आर्य समाज की स्थापना
आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा बॉम्बे (अब मुंबई) में की गई थी। यह आंदोलन एक शक्तिशाली सुधारवादी आंदोलन के रूप में उभरा, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को वेदों की मूल शिक्षाओं की ओर लौटाकर शुद्ध करना था। स्वामी दयानंद का प्रसिद्ध नारा “वेदों की ओर लौटो (Back to the Vedas)” सत्य, विवेक और सुधार का प्रतीक था।
स्थिर जीके तथ्य: 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना का दिन भारत के सामाजिक सुधार इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है।
धार्मिक और सामाजिक सुधार
आर्य समाज ने मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और कर्मकांडों का विरोध किया तथा एकेश्वरवाद और मानव समानता को प्रोत्साहित किया। स्वामी दयानंद ने वेदों की अचूकता (Infallibility) पर बल देते हुए कहा कि सच्चा धर्म कर्मकांड नहीं बल्कि विवेक, नैतिकता और सत्य पर आधारित होना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर आर्य समाज ने जातिवाद, अस्पृश्यता और बाल विवाह का विरोध किया तथा महिलाओं की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया। यह आंदोलन समाज में समानता, न्याय और नैतिक जागृति का प्रवर्तक बना।
स्थिर जीके टिप: “आर्य” शब्द का अर्थ “श्रेष्ठ” या “उच्च नैतिक और आध्यात्मिक गुणों वाला व्यक्ति” होता है — यह किसी जाति नहीं बल्कि चरित्र की श्रेष्ठता को दर्शाता है।
शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रभाव
आर्य समाज ने भारत में शिक्षा-जागरण आंदोलन की नींव रखी। 1886 में स्थापित दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी ने आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा को वैदिक मूल्यों के साथ जोड़ा। इसने भारतीय समाज में परंपरा और प्रगति के बीच सेतु का कार्य किया।
आज भी DAV स्कूल और कॉलेज स्वामी दयानंद के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहे हैं, जहाँ से सामाजिक चेतना और तर्कशीलता से परिपूर्ण नई पीढ़ियाँ तैयार हो रही हैं।
स्थिर जीके तथ्य: पहला DAV स्कूल 1886 में लाहौर में लाला हंसराज के नेतृत्व में स्थापित किया गया था।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
आर्य समाज के आदर्शों ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को गहराई से प्रेरित किया। लाला लाजपत राय, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल और स्वामी श्रद्धानंद जैसे राष्ट्रभक्त आर्य समाज की सुधारवादी और राष्ट्रवादी भावना के प्रतीक बने।
आर्य समाज ने राष्ट्रीय एकता, आत्मनिर्भरता और नैतिक शक्ति को बढ़ावा देकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में समाजिक जागरण की नई चेतना जगाई।
आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
150 वर्ष बाद भी आर्य समाज के सिद्धांत आज भी आधुनिक भारत की सामाजिक और संवैधानिक संरचना में प्रासंगिक हैं। इसके विचार समानता, न्याय और शिक्षा के अधिकार जैसे संवैधानिक मूल्यों से मेल खाते हैं। महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के प्रति इसकी प्रतिबद्धता आज की सरकारी योजनाओं जैसे “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” और “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” से जुड़ती है।
तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर इसका जोर संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में उल्लिखित वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवता की भावना को सशक्त करता है। आर्य समाज का संदेश आज भी नैतिक जीवन, धर्मों के बीच सद्भाव और प्रकृति के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है — जो भारत के सतत विकास (Sustainable Development) के लिए आवश्यक हैं।
स्थिर जीके टिप: स्वामी दयानंद की प्रसिद्ध रचना “सत्यार्थ प्रकाश” आज भी सुधारवादी हिंदू दर्शन की एक प्रमुख दार्शनिक ग्रंथ मानी जाती है।
स्थिर उस्तादियन करंट अफेयर्स तालिका
| विषय | विवरण |
| संस्थापक | स्वामी दयानंद सरस्वती |
| स्थापना वर्ष | 1875 |
| मुख्यालय (वर्तमान) | नई दिल्ली |
| मुख्य शैक्षिक संस्था | DAV ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी (1886) |
| प्रसिद्ध नारा | वेदों की ओर लौटो (Back to the Vedas) |
| मुख्य विचारधारा | वेद आधारित सुधार और सामाजिक पुनर्जागरण |
| संबंधित स्वतंत्रता सेनानी | लाला लाजपत राय, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल |
| मुख्य सामाजिक उद्देश्य | महिलाओं की शिक्षा, जाति उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह |
| संबंधित आधुनिक योजनाएँ | बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारी शक्ति वंदन अधिनियम |
| महत्वपूर्ण ग्रंथ | सत्यार्थ प्रकाश (स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा) |





