फसल अवशेष को समझना
फसल अवशेष से तात्पर्य उन डंठलों, पत्तियों और पौधों के अवशेषों से है जो कटाई के बाद खेतों में बचे रहते हैं। भारत में धान, गेहूं, मक्का और गन्ने से उत्पन्न अवशेष सबसे सामान्य हैं। किसान अक्सर लागत और समय बचाने के लिए इन्हें जलाकर खेत खाली करते हैं।
स्थैटिक GK तथ्य: भारत हर साल लगभग 500 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है, जिसमें पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश बड़े योगदानकर्ता हैं।
मृदा स्वास्थ्य पर प्रभाव
अवशेष जलाने से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की भारी हानि होती है। इससे मिट्टी की उर्वरता घटती है और दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता कम हो जाती है।
स्थैटिक GK तथ्य: कृषि मंत्रालय के अनुसार, एक टन धान अवशेष जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन और 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस नष्ट हो जाते हैं।
वायु गुणवत्ता को खतरा
अवशेष जलाने से निकलने वाले कण पदार्थ (PM), कार्बन मोनोऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसें भारत की वायु प्रदूषण समस्या को और गंभीर बना देती हैं। यह विशेष रूप से सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग एपिसोड को बढ़ाता है।
स्थैटिक GK तथ्य: पराली जलाना उत्तरी भारत में सर्दियों के दौरान PM2.5 स्तर का लगभग 25–30% योगदान देता है।
कृषि-पारिस्थितिकी में जैव विविधता का प्रभाव
नए अध्ययन से पता चला है कि फसल अवशेष जलाना आर्थ्रोपॉड्स, पक्षियों और मृदा जीवों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। मकड़ियों, लेडीबर्ड्स, मेंढकों और केंचुओं की कमी से प्राकृतिक कीट नियंत्रण घटता है, जिससे कीट प्रकोप बढ़ जाते हैं। यह खाद्य शृंखलाओं को असंतुलित करता है और खेत के पारिस्थितिक तंत्र को कमजोर करता है।
प्राकृतिक शिकारी का विघटन
शिकारी कीटों की कमी से श्रृंखलाबद्ध प्रभाव (cascading effects) उत्पन्न होते हैं। बिना नियंत्रण के कीट तेजी से फैलते हैं और किसान रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर हो जाते हैं। इससे मिट्टी और जैव विविधता को और अधिक नुकसान होता है।
स्थैटिक GK टिप: लेडीबर्ड्स को एफिड्स (भारत में पाए जाने वाले प्रमुख फसल कीट) का प्राकृतिक शिकारी माना जाता है।
टिकाऊ विकल्प
विशेषज्ञ अवशेष प्रबंधन के लिए हैप्पी सीडर, मल्चिंग, कम्पोस्टिंग और बायोगैस उत्पादन जैसे विकल्प सुझाते हैं। ये विधियाँ पोषक तत्वों को मिट्टी में वापस लाती हैं, प्रदूषण घटाती हैं और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती हैं।
स्थैटिक GK तथ्य: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) हैप्पी सीडर तकनीक को बढ़ावा देती है, जिससे धान की पराली हटाए बिना सीधे गेहूं की बुवाई संभव है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
फसल अवशेष की परिभाषा | कटाई के बाद खेत में बची पौध सामग्री |
भारत में वार्षिक फसल अवशेष | लगभग 500 मिलियन टन |
प्रमुख अवशेष जलाने वाले राज्य | पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश |
धान अवशेष जलाने से पोषक तत्व हानि | 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फॉस्फोरस प्रति टन |
उत्तरी भारत में PM2.5 में योगदान | सर्दियों में 25–30% |
जैव विविधता पर प्रभाव | आर्थ्रोपॉड्स, पक्षियों, प्राकृतिक शिकारी की कमी |
प्राकृतिक शिकारी के उदाहरण | मकड़ियाँ, लेडीबर्ड्स, मेंढक, केंचुए |
शिकारी की कमी का परिणाम | कीट प्रकोप और कीटनाशक निर्भरता |
टिकाऊ विकल्प | मल्चिंग, कम्पोस्टिंग, हैप्पी सीडर, बायोगैस |
हैप्पी सीडर को बढ़ावा देने वाला संगठन | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) |