भारतीय शहरों में मौजूदा स्तर
भारतीय शहरों में ध्वनि प्रदूषण लगातार सुरक्षित सीमा से अधिक रहता है।
WHO ने दिन में 55 dB(A) और रात में 40 dB(A) की सीमा तय की है।
भारत के Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000 में सीमा थोड़ी ऊँची है – दिन में 55 dB और रात में 45 dB।
फिर भी, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु के ट्रैफिक कॉरिडोर पर 70–85 dB(A) तक की आवाज़ दर्ज की जाती है, जिससे लाखों लोग असुरक्षित स्तरों के संपर्क में आते हैं।
स्थैतिक तथ्य: भारत में ध्वनि को प्रदूषक के रूप में मान्यता वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में दी गई है।
स्वास्थ्य पर असर
लंबे समय तक ध्वनि के संपर्क में रहना:
- हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग जोखिम को बढ़ाता है।
- नींद में बाधा डालता है, जिससे उत्पादकता घटती है और प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है।
- बच्चों और बुजुर्गों में संज्ञानात्मक क्षरण (cognitive decline) तेज होता है।
ये सभी प्रभाव जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को कम करते हैं।
स्थैतिक टिप: WHO ने 65 dB से ऊपर के शोर को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना है।
कमजोर प्रवर्तन तंत्र
ध्वनि प्रदूषण का संकट प्रभावी प्रवर्तन की कमी के कारण जारी है।
- रियल-टाइम सेंसर से निगरानी केवल कुछ शहरों में ही होती है।
- नगर निकाय, पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अलग-अलग काम करते हैं, जिससे समन्वय की कमी रहती है।
- लाउडस्पीकर, हॉर्न और पटाखों को सामाजिक स्वीकार्यता भी नियमों को कमजोर करती है।
कमी की रणनीतियाँ
ध्वनि प्रदूषण से निपटना उतना ही ज़रूरी है जितना वायु और जल प्रदूषण से।
- IoT सेंसर और मशीन लर्निंग के जरिए रियल-टाइम शोर मैपिंग बढ़ाना।
- शहरी योजना सुधार जैसे ज़ोनिंग कानून और ग्रीन बफर अपनाना।
- शासन तंत्र में सुधार कर एजेंसी के बीच जवाबदेही और समन्वय सुनिश्चित करना।
स्थैतिक तथ्य: जर्मनी और जापान शहरी शोर नियंत्रण में अग्रणी हैं और उन्नत बाधाओं (barriers) और ज़ोनिंग नीतियों का उपयोग करते हैं।
समुदायों की भूमिका
ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण में समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।
- धार्मिक संस्थाएँ, त्योहार आयोजक और परिवहन यूनियन को जागरूकता अभियानों से जोड़ा जाए।
- नीति निर्माताओं को सांस्कृतिक संवेदनशीलता और कड़े प्रवर्तन के बीच संतुलन बनाना होगा।
- वैश्विक उदाहरण बताते हैं कि जनसहयोग से ही स्थायी शोर कमी संभव है।
समानता की चिंताएँ
ध्वनि प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं:
- स्ट्रीट वेंडर्स, डिलीवरी वर्कर्स और झुग्गी बस्तियों के निवासी।
ध्वनि-रहित वातावरण को सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकार माना जाना चाहिए, न कि विलासिता।
नीतियों में कम आय वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी ताकि शहरी जीवन स्थितियों में असमानता घटे।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
कानूनी मान्यता | वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 |
भारतीय मानक | 55 dB (दिन), 45 dB (रात) – 2000 नियमों के तहत |
WHO सीमा | 55 dB दिन, 40 dB रात |
भारतीय ट्रैफिक शोर | 70–85 dB(A) |
स्वास्थ्य प्रभाव | उच्च रक्तचाप, नींद में बाधा, तनाव, संज्ञानात्मक क्षरण |
निगरानी कमी | कुछ ही शहरों में रियल-टाइम सेंसर |
प्रवर्तन समस्या | बोर्ड, नगर निकाय और पुलिस में समन्वय की कमी |
निवारण तरीके | ज़ोनिंग, ग्रीन बफर, रियल-टाइम मैपिंग |
वैश्विक अग्रणी | जर्मनी और जापान |
समानता चिंता | स्ट्रीट वेंडर्स और गरीब समुदाय सबसे अधिक प्रभावित |