निजी संस्थानों में प्रतिनिधित्व
ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों की उपस्थिति निजी उच्च शिक्षा में बेहद सीमित बनी हुई है। उदाहरण के लिए, 2024-25 सत्र में बिट्स पिलानी के आँकड़े दिखाते हैं कि 5,000 से अधिक छात्रों में केवल 10% ओबीसी, 0.5% एससी और 0.8% एसटी छात्र ही नामांकित हुए।
उच्च ट्यूशन फीस इस असमानता को और बढ़ा देती है। अधिकांश निजी विश्वविद्यालय बड़ी राशि वसूलते हैं, जिससे वंचित वर्गों के छात्र प्रवेश पाने में कठिनाई का सामना करते हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: बिट्स पिलानी, भारत के प्रमुख निजी इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 1964 में हुई थी।
आरक्षण क्यों आवश्यक है
भारत में उच्च शिक्षा का बड़ा हिस्सा निजी संस्थानों द्वारा संचालित है। AISHE 2021-22 सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग दो–तिहाई कॉलेज निजी असहाय हैं और 500 से अधिक निजी विश्वविद्यालय हैं।
जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने 2035 तक 50% सकल नामांकन अनुपात (GER) का लक्ष्य रखा है, केवल सार्वजनिक संस्थानों के भरोसे यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। निजी संस्थानों को अधिक समावेशी बनाना अनिवार्य है।
संवैधानिक आधार
अनुच्छेद 15(5) सरकार को यह अधिकार देता है कि वह निजी संस्थानों (अल्पसंख्यक प्रबंधित संस्थानों को छोड़कर) में भी एससी, एसटी और सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रवेश नीतियाँ बना सके।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे मान्यता दी है। 2014 में प्रमाती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में अदालत ने अनुच्छेद 15(5) की वैधता को कायम रखते हुए स्पष्ट किया कि निजी संस्थानों में आरक्षण पूरी तरह संवैधानिक है।
स्थैतिक जीके टिप: अनुच्छेद 15(4) और 15(5) मिलकर उच्च शिक्षा में भारत की सकारात्मक भेदभाव (affirmative action) नीति की नींव रखते हैं।
संसदीय समिति की स्थिति
शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल संबंधी स्थायी समिति ने अपनी 370वीं रिपोर्ट में निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू करने की सिफारिश की।
इसने संसद से आग्रह किया कि अनिवार्य कोटा तय किया जाए: 27% ओबीसी, 15% एससी और 7.5% एसटी। रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि इन आरक्षित सीटों का वित्तीय भार सरकार वहन करे, जैसा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) के तहत निजी स्कूलों में 25% आरक्षण का प्रावधान है।
साथ ही समिति ने ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू करने और आय सीमा को नियमित रूप से अपडेट करने पर जोर दिया। इसके अलावा, दूरदराज़ और वंचित क्षेत्रों में एनजीओ और सामुदायिक नेताओं के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाने की भी सिफारिश की गई।
स्थैतिक जीके तथ्य: शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 ने 6–14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया।
संशोधन के निहितार्थ
यह प्रस्ताव निजी शिक्षा को समावेशी और न्यायसंगत बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हालांकि, वित्तीय बोझ और संस्थागत प्रतिरोध जैसी चुनौतियाँ बनी रहेंगी। यदि सरकार का सहयोग और निगरानी बनी रहती है तो यह कदम भारत को समान अवसर आधारित उच्च शिक्षा प्रणाली की ओर ले जाएगा।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| समिति | शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल संबंधी स्थायी समिति |
| रिपोर्ट संख्या | 370वीं रिपोर्ट |
| मुख्य संवैधानिक अनुच्छेद | अनुच्छेद 15(5) |
| सर्वोच्च न्यायालय मामला | प्रमाती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (2014) |
| निजी संस्थानों का हिस्सा | 65.3% कॉलेज, 517 निजी विश्वविद्यालय (AISHE 2021-22) |
| वर्तमान प्रतिनिधित्व उदाहरण | बिट्स पिलानी: 10% ओबीसी, 0.5% एससी, 0.8% एसटी (2024-25) |
| आरक्षण सिफारिश | 27% ओबीसी, 15% एससी, 7.5% एसटी |
| सरकारी भूमिका | आरक्षित सीटों का वित्तीय वहन |
| जागरूकता तंत्र | एनजीओ, आउटरीच, सामुदायिक अभियान |
| नीति लक्ष्य | NEP 2020: 2035 तक 50% सकल नामांकन अनुपात |





