इको सेंसिटिव ज़ोन में परियोजना
उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में भागीरथी इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के भीतर नेटाला बायपास परियोजना को सिद्धांत रूप में मंज़ूरी दी। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) द्वारा पर्यावरणीय और सामाजिक कारणों से की गई पिछली अस्वीकृति के बावजूद लिया गया।
रक्षा मंत्रालय ने इसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना घोषित किया है। हालांकि, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस क्षेत्र में भूस्खलन, धँसाव और बाढ़ का इतिहास रहा है, जिससे सुरक्षा और पारिस्थितिकी दोनों पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।
स्थिर जीके तथ्य: भागीरथी ESZ को 2012 में अधिसूचित किया गया था, जिसमें गौमुख से उत्तरकाशी तक 100 किमी का क्षेत्र शामिल है।
पारिस्थितिक चिंताएँ
हाल ही में धराली में आई बाढ़ ने उसी क्षेत्र में ढलान अस्थिरता को उजागर किया, जहाँ बायपास का निर्माण प्रस्तावित है। बाढ़ के दौरान ढलान का एक हिस्सा ध्वस्त हो गया, जिससे परियोजना का विरोध और मज़बूत हुआ।
पर्यावरणविदों का कहना है कि सामरिक महत्व लंबे समय के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के जोखिम से ऊपर नहीं हो सकता। हिमालयी क्षेत्रों में यह राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम पारिस्थितिक संरक्षण का संघर्ष बार-बार सामने आ रहा है।
स्थिर जीके टिप: हिमालय दुनिया की सबसे युवा पर्वतमालाओं में से एक है, जो इसे भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधियों के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाता है।
विकास बनाम पर्यावरण
नेटाला बायपास पर बहस व्यापक विकास बनाम पर्यावरण की दुविधा को दर्शाती है।
- विकास समर्थक आर्थिक वृद्धि, गरीबी उन्मूलन और बुनियादी ढाँचा विस्तार पर ज़ोर देते हैं।
- पर्यावरणविद चेतावनी देते हैं कि यदि पारिस्थितिकी तंत्र ढह गया, तो विकास निरर्थक है। छोटे-छोटे प्रोजेक्ट भी जब जुड़ते हैं, तो बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति का कारण बन सकते हैं।
क्षरण के कारण
नाज़ुक क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षरण अक्सर तेज़ शहरीकरण, विशेष आर्थिक क्षेत्रों, नीतिगत खामियों और तेज़ी से दी गई मंज़ूरियों से जुड़ा होता है, जिनमें गहन पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) की अनदेखी की जाती है।
स्थिर जीके तथ्य: भारत ने 1978 में EIA पेश किया था और 1994 से बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए अनिवार्य बना दिया।
सतत विकास दृष्टिकोण
- पारिस्थितिक दृष्टिकोण: जैवकेंद्रितता पर आधारित, जहाँ मानव जीवन को सीमित पारिस्थितिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए।
- मज़बूत सतत विकास: पर्यावरण संरक्षण को दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि की शर्त मानता है।
- कमज़ोर सतत विकास: आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देता है, पर पर्यावरणीय चिंताओं को कराधान और नीतिगत उपकरणों से जोड़ता है।
- ट्रेडमिल दृष्टिकोण: सतत विकास को निरंतर आर्थिक वृद्धि से जोड़ता है और तकनीकी नवाचार पर निर्भर करता है।
आगे की राह
भारत के लिए सामरिक बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों और पर्यावरणीय स्थिरता में संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। खासकर हिमालयी क्षेत्रों में निर्णय लेने में मज़बूत सतत विकास सिद्धांतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि अप्रतिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति से बचा जा सके।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| स्वीकृत परियोजना | भागीरथी ESZ में नेटाला बायपास |
| अनुमोदन प्राधिकरण | उत्तराखंड सरकार |
| पिछली अस्वीकृति | सुप्रीम कोर्ट उच्चाधिकार समिति |
| सामरिक महत्व | रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्गीकृत |
| हाल की आपदा | धराली बाढ़ |
| पारिस्थितिक चिंता | ढलान अस्थिरता और धँसाव जोखिम |
| ESZ अधिसूचना | 2012 |
| प्रमुख बहस | विकास बनाम पर्यावरण |
| सतत विकास मॉडल | पारिस्थितिक, मज़बूत, कमज़ोर, ट्रेडमिल |
| भारत में EIA की शुरुआत | 1978, 1994 से अनिवार्य |





