सरकारी मान्यता
तमिलनाडु सरकार ने तंजावुर महाराजा सर्वोजी की सरस्वती महल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की लाइब्रेरी घोषित किया है। इसे तमिलनाडु पब्लिक लाइब्रेरीज़ रूल्स 1950 के तहत एक अनुदान प्राप्त पुस्तकालय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
नायक शासन के अंतर्गत स्थापना
इस पुस्तकालय की नींव 16वीं शताब्दी में तंजावुर के नायक शासकों (1535–1675 ई.) के काल में रखी गई थी। यह प्रारंभ में एक महल पुस्तकालय के रूप में शुरू हुई और इसमें दुर्लभ साहित्यिक और विद्वत्तापूर्ण कृतियाँ संरक्षित की गईं।
स्थैतिक जीके तथ्य: नायक काल में तंजावुर दक्षिण भारत का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र था, जो मंदिर वास्तुकला और कला संरक्षण के लिए प्रसिद्ध था।
मराठा शासन का योगदान
मराठा शासकों ने पुस्तकालय के संग्रह का विस्तार किया। विशेष रूप से राजा सर्वोजी द्वितीय (1798–1832 ई.) के शासन में इसका रूपांतरण हुआ। वे एक ग्रंथ-प्रेमी थे और उन्होंने भारत व विदेश से पुस्तकें और पांडुलिपियाँ मंगवाईं। उनके निजी संग्रह में ही 4,530 पुस्तकें शामिल हैं।
दुर्लभ पांडुलिपियाँ और संग्रह
यह पुस्तकालय 81,400 से अधिक पुस्तकें और 47,500 से अधिक ताड़पत्र एवं कागज़ की पांडुलिपियाँ रखती है। पांडुलिपियाँ तमिल, संस्कृत, मराठी, तेलुगु, हिंदी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन और इतालवी सहित कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।
स्थैतिक जीके टिप: ताड़पत्र पांडुलिपियों का प्रयोग दक्षिण एशिया में कागज़ के व्यापक प्रयोग से पहले ग्रंथ लेखन के लिए किया जाता था।
लिपियों की विविधता
पांडुलिपियों में ग्रंथा, देवनागरी, नंदी नागरी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और उड़िया लिपियाँ पाई जाती हैं। यह पुस्तकालय के बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक स्वरूप को दर्शाता है।
विषय-वस्तु का दायरा
तमिल संग्रह में शैव, वैष्णव और जैन धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ दुर्लभ चिकित्सकीय ग्रंथ भी शामिल हैं। इसमें कला, संगीत, दर्शन और शासन से संबंधित ग्रंथ भी सुरक्षित हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: तंजावुर की सरस्वती महल एशिया की सबसे पुरानी पुस्तकालयों में से एक है और प्रमुख प्राच्य पांडुलिपि भंडार मानी जाती है।
वैश्विक मान्यता
सरस्वती महल लाइब्रेरी को दुनिया की सबसे बड़ी प्राच्य पांडुलिपि लाइब्रेरी में गिना जाता है। इसका संग्रह वैश्विक शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है, जिससे यह दक्षिण भारतीय इतिहास, साहित्य और संस्कृति के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| तथ्य | विवरण | 
| स्थान | तंजावुर, तमिलनाडु | 
| स्थापना | 16वीं शताब्दी, नायक शासन के अंतर्गत | 
| सरकारी वर्गीकरण | तमिलनाडु पब्लिक लाइब्रेरीज़ रूल्स 1950 के तहत अनुदान प्राप्त पुस्तकालय | 
| प्रमुख योगदानकर्ता | राजा सर्वोजी द्वितीय (1798–1832 ई.) | 
| कुल पुस्तकें | 81,400 से अधिक | 
| कुल पांडुलिपियाँ | 47,500+ ताड़पत्र और कागज़ की पांडुलिपियाँ | 
| पांडुलिपियों की भाषाएँ | तमिल, संस्कृत, मराठी, तेलुगु, हिंदी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी | 
| पांडुलिपियों की लिपियाँ | ग्रंथा, देवनागरी, नंदी नागरी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, उड़िया | 
| विशेष संग्रह | शैव, वैष्णव, जैन धार्मिक ग्रंथ, दुर्लभ चिकित्सकीय ग्रंथ | 
| वैश्विक दर्जा | एशिया की सबसे पुरानी और विश्व की प्रमुख प्राच्य पांडुलिपि लाइब्रेरी | 
				
															




