पृष्ठभूमि
प्रोजेक्ट कुशा — जिसे प्रोग्राम लॉन्ग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (PGLRSAM) भी कहा जाता है — भारत की लंबी दूरी की वायु रक्षा क्षमता को सुदृढ़ करने के लिए DRDO द्वारा संचालित एक स्वदेशी पहल है। इसे 2022 में ₹21,700 करोड़ के बड़े बजट प्रावधान के साथ मंजूरी मिली।
स्थैतिक GK तथ्य: भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) 1958 में स्थापित हुआ था और यह रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
चरण 1 का दायरा
पहले चरण में चार इंटरसेप्टर वेरिएंट विकसित किए जा रहे हैं:
- M1 – लगभग 150 किमी की रेंज
- M2 – 250 किमी की रेंज
- M3 – 350–400 किमी की विस्तारित रेंज
- नौसैनिक संस्करण – 200–300 किमी की रेंज
स्थैतिक GK तथ्य: भारत की पहली स्वदेशी मिसाइल ‘पृथ्वी’ को 1990 के दशक की शुरुआत में शामिल किया गया, जिसने आगे के स्वदेशी सिस्टम का आधार तैयार किया।
ये सभी वेरिएंट अलग-अलग खतरे के दायरे को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किए गए हैं, ताकि बहु-स्तरीय वायु रक्षा कवरेज सुनिश्चित हो सके।
चरण 2 के उद्देश्य
दूसरे चरण का लक्ष्य 600 किमी से अधिक रेंज वाला इंटरसेप्टर मिसाइल विकसित करना है। यह भारत की एयर-स्पेस डिनायल क्षमता को अत्यधिक बढ़ाएगा और बहु-डोमेन वायु रक्षा में एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में कार्य करेगा।
स्थैतिक GK टिप: भारत एक परमाणु त्रिस्तरीय क्षमता वाला राष्ट्र है, जिसने पनडुब्बी-आधारित बैलिस्टिक मिसाइल INS अरिहंत के माध्यम से विश्वसनीय सेकंड-स्ट्राइक क्षमता प्रदर्शित की है।
रणनीतिक महत्व
प्रोजेक्ट कुशा, रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है। इन इंटरसेप्टर का घरेलू विकास भारत की रणनीतिक निवारक क्षमता को मजबूत करता है और मेक इन इंडिया व आत्मनिर्भर भारत पहलों के अनुरूप है।
M1 से M3 तक की बहु-स्तरीय संरचना और नौसैनिक प्लेटफ़ॉर्म विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में लचीली तैनाती की सुविधा देती है। 600+ किमी रेंज वाला इंटरसेप्टर भारत की वायु सीमा से काफी दूर ऊँचाई पर मौजूद खतरों को भी निष्क्रिय कर सकता है।
स्थैतिक GK टिप: मेक इन इंडिया 2014 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें रक्षा क्षेत्र भी शामिल है।
परियोजना की प्रगति
ऑपरेशन सिंदूर द्वारा पूर्व निर्धारित संचालनात्मक लक्ष्य के बाद, वायु सेना प्रोजेक्ट कुशा की तीव्र प्रगति पर जोर दे रही है।
पहले चरण की समय पर पूर्ति तकनीक को मान्य करने और दूसरे चरण के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए आवश्यक है।
सफल क्रियान्वयन, भारत के स्वदेशी रणनीतिक वायु रक्षा कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर होगा और इसे एक विश्वसनीय निवारक ढांचे में योगदान देगा।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| परियोजना का नाम | प्रोजेक्ट कुशा (PGLRSAM) |
| स्वीकृति वर्ष | 2022 |
| बजट प्रावधान | ₹21,700 करोड़ |
| विकास एजेंसी | DRDO |
| चरण 1 वेरिएंट | M1 (150 किमी), M2 (250 किमी), M3 (350–400 किमी), नौसैनिक (200–300 किमी) |
| चरण 2 का लक्ष्य | 600 किमी से अधिक रेंज वाला इंटरसेप्टर |
| रणनीतिक प्रभाव | लंबी दूरी की वायु रक्षा को सुदृढ़ करता है और मेक इन इंडिया पहल को समर्थन देता है |





