणालियाँ अकेले ही 1.5°C पेरिस तापमान लक्ष्य को पार कर सकती हैं।
यह निष्कर्ष दर्शाता है कि खाद्य उत्पादन और उपभोग पैटर्न वैश्विक जलवायु एजेंडे के केंद्र में हैं।
Static GK Fact: पेरिस समझौता (Paris Agreement) को 2015 में COP21 के दौरान अपनाया गया था, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे रखना है।
खाद्य प्रणाली की परिभाषा
एक फूड सिस्टम (Food System) में उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, उपभोग और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी पूरी श्रृंखला शामिल होती है।
यह न केवल अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय स्थिरता से भी जुड़ा है।
कृषि, भूमि उपयोग और उपभोग के पैटर्न मिलकर वैश्विक संसाधनों के उपयोग और उत्सर्जन स्तर को निर्धारित करते हैं।
Static GK Tip: कृषि भारत के GDP में लगभग 18% का योगदान करती है और 40% से अधिक जनसंख्या को रोजगार देती है — जिससे इसकी सामाजिक–आर्थिक भूमिका स्पष्ट होती है।
ग्रह की सीमाओं का उल्लंघन
खाद्य प्रणाली पर्यावरणीय क्षरण का सबसे बड़ा कारण है।
रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य प्रणालियाँ पाँच प्रमुख “ग्रह सीमाओं” (Planetary Boundaries) का उल्लंघन कर रही हैं —
- भूमि प्रणाली परिवर्तन (Land System Change)
- जैवमंडल अखंडता (Biosphere Integrity)
- ताजे पानी का उपयोग (Freshwater Use)
- जैव–रासायनिक प्रवाह (Biogeochemical Flows)
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs)
कुल वैश्विक GHG उत्सर्जन का लगभग 30% भोजन उत्पादन और प्रसंस्करण से संबंधित है।
पर्यावरणीय प्रभाव में असमानता
रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक खाद्य–संबंधित पर्यावरणीय दबावों में भारी असमानता है।
विश्व की सबसे अमीर 30% आबादी खाद्य प्रणालियों से उत्पन्न 70% से अधिक पर्यावरणीय तनाव के लिए जिम्मेदार है।
वहीं, भारत जैसे विकासशील देशों के सामने सततता, रोजगार और पोषण के बीच संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती है।
भारत के लिए प्रमुख चुनौतियाँ
भारत में यद्यपि GDP में कृषि का हिस्सा धीरे–धीरे घट रहा है, फिर भी 2050 तक यह सबसे बड़ा नियोक्ता क्षेत्र रहेगा।
इसलिए खाद्य प्रणाली पुनर्गठन में पर्यावरणीय और श्रम–संबंधी दोनों मुद्दों को संबोधित करना आवश्यक है।
नीति–निर्माताओं को कृषि सुधारों को जलवायु लचीलापन, ग्रामीण आजीविका और जैव विविधता संरक्षण के साथ जोड़ना होगा।
खाद्य प्रणाली रूपांतरण के प्रमुख सुझाव
1. प्लैनेटरी हेल्थ डाइट (Planetary Health Diet – PHD)
यह डाइट पौध–आधारित आहार को बढ़ावा देती है — जैसे साबुत अनाज, दालें, फल, मेवे और सब्जियाँ — तथा मछली, डेयरी और मांस का सीमित सेवन।
यह न केवल पोषण की कमी को कम करती है, बल्कि पर्यावरणीय क्षति को भी घटाती है।
2. संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture)
इस पद्धति में मृदा की न्यूनतम खुदाई, सतत आवरण फसलों और फसल विविधता पर जोर दिया जाता है।
इससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है, कार्बन उत्सर्जन घटता है, और सतत उत्पादन संभव होता है।
3. नीतिगत एकीकरण और वैश्विक ढाँचे
खाद्य प्रणाली परिवर्तन के लिए आवश्यक है कि खाद्य, जलवायु और जैव विविधता नीतियों को एकीकृत किया जाए।
पेरिस समझौता, कुनमिंग–मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क, और राष्ट्रीय आहार दिशानिर्देशों के साथ तालमेल बिठाकर एकीकृत स्थिरता दृष्टि (Unified Sustainability Vision) बनाई जा सकती है।
Static GK Fact: कुनमिंग–मॉन्ट्रियल फ्रेमवर्क (2022) का लक्ष्य 2030 तक वैश्विक जैव विविधता ह्रास को रोकना और उलटना है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| ईएटी–लैंसेट आयोग | सतत और स्वास्थ्यप्रद खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देने वाला वैश्विक वैज्ञानिक निकाय |
| पेरिस समझौता | 2015 में COP21 के दौरान स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय जलवायु समझौता |
| प्लैनेटरी हेल्थ डाइट | पौध-प्रधान आहार जो मानव स्वास्थ्य और ग्रह दोनों के लिए लाभकारी है |
| संरक्षण कृषि | न्यूनतम मिट्टी छेड़छाड़ और फसल विविधता पर आधारित कृषि प्रणाली |
| भारत की कृषि भूमिका | GDP में 18% योगदान और 40% से अधिक जनसंख्या को रोजगार |
| GHG योगदान | वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 30% भोजन उत्पादन से संबंधित |
| प्रभाव में असमानता | अमीर 30% जनसंख्या द्वारा 70% पर्यावरणीय दबाव |
| कुनमिंग–मॉन्ट्रियल फ्रेमवर्क | 2022 में पारित जैव विविधता संरक्षण समझौता |
| प्रमुख ग्रह सीमाएँ | भूमि परिवर्तन, जैव अखंडता, ताजे पानी का उपयोग, जैव–रासायनिक प्रवाह, GHG उत्सर्जन |
| रिपोर्ट वर्ष | 2025 – वैश्विक खाद्य प्रणाली रूपांतरण पर केंद्रित |





