सहारिया जनजाति का परिचय
सहारिया जनजाति भारत के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) में से एक है। यह मुख्यतः मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में पाई जाती है। इनकी जनसंख्या लगभग 6 लाख है। सहारिया लोग जंगलों के दूरदराज़ इलाकों में रहते हैं, इनके घर मिट्टी और पत्थरों से बने होते हैं। ये पारंपरिक आस्थाओं को मानते हैं, लेकिन इनमें हिंदू संस्कृति का प्रभाव भी दिखता है।
Static GK तथ्य: सहारिया जनजाति का प्रसिद्ध स्वांग नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है।
क्षय रोग का बोझ
इस जनजाति में टीबी की दर 1,518 से 3,294 प्रति एक लाख पाई गई है, जो भारत की राष्ट्रीय औसत दर से कहीं अधिक है।
कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और कठिन जीवन परिस्थितियाँ इस समस्या को और बढ़ाती हैं। हाल तक इनके टीबी संक्रमण में आनुवंशिक भूमिका पर विशेष अध्ययन नहीं हुआ था।
आनुवंशिक अध्ययन और शोध संस्थान
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं ने माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए पर आधारित अध्ययन किया।
- 729 व्यक्तियों के नमूनों का परीक्षण किया गया, जिनमें 140 सहारिया और 589 पड़ोसी समुदायों से थे।
- अध्ययन का फोकस मातृ हैप्लोग्रुप्स पर था, जिससे मातृवंश और आनुवंशिक इतिहास का पता चलता है।
Static GK टिप: माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mtDNA) केवल मां से प्राप्त होता है और जनसंख्या आनुवंशिकी शोध में उपयोगी है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- सहारिया समुदाय में दो दुर्लभ हैप्लोग्रुप्स N5 और X2 पाए गए, जो पड़ोसी समुदायों में अनुपस्थित हैं।
- ये हैप्लोग्रुप्स संभवतः पश्चिम भारत से लौह युग (Early Iron Age) में जीन फ्लो के माध्यम से आए।
- Founder Effect के कारण ये वंशावली सहारिया जनजाति में केंद्रित हो गई।
- शोधकर्ताओं का मानना है कि ये आनुवंशिक कारक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे सहारिया लोग टीबी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
यह भारत का पहला अध्ययन है जो किसी जनजातीय समूह की आनुवंशिक संरचना और टीबी संवेदनशीलता के बीच सीधा संबंध दिखाता है।
यह दर्शाता है कि आनुवंशिक कारकों को सामाजिक और पर्यावरणीय कारणों (जैसे कुपोषण, चिकित्सा अभाव) के साथ मिलाकर समझना आवश्यक है।
ऐसी जानकारी कमजोर समुदायों के लिए लक्षित टीबी नियंत्रण कार्यक्रम बनाने में मददगार होगी।
भविष्य की दिशा
यह शोध माइटोकॉन्ड्रियल कार्यप्रणाली और रोग मार्गों पर नए अध्ययन की संभावनाएँ खोलता है।
भविष्य के शोध यह देख सकते हैं कि आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों की परस्पर क्रिया रोग जोखिमों को कैसे आकार देती है।
इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियाँ और मज़बूत होंगी और जनजातीय एवं हाशिए पर रहने वाले समुदायों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलेंगी।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
अध्ययन की गई जनजाति | सहारिया जनजाति |
वर्गीकरण | विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) |
राज्य | मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश |
जनसंख्या | लगभग 6 लाख |
टीबी दर | 1,518–3,294 प्रति एक लाख |
राष्ट्रीय औसत टीबी दर | सहारिया जनजाति से कम |
संस्थान | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय व सहयोगी संस्थान |
नमूना आकार | 729 (140 सहारिया + 589 पड़ोसी समुदाय) |
विशिष्ट हैप्लोग्रुप्स | N5 और X2 |
जीन फ्लो काल | लौह युग (Early Iron Age) |