प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
रानी चेन्नम्मा का जन्म 1778 में कर्नाटक के छोटे रियासती राज्य कित्तूर में हुआ था। वे ब्रिटिश शासन को चुनौती देने वाली भारत की सबसे पहली महिलाओं में से एक थीं।
बचपन से ही वे घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं में दक्ष थीं और अपने अदम्य साहस के लिए प्रसिद्ध थीं।
स्थैतिक जीके तथ्य: कित्तूर वर्तमान में कर्नाटक के बेलगावी ज़िले में स्थित है और 18वीं शताब्दी में यह मराठा प्रभाव वाला प्रमुख राज्य था।
विवाह और व्यक्तिगत क्षति
रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसरजा देसाई से हुआ था।
पति और पुत्र — दोनों की मृत्यु के बाद उन्होंने राज्य की स्वतंत्रता बनाए रखने का संकल्प लिया और शिवलिंगप्पा नामक बालक को गोद लेकर उत्तराधिकारी घोषित किया।
लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने “Doctrine of Lapse” (दत्तक उत्तराधिकार नीति) के अंतर्गत इस गोद लेने को अस्वीकार कर दिया।
यही निर्णय आगे चलकर कित्तूर विद्रोह (1824) का कारण बना — जो भारत के औपनिवेशिक विरोध के सबसे शुरुआती संघर्षों में से एक था।
1824 का कित्तूर विद्रोह
कित्तूर विद्रोह (1824) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला सशस्त्र आंदोलन माना जाता है — जो 1857 के सिपाही विद्रोह से 33 वर्ष पहले हुआ था।
रानी चेन्नम्मा ने असाधारण नेतृत्व दिखाते हुए ब्रिटिश सेना को प्रारंभिक लड़ाई में पराजित किया और कलेक्टर सेंट जॉन थैकर्रे (St. John Thackeray) को बंदी बना लिया।
स्थैतिक जीके टिप: कित्तूर विद्रोह 1857 के सिपाही विद्रोह से 33 वर्ष पहले हुआ था, इसीलिए इसे भारत का पहला महिला नेतृत्व वाला औपनिवेशिक विरोध आंदोलन माना जाता है।
हालाँकि बाद में ब्रिटिशों ने अधिक सेना भेजकर कित्तूर को घेर लिया और लंबे युद्ध के बाद रानी चेन्नम्मा को पकड़कर बैलहोंगल किला में बंदी बना लिया, जहाँ 1829 में उनका निधन हुआ।
विरासत और महत्व
रानी चेन्नम्मा का साहस और नेतृत्व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणास्त्रोत है।
उन्होंने दिखाया कि महिलाएँ भी अपने देश, सम्मान और स्वराज की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारत सरकार ने 2007 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया, और उनका भव्य प्रतिमा नई दिल्ली स्थित संसद परिसर में स्थापित है।
उनका जन्मदिन 23 अक्टूबर को विशेष रूप से कर्नाटक राज्य में “रानी चेन्नम्मा जयंती” के रूप में बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है।
मूल्य और प्रेरणा
रानी चेन्नम्मा का जीवन साहस, नेतृत्व, दृढ़ निश्चय और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
उन्होंने अन्याय और विदेशी शासन के विरुद्ध असंभव परिस्थितियों में भी डटकर संघर्ष किया।
उनकी वीरता की तुलना अक्सर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से की जाती है, और वे आज भी भारत की सबसे सम्मानित महिला स्वतंत्रता सेनानियों में गिनी जाती हैं।
स्थैतिक उस्तादियन करंट अफेयर्स तालिका
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| जन्म | 1778, कित्तूर, कर्नाटक |
| मृत्यु | 1829, बैलहोंगल किला |
| दत्तक पुत्र | शिवलिंगप्पा |
| मुख्य घटना | कित्तूर विद्रोह, 1824 |
| पति | राजा मल्लसरजा देसाई |
| पकड़ा गया ब्रिटिश अधिकारी | सेंट जॉन थैकर्रे |
| प्रथम विजय | ब्रिटिश सेना को प्रारंभिक युद्ध में पराजित किया |
| मान्यता | संसद भवन परिसर में प्रतिमा स्थापित |
| स्मारक डाक टिकट | 2007 में जारी |
| जयंती | प्रतिवर्ष 23 अक्टूबर को मनाई जाती है |





