सतत खाद्य प्रणाली रिपोर्ट से प्राप्त निष्कर्ष
पर्यावरण एवं विज्ञान केंद्र (CSE) ने सतत खाद्य प्रणाली पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत की मिट्टियों में पोषक असंतुलन और कार्बनिक पदार्थ की गंभीर कमी को उजागर किया गया है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) योजना के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पोषक तत्वों की कमी भारत की कृषि स्थिरता (Agricultural Sustainability) के लिए बड़ा खतरा बन रही है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य:
CSE (Centre for Science and Environment) एक सार्वजनिक हित अनुसंधान और वकालत संगठन है जिसकी स्थापना 1980 में अनुप्रेरक पर्यावरणविद् अनिल अग्रवाल द्वारा नई दिल्ली में की गई थी। यह संस्था पर्यावरण, खाद्य प्रणाली और सतत विकास पर कार्य करती है।
भारत की मिट्टी में प्रमुख पोषक तत्वों की कमी
रिपोर्ट के अनुसार, SHC योजना के तहत जांचे गए नमूनों में से 64% में नाइट्रोजन (N) का स्तर बहुत कम पाया गया — जो फसलों की वृद्धि के लिए एक मुख्य पोषक तत्व है।
लगभग 48.5% मिट्टियों में कार्बनिक कार्बन (SOC) की कमी पाई गई, जो सूक्ष्मजीव गतिविधि और मिट्टी की संरचना के लिए आवश्यक है।
भारत के 43% उच्च जलवायु जोखिम वाले जिलों में भी SOC स्तर बहुत कम हैं, जिससे स्पष्ट है कि मिट्टी क्षरण और जलवायु असुरक्षा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति भी चिंताजनक है —
55.4% नमूनों में बोरॉन की कमी, और 35% में जिंक की कमी पाई गई है, जो पौधों की वृद्धि और मानव पोषण दोनों के लिए आवश्यक हैं।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान टिप:
भारत की मिट्टियों को 8 प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है — अवसादी (Alluvial), काली (Black), लाल (Red), लेटराइट (Laterite), शुष्क (Arid), पर्वतीय (Mountain), पीटी (Peaty) और वन मिट्टी (Forest Soils)।
यूरिया पर निर्भरता और उर्वरक असंतुलन
भारत का उर्वरक उपयोग अत्यधिक यूरिया–केंद्रित (Urea-Dependent) है —
2023–24 में कुल उर्वरक खपत का 68% हिस्सा यूरिया का था।
नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग पोषक तत्वों का संतुलन बिगाड़ देता है और मिट्टी की उत्पादकता को घटाता है।
रिपोर्ट में उर्वरक सब्सिडी नीति में सुधार (Fertiliser Subsidy Reform) की सिफारिश की गई है ताकि संतुलित पोषक तत्व उपयोग (Balanced Nutrient Application) को प्रोत्साहित किया जा सके और जैविक (Organic) व जैव–आधारित (Bio-based) उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाया जा सके।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य:
भारत ने 2010 में पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy – NBS) नीति शुरू की थी ताकि संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके, परंतु यूरिया इस नीति के दायरे से बाहर रखा गया था।
मिट्टी स्वास्थ्य पुनर्स्थापन के लिए सिफारिशें
रिपोर्ट में सरकार से मृदा निगरानी प्रणाली (Soil Monitoring System) को और व्यापक बनाने की सिफारिश की गई है —
इसमें केवल रासायनिक ही नहीं बल्कि भौतिक संकेतक (जैसे मिट्टी की बनावट और संघनन) तथा जैविक संकेतक (जैसे सूक्ष्मजीव गतिविधि) को भी शामिल करने का सुझाव दिया गया है।
साथ ही, बायोचार (Biochar) के उपयोग को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता, नमी संरक्षण और कार्बन भंडारण में मदद करता है — जो दीर्घकालिक कार्बन अवशोषण (Carbon Sequestration) और जलवायु अनुकूलन (Climate Resilience) के लिए आवश्यक है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत 2022–23 से एकीकृत किया गया है, जिससे मिट्टी की उर्वरता प्रबंधन प्रणाली (Soil Fertility Management) को पूरे देश में सुदृढ़ किया जा सके।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य:
SHC योजना की शुरुआत 2015 में कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य किसानों को मिट्टी की उर्वरता पर आधारित पोषक तत्व उपयोग मार्गदर्शन प्रदान करना है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| रिपोर्ट जारी करने वाला संगठन | पर्यावरण एवं विज्ञान केंद्र |
| CSE की स्थापना वर्ष | 1980 |
| संस्थापक | अनिल अग्रवाल |
| रिपोर्ट का मुख्य फोकस | सतत खाद्य प्रणाली और मृदा पोषक तत्व स्वास्थ्य |
| आंकड़ों का स्रोत | मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015) |
| कार्यान्वयन एजेंसी | कृषि और किसान कल्याण विभाग |
| कम नाइट्रोजन वाले नमूने | 64% |
| कम कार्बनिक कार्बन वाले नमूने | 48.5% |
| प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी | बोरॉन (55.4%), जिंक (35%) |
| यूरिया का हिस्सा (2023–24) | 68% |
| SHC योजना एकीकृत की गई | राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) – 2022–23 |
| प्रमुख सिफारिशें | उर्वरक नीति सुधार, मृदा निगरानी सुदृढ़ीकरण |
| बायोचार का उद्देश्य | उर्वरता, नमी संरक्षण, कार्बन भंडारण |
| सुझाए गए भौतिक संकेतक | मिट्टी की बनावट और संघनन |
| सुझाए गए जैविक संकेतक | सूक्ष्मजीव गतिविधि |
| जलवायु जोखिम संबंध | 43% उच्च जोखिम वाले जिलों में कम SOC स्तर |
| कमी के परिणाम | उत्पादकता में कमी और खाद्य सुरक्षा पर खतरा |
| संबंधित नीति | पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) |
| मुख्य संदेश | संतुलित मृदा प्रबंधन से ही सतत कृषि संभव है |





