चुनावी पारदर्शिता पर बढ़ती बहस
2025 में भारत में वोटर लिस्ट की पारदर्शिता को लेकर मांग तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से सभी राजनीतिक दलों को मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट उपलब्ध कराने की मांग की है। यह मांग वोट चोरी, डुप्लीकेट वोटरों और कई निर्वाचन क्षेत्रों में गड़बड़ियों के आरोपों के बाद उठी है।
वोटर लिस्ट की मौजूदा प्रणाली
वोटर लिस्ट को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है ताकि नए नाम जोड़े जा सकें, अयोग्य मतदाताओं को हटाया जा सके और पता बदला जा सके। इस प्रक्रिया को प्रबंधित करने के लिए ECI ERONET नामक टूल का उपयोग करता है। अंतिम लिस्ट इमेज पीडीएफ फाइल या प्रिंटेड रूप में प्रकाशित की जाती है, जिनमें मतदाताओं की फोटो होती है। हालांकि, ऑनलाइन पीडीएफ में फोटो एम्बेडेड नहीं होते।
स्थैटिक GK तथ्य: भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी। इस दिन को हर साल राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इमेज पीडीएफ की सीमाएँ
इमेज पीडीएफ मशीन सर्चेबल नहीं होते, जिससे गड़बड़ियों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। भारत में 990 मिलियन से अधिक मतदाता हैं, इसलिए डुप्लीकेट की पहचान मैनुअली लगभग असंभव है। उदाहरण के लिए, कांग्रेस ने एक बार बेंगलुरु की एक सीट में मैनुअल समीक्षा से 12,000 डुप्लीकेट वोटरों की पहचान की थी। बिना टेक्स्ट डेटा के, धोखाधड़ी की राष्ट्रीय स्तर पर जांच अत्यंत अक्षम है।
मशीन रीडेबल लिस्ट के लाभ
यदि वोटर लिस्ट मशीन रीडेबल हो, तो कंप्यूटरीकृत खोज और डुप्लीकेट की स्वचालित जांच संभव हो सकेगी। राजनीतिक दल और स्वतंत्र संस्थान गड़बड़ियों की निगरानी अधिक कुशलता से कर सकेंगे। पी.जी. भट जैसे कार्यकर्ताओं ने पहले भी इस डेटा की उपयोगिता दिखाई थी, जिसने 2018 कर्नाटक चुनाव से पहले फर्जी वोटर जोड़ने का खुलासा किया था।
EC द्वारा रोक लगाने का कारण
2018 में ECI ने अपनी वेबसाइट से मशीन रीडेबल लिस्ट हटा दी थी। इसका कारण मतदाताओं की गोपनीयता और विदेशी दुरुपयोग का डर बताया गया। तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ.पी. रावत ने यह चिंता जताई थी कि मतदाताओं के पूरे नाम और पते उजागर करना जोखिमपूर्ण हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2018 में इस विचार का समर्थन किया और कहा कि राजनीतिक दल चाहें तो इमेज पीडीएफ को खुद ही सर्चेबल फॉर्मेट में बदल सकते हैं।
स्थैटिक GK टिप: भारत का सुप्रीम कोर्ट 28 जनवरी 1950 को उद्घाटित हुआ था, संविधान लागू होने के सिर्फ दो दिन बाद।
तकनीकी और वित्तीय चुनौतियाँ
हजारों पीडीएफ फाइल को टेक्स्ट में बदलने के लिए ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR) तकनीक की जरूरत होती है। चूंकि वोटर लिस्ट छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित होती है, इसलिए इसे बड़े पैमाने पर कन्वर्ट करना महंगा है। अनुमान है कि एक संशोधित लिस्ट को प्रोसेस करने में लगभग 40,000 अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है। यही वजह है कि ECI मशीन रीडेबल डेटा देने में हिचकिचा रहा है।
पारदर्शिता और गोपनीयता का संतुलन
पारदर्शिता समर्थक तर्क देते हैं कि राजनीतिक दलों के पास पहले से OCR टूल्स हैं, इसलिए आधिकारिक डेटा जारी करने से जोखिम नहीं बढ़ेगा। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे मतदाताओं के नाम और पते आसानी से उजागर होकर गोपनीयता खतरे में पड़ सकती है। इसलिए भारतीय लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब चुनावी पारदर्शिता और डेटा प्रोटेक्शन के बीच संतुलन खोजने की है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
मांग दोबारा उठी | 2025 |
EC का टूल | ERONET |
भारत में कुल मतदाता | 990 मिलियन से अधिक |
मशीन रीडेबल लिस्ट हटाई गई | 2018 |
EC की मुख्य चिंता | मतदाता गोपनीयता और विदेशी दुरुपयोग |
OCR लागत (प्रति संशोधन) | लगभग $40,000 |
सुप्रीम कोर्ट का रुख | दल खुद PDF को कन्वर्ट करें |
डुप्लीकेट वोटरों का उदाहरण | बेंगलुरु में 12,000 |
डेटा विश्लेषण से जुड़े कार्यकर्ता | पी.जी. भट |
राष्ट्रीय मतदाता दिवस | 25 जनवरी |