तेज़ी से बढ़ती संभावना
CII और KPMG की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत की स्पेस इकॉनमी 2022 में 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2033 तक 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। इससे भारत की वैश्विक स्पेस इकॉनमी में हिस्सेदारी 2% से बढ़कर 8% हो जाएगी।
Static GK तथ्य: भारत का रिमोट सेंसिंग कार्यक्रम (IRS) 1988 में IRS-1A से शुरू हुआ था, जिसने देश में EO (Earth Observation) की रीढ़ तैयार की।
स्पेस सेवाओं में बदलता फोकस
रिपोर्ट बताती है कि अब ध्यान डाउनस्ट्रीम सेवाओं को व्यावसायिक बनाने पर है। इनमें शामिल हैं:
- पृथ्वी अवलोकन (EO)
- सैटेलाइट संचार
- नेविगेशन
इनका उपयोग दूरसंचार, कृषि, आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन और अवसंरचना निगरानी जैसे क्षेत्रों में किया जा रहा है।
विकास के प्रेरक और साधन
- लगभग 200 स्पेस स्टार्टअप्स सैटेलाइट तकनीक, प्रपल्शन और डेटा एनालिटिक्स में नवाचार कर रहे हैं।
- IN-SPACe (2020 में स्थापित) निजी भागीदारी को बढ़ावा देता है और मांग को संगठित करता है।
- भू–निधि पोर्टल शासन में स्पेस-आधारित डेटा को एकीकृत कर रहा है।
Static GK टिप: IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Centre) 2020 में Department of Space के अंतर्गत स्थापित हुआ।
विस्तार में चुनौतियाँ
- NavIC की सीमित क्षेत्रीय संरचना वैश्विक उपयोगिता को घटाती है।
- EO का व्यावसायिक बाज़ार अभी कमजोर और खंडित है।
- अधिक पूँजी की आवश्यकता, लंबा इनक्यूबेशन समय और नियामक अनिश्चितता निजी निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
- GST अस्पष्टता, डिजिटल टैक्सेशन और PPP राजस्व–साझाकरण भी अवरोधक हैं।
- स्पेस डेब्रिस, सुरक्षा खतरे और कुशल कार्यबल की कमी अतिरिक्त जटिलता लाते हैं।
नीतिगत पहल और सुधार
- भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 ने Non-Governmental Entities (NGE) को स्पेस गतिविधियों में पूर्ण भागीदारी की अनुमति दी।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), ISRO की व्यावसायिक शाखा (2019 में स्थापित), निर्यात और सेवाओं को आगे बढ़ा रही है।
- सरकार ने स्पेस सेक्टर में 100% FDI और ₹1,000 करोड़ का वेंचर कैपिटल फंड स्टार्टअप्स के लिए उपलब्ध कराया है।
Static GK तथ्य: NSIL की स्थापना मार्च 2019 में भारत सरकार द्वारा की गई थी।
2033 तक दृष्टिकोण
भारत 2033 तक एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है। सैटेलाइट सेवाओं और निर्यात में इसका योगदान महत्वपूर्ण होगा। आने वाला दशक नीतिगत स्पष्टता, निजी क्षेत्र की भागीदारी और कुशल कार्यबल विकास से निर्धारित होगा, जिससे स्पेस इकॉनमी राष्ट्रीय विकास का प्रमुख इंजन बनेगी।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
स्पेस इकॉनमी अनुमान | 2022 में USD 8.4 बिलियन से 2033 में USD 44 बिलियन |
वैश्विक हिस्सेदारी | 2% से बढ़कर 8% अनुमानित |
मुख्य फोकस क्षेत्र | पृथ्वी अवलोकन, सैटेलाइट संचार, नेविगेशन |
प्रमुख प्रेरक | 200 स्टार्टअप्स, IN-SPACe सुधार, भू-निधि पोर्टल |
मुख्य चुनौतियाँ | सीमित NavIC पहुँच, कमजोर EO बाज़ार, नियामक अनिश्चितता |
टैक्स मुद्दे | GST अस्पष्टता, PPP रेवेन्यू-शेयरिंग, डिजिटल टैक्सेशन |
नीतिगत सुधार | भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 (NGE भागीदारी) |
ISRO की व्यावसायिक शाखा | न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), 2019 |
निवेश समर्थन | 100% FDI और ₹1,000 करोड़ VC फंड |
रणनीतिक चिंता | स्पेस डेब्रिस, सुरक्षा जोखिम, कुशल कार्यबल की कमी |