आनुवंशिक संसाधनों पर वार्ता
भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने सरकार से आग्रह किया है कि वह पेरू के लीमा में 24–29 नवंबर, 2025 को होने वाली खाद्य और कृषि हेतु पौध आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA) की 11वीं गवर्निंग बॉडी बैठक में भारत के संप्रभु अधिकारों और किसानों के हितों की रक्षा करे।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि नीतिगत परिवर्तन भारत के आनुवंशिक संसाधनों पर नियंत्रण को कमजोर कर सकते हैं और राष्ट्रीय कानूनों द्वारा संरक्षित किसानों के अधिकारों को प्रभावित कर सकते हैं।
स्थिर जीके तथ्य: ITPGRFA को 2001 में FAO के अंतर्गत अपनाया गया था। इसका उद्देश्य खाद्य और कृषि के लिए पौध आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण और न्यायसंगत लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करना है।
प्रस्तावित संधि संशोधनों पर चिंता
वैज्ञानिकों ने संधि के लाभ–साझाकरण तंत्र (Benefit-Sharing Mechanism) में प्रस्तावित संशोधनों का विरोध किया है। इन परिवर्तनों से भारत के बीज संग्रहों तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर असीमित पहुँच मिल सकती है, जबकि न्यायसंगत मुआवजा सुनिश्चित नहीं होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रावधान राष्ट्रीय नियंत्रण को कमजोर करेगा और उन किसानों को नुकसान पहुँचाएगा जिन्होंने पीढ़ियों से कृषि विविधता को संरक्षित किया है।
स्थिर जीके तथ्य: भारत का “पौध किस्म संरक्षण और किसान अधिकार अधिनियम (PPV&FR Act) 2001” किसानों को उन किस्मों पर कानूनी अधिकार देता है जिन्हें वे संरक्षित और उगाते हैं।
भारत की कृषि जैव विविधता
भारत विश्व के सबसे समृद्ध जीन पूलों में से एक है, जिसमें लाखों बीज नमूने शामिल हैं जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मौजूदा संधि प्रणाली के तहत भारत ने पहले ही 70 लाख से अधिक आनुवंशिक नमूने साझा किए हैं, लेकिन बदले में मिलने वाले लाभ बहुत सीमित रहे हैं, जबकि अधिकांश लाभ बहुराष्ट्रीय बीज और जैव–प्रौद्योगिकी कंपनियों को मिले हैं।
स्थिर जीके टिप: राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR), नई दिल्ली पौध आनुवंशिक सामग्री के संरक्षण और अभिलेखन के लिए जिम्मेदार संस्था है।
अनिवार्य लाभ-साझाकरण प्रणाली की मांग
प्रमुख वैज्ञानिक दिनेश अबरोल, सरथ बाबू बलिजेपल्ली और सुमन सहाई ने कंपनियों के व्यावसायिक टर्नओवर से जुड़ा एक अनिवार्य सदस्यता मॉडल (Mandatory Subscription Model) लागू करने की मांग की है, जिससे स्रोत देशों और किसान समुदायों को उचित आर्थिक लाभ मिल सके।
यदि आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच वर्तमान 64 फसलों की सूची से आगे बढ़ाई जाती है, तो यह भारत के जैव विविधता अधिनियम 2002 का उल्लंघन होगा और घरेलू नियामक नियंत्रण को कमजोर करेगा।
भारत की कूटनीतिक जिम्मेदारी
वैज्ञानिकों ने भारत से आग्रह किया है कि वह विकासशील देशों और ग्लोबल साउथ के नेतृत्व में जैविक संपदाओं की सुरक्षा में अग्रणी भूमिका निभाए।
उन्होंने सिफारिश की है कि भारत कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचे (Legally Binding Framework) की वकालत करे, ताकि किसानों के आर्थिक हितों की रक्षा हो और आनुवंशिक संसाधनों पर भारत का संप्रभु नियंत्रण बना रहे।
स्थिर जीके तथ्य: भारत ने 2002 में ITPGRFA की पुष्टि (ratify) की थी और यह उन 149 हस्ताक्षरकर्ता देशों में शामिल है जो जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| कार्यक्रम | ITPGRFA गवर्निंग बॉडी का 11वां सत्र |
| स्थान | लीमा, पेरू |
| तिथि | 24–29 नवंबर 2025 |
| प्रमुख फोकस | भारत के पौध आनुवंशिक संसाधनों पर अधिकारों की रक्षा |
| प्रमुख वैज्ञानिक | दिनेश अबरोल, सरथ बाबू बलिजेपल्ली, सुमन सहाई |
| मुख्य चिंता | भारत के बीज संग्रहों तक असीमित अंतर्राष्ट्रीय पहुँच |
| प्रस्तावित सुधार | अनिवार्य लाभ-साझाकरण सदस्यता मॉडल |
| संबंधित भारतीय कानून | जैव विविधता अधिनियम (2002) और PPV&FR अधिनियम (2001) |
| जिम्मेदार भारतीय संस्था | राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR) |
| वैश्विक संधि | खाद्य और कृषि हेतु पौध आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ITPGRFA) |





