पृष्ठभूमि
भारत और जापान ने अपने रणनीतिक साझेदारी को नए आयाम पर पहुँचाते हुए क्रिटिकल मिनरल्स सहयोग समझौता किया है। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान हुआ और दोनों देशों के बीच रक्षा औद्योगिक सहयोग को और गहराई देने वाला है। इसके तहत खनिज अन्वेषण, प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग के लिए एक संरचित ढाँचा तैयार किया गया है।
क्रिटिकल मिनरल्स का महत्व
क्रिटिकल मिनरल्स रक्षा उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। भारत का लक्ष्य है कि इनकी आयात निर्भरता को कम किया जाए और सुरक्षित व विविधीकृत आपूर्ति शृंखला बनाई जाए। जापान खनिज प्रसंस्करण और रिफाइनिंग तकनीक में अग्रणी है। इस सहयोग से आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ता सुनिश्चित होगी।
स्थिर जीके तथ्य: लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ एलिमेंट्स जैसे खनिज रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और विश्वभर की सरकारें इन्हें आपूर्ति जोखिम के कारण “क्रिटिकल” मानती हैं। भारत इन खनिजों के शीर्ष उपभोक्ताओं में शामिल है।
सहयोग के प्रमुख स्तंभ
सरकारी-निजी साझेदारी
यह समझौता दोनों देशों के सरकारी निकायों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है। इससे नीति-निर्माण, निवेश और तकनीकी हस्तांतरण के समन्वय में मदद मिलेगी और नवाचार व क्षमता निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
संयुक्त अन्वेषण और प्रोसेसिंग
भारत और जापान मिलकर खनिज भंडारों का अन्वेषण, प्रसंस्करण संयंत्रों में निवेश और खनिज रिफाइनिंग करेंगे। यह समग्र दृष्टिकोण — कच्चे खनिज से तैयार सामग्री तक — घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन को बढ़ाएगा और रक्षा व नागरिक उद्योगों को सहारा देगा।
स्थिर जीके टिप: भारत मिका, ग्रेफाइट और ताँबे के भंडारों में समृद्ध है और केरल व ओडिशा जैसे राज्यों में रेयर अर्थ तत्वों की संभावनाएँ हैं। जापान खनिज भंडार में कमज़ोर होने के बावजूद रिफाइनिंग तकनीक और निवेश क्षमता में अग्रणी है।
रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव
रक्षा औद्योगिक आधार को मज़बूत करना
क्रिटिकल मिनरल्स को द्विपक्षीय ढाँचे में शामिल करने से भारत की रक्षा आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ होगी। जापान की उन्नत प्रोसेसिंग तकनीक भारत की संसाधन क्षमता के साथ मिलकर एक सशक्त रक्षा औद्योगिक कॉरिडोर बनाएगी। यह भारत के आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप है।
आर्थिक विकास और तकनीकी हस्तांतरण
यह सहयोग खनिज–समृद्ध क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा विकास, विदेशी निवेश और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देगा। साथ ही, यह तकनीकी हस्तांतरण सुनिश्चित करेगा जिससे भारत की खनिज परिष्करण और मूल्य संवर्धन क्षमता मज़बूत होगी।
आगे की चुनौतियाँ
समझौते को लागू करने में नियामकीय ढाँचे, पर्यावरणीय मानकों और लॉजिस्टिक समस्याओं से जूझना होगा। साथ ही, छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) को समान अवसर सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा ताकि लाभ केंद्रित न हो। लेकिन, स्थापित सरकारी–निजी तंत्र इन चुनौतियों का समाधान सहयोगात्मक ढंग से करेगा।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
साझेदारी | पीएम मोदी की जापान यात्रा के दौरान भारत-जापान क्रिटिकल मिनरल्स सहयोग |
शामिल क्षेत्र | दोनों देशों की सरकारी संस्थाएँ और निजी कंपनियाँ |
गतिविधियाँ | खनिज अन्वेषण, प्रोसेसिंग, रिफाइनिंग |
रणनीतिक लाभ | रक्षा आपूर्ति शृंखला को मज़बूती, आत्मनिर्भर भारत को समर्थन |
आर्थिक पक्ष | निवेश-आधारित विकास, तकनीकी हस्तांतरण, रोज़गार सृजन |
प्रमुख खनिज | लिथियम, कोबाल्ट, रेयर अर्थ, मिका, ग्रेफाइट, ताँबा |
दीर्घकालिक प्रभाव | आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ता और औद्योगिक आधुनिकीकरण |