सबसे बड़ा एंटी-नक्सल अभियान
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टा पहाड़ी पर चलाया गया अब तक का सबसे बड़ा एंटी-नक्सल अभियान है। यह अभियान भारत की वामपंथी उग्रवाद (LWE) से लंबी लड़ाई में एक मोड़ साबित हुआ। सैकड़ों सुरक्षा बलों और अर्धसैनिक इकाइयों को इसमें लगाया गया, जिससे यह क्षेत्र का सबसे व्यापक काउंटर–इंसर्जेंसी मिशन बन गया।
कर्रेगुट्टा का चयन इसलिए अहम था क्योंकि इसकी घनी जंगलों और पहाड़ी भौगोलिक संरचना ने नक्सली समूहों को गढ़ उपलब्ध कराया हुआ था। इस क्षेत्र की सफाई ने उग्रवादियों की संचालन क्षमता को कमजोर कर दिया।
स्थिर जीके तथ्य: भारत में LWE से जुड़े लगभग 30% घटनाएँ छत्तीसगढ़ में दर्ज होती हैं।
कर्रेगुट्टा का सामरिक महत्व
कर्रेगुट्टा पहाड़ी श्रृंखला छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर फैली हुई है और नक्सलियों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर रही है। इस क्षेत्र पर कार्रवाई कर बलों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं, ठिकानों और भर्ती ज़ोन को तोड़ने का लक्ष्य रखा।
इससे बीजापुर और सुकमा जैसे ज़िलों में सक्रिय नक्सलियों पर भी दबाव पड़ा, जो लंबे समय से माओवादी हिंसा के केंद्र रहे हैं।
स्थिर जीके तथ्य: छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला भारत में सुरक्षा बलों पर सबसे घातक नक्सली हमलों के लिए कुख्यात है।
अन्य एंटी-नक्सल अभियानों से संबंध
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट से पहले कई प्रमुख अभियान चलाए गए थे। इनमें से एक था मिशन संकल्प, जिसे कर्रेगुट्टा और आसपास की पहाड़ियों में चलाया गया। इसने क्षेत्र में प्रारंभिक प्रभुत्व स्थापित करने की नींव रखी।
इसके पहले, ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009) भी एक ऐतिहासिक अभियान था, जिसमें पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में नक्सल ठिकानों पर हमला किया गया। इसमें सीआरपीएफ बटालियनों और राज्य पुलिस बलों की बड़ी तैनाती शामिल थी।
स्थिर जीके तथ्य: केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) भारत में एंटी-नक्सल अभियानों की अग्रणी ताकत है।
वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ व्यापक लड़ाई
ऐसे अभियान यह दिखाते हैं कि नक्सलवाद अब भी भारत की सबसे गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है। सरकार की रणनीति में सुरक्षा उपायों और विकास कार्यक्रमों दोनों का संयोजन शामिल है।
आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम और एलडब्ल्यूई प्रभावित ज़िलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता जैसी योजनाएँ सामाजिक-आर्थिक शिकायतों को दूर कर नक्सलियों का जनाधार कमजोर करने का प्रयास करती हैं।
स्थिर जीके टिप: “रेड कॉरिडोर” शब्द नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए प्रयोग होता है, जो आंध्र प्रदेश से लेकर मध्य भारत होते हुए बिहार और पश्चिम बंगाल तक फैला है।
दीर्घकालिक प्रभाव
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट की सफलता से सुरक्षा बलों का आत्मविश्वास बढ़ा है और नक्सली समूहों की गतिविधियाँ सीमित हुई हैं। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि स्थायी समाधान के लिए मज़बूत सैन्य उपस्थिति के साथ-साथ लंबी अवधि की विकास रणनीतियाँ आवश्यक हैं।
भारत के काउंटर-नक्सल अभियानों – ऑपरेशन ग्रीन हंट से लेकर ब्लैक फॉरेस्ट तक – ने इस संघर्ष से निपटने की बदलती रणनीतियों को रेखांकित किया है। छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा अब भी संवेदनशील क्षेत्र है, लेकिन नवीनतम अभियानों ने संतुलन को राज्य के पक्ष में कर दिया है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट | कर्रेगुट्टा पहाड़ी (छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा) पर सबसे बड़ा एंटी-नक्सल अभियान |
| शुरूआत का वर्ष | 2024 (हाल ही की रिपोर्ट) |
| मुख्य क्षेत्र | कर्रेगुट्टा पहाड़ी श्रृंखला, घने जंगल |
| संबंधित अभियान | मिशन संकल्प (उसी क्षेत्र में) |
| ऐतिहासिक अभियान | ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009) – 5 राज्यों में |
| शामिल बल | सुरक्षा बल और अर्धसैनिक इकाइयाँ, सीआरपीएफ अग्रणी भूमिका में |
| मुख्य उद्देश्य | नक्सली गढ़ों का सफाया और आपूर्ति मार्ग काटना |
| उच्च जोखिम वाले जिले | सुकमा, बीजापुर (छत्तीसगढ़) |
| व्यापक चुनौती | रेड कॉरिडोर में वामपंथी उग्रवाद |
| विकास संबंधी पहल | आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, एलडब्ल्यूई जिलों के लिए विशेष सहायता |





