भारत का हरित भविष्य की ओर कदम
भारत ने दीदयाल पोर्ट प्राधिकरण (गुजरात), वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट प्राधिकरण (तमिलनाडु) और पारादीप पोर्ट प्राधिकरण (ओडिशा) को आधिकारिक रूप से ग्रीन हाइड्रोजन हब घोषित किया है।
यह रणनीतिक कदम भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को सशक्त करता है।
इसकी घोषणा केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने की, जिन्होंने भारत के ऊर्जा परिवर्तन में बंदरगाहों की परिवर्तनकारी भूमिका पर जोर दिया।
स्थैतिक जीके तथ्य: दीदयाल पोर्ट (पूर्व में कांडला बंदरगाह) भारत के सबसे बड़े माल-हैंडलिंग बंदरगाहों में से एक है।
ग्रीन हाइड्रोजन को समझना
ग्रीन हाइड्रोजन पानी के विद्युत अपघटन (Electrolysis) के माध्यम से सौर और पवन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके उत्पादित किया जाता है।
इस प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता, जिससे यह जीवाश्म ईंधन का स्वच्छ विकल्प बन जाता है।
यह परिवहन, औद्योगिक और ऊर्जा उत्पादन क्षेत्रों के डीकार्बोनाइजेशन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्थैतिक जीके तथ्य: राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (2023) का उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना है।
बंदरगाहों का रणनीतिक महत्व
भारत की आर्थिक संरचना में बंदरगाह लॉजिस्टिक और औद्योगिक स्तंभ के रूप में कार्य करते हैं।
उन्हें ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में घोषित कर भारत मौजूदा अवसंरचना, कनेक्टिविटी और औद्योगिक नेटवर्क का लाभ उठा रहा है।
ये हब हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और निर्यात प्रणालियों को एकीकृत करेंगे, जिससे हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत होगी।
स्थैतिक जीके टिप: पारादीप पोर्ट (ओडिशा) भारत के 12 प्रमुख बंदरगाहों में से एक है और प्रतिवर्ष 100 मिलियन टन से अधिक माल का संचालन करता है।
क्लस्टर-आधारित विकास मॉडल
क्लस्टर मॉडल साझा अवसंरचना, अनुसंधान सहयोग और लागत में कमी को सक्षम बनाता है।
यह विभिन्न हाइड्रोजन परियोजनाओं को एक क्षेत्र में एकीकृत कर तकनीकी दक्षता और सामूहिक वृद्धि को प्रोत्साहित करता है।
यह मॉडल नवाचार, निवेश और उद्योगों, स्टार्टअप्स और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर्स
हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर्स (HVIC) ढांचा उन क्षेत्रों की पहचान करता है जहाँ हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग की उच्च क्षमता है।
ये क्लस्टर प्रौद्योगिकी विकास, नीति निर्माण और वित्तीय सहायता का मार्गदर्शन करते हैं।
सरकार निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रही है ताकि भारत हरित ऊर्जा अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ सके।
स्थैतिक जीके तथ्य: “हाइड्रोजन वैली” की अवधारणा यूरोप में “क्लीन हाइड्रोजन पार्टनरशिप” के तहत शुरू हुई थी ताकि औद्योगिक कॉरिडोर में हाइड्रोजन उपयोग को तेज किया जा सके।
औद्योगिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा
बंदरगाहों को ग्रीन हाइड्रोजन हब घोषित करने से स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित होंगे।
इसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग, अनुसंधान और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
नवाचार और स्थिरता को बढ़ावा देकर यह पहल भारत को वैश्विक हरित ईंधन बाजार में एक अग्रणी खिलाड़ी बनाती है।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारत का लक्ष्य 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में नामित बंदरगाह | दीदयाल (गुजरात), वी.ओ. चिदंबरनार (तमिलनाडु), पारादीप (ओडिशा) |
घोषणा करने वाले | सर्बानंद सोनोवाल, केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री |
उद्देश्य | 2070 तक भारत के नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य का समर्थन |
अपनाया गया मॉडल | क्लस्टर-आधारित विकास दृष्टिकोण |
ढांचा (Framework) | हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर्स (HVIC) |
मुख्य क्षेत्र | ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और निर्यात |
स्थैतिक तथ्य | दीदयाल पोर्ट का पुराना नाम कांडला पोर्ट था |
राष्ट्रीय योजना | राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (2023 में प्रारंभ) |
वार्षिक उत्पादन लक्ष्य | 2030 तक 5 मिलियन टन |
वैश्विक पहल संदर्भ | क्लीन हाइड्रोजन पार्टनरशिप (यूरोप) |