प्राचीन अभिलेखों की खोज
तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग (TNSDA) ने मयिलादुथुरै ज़िले के सीर्काझी स्थित थोनीयप्पर (सत्तैनाथर) मंदिर में हाल ही में मिली 483 ताम्रपट्टियों का विस्तृत अध्ययन प्रारंभ किया है।
इन ताम्रपट्टियों पर पवित्र थेवारम भक्ति गीतों की खुदाई की गई है, जो तमिलनाडु के लिए एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक और आध्यात्मिक खोज है।
प्रत्येक ताम्रपट पर दोनों ओर लगभग 10 से 12 पंक्तियों में तमिल श्लोक अंकित हैं। ये शिलालेख किसी निश्चित क्रम का पालन नहीं करते, जिससे संकेत मिलता है कि इन्हें विभिन्न कालों में मंदिर के कई विद्वानों द्वारा लिखा गया होगा।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य: दक्षिण भारत में चोल और पांड्य काल के दौरान ताम्रपट्टियों पर दान, धार्मिक ग्रंथ और राजकीय आदेश अंकित करना प्रचलित था, क्योंकि तांबा एक टिकाऊ और पवित्र धातु माना जाता था।
थेवारम भक्ति गीतों का महत्व
थेवारम भक्ति गीत (Thevaram Hymns) शैव सिद्धांत साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग हैं, जो भगवान शिव की स्तुति में रचित हैं।
इन गीतों की रचना नायनमार संतों — तिरुनवुक्करसर (अप्पर), तिरुग्नानसंबंधर और सुन्दरर ने 7वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी के बीच की थी।
ये भक्तिपूर्ण रचनाएँ तमिल भक्ति आंदोलन का आधार बनीं, जिन्होंने मंदिर पूजा पद्धति और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया।
सीर्काझी की खोज विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि माना जाता है कि थेवारम गीतों की उत्पत्ति इसी क्षेत्र से हुई थी।
तिरुग्नानसंबंधर, प्रमुख नायनमार संतों में से एक, का जन्म सीर्काझी में हुआ था — जिससे यह खोज तमिल शैव परंपरा से गहराई से जुड़ी हुई है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान टिप: थेवारम, तिरुमुरै (Tirumurai) के पहले सात खंडों में सम्मिलित है — यह बारह खंडों का शैव भक्तिपूर्ण संग्रह है, जो तमिल साहित्य में अत्यंत पूजनीय है।
पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व
ताम्रपट्टियों के साथ-साथ पुरातत्वविदों ने 23 पंचलोह प्रतिमाएँ भी खोजी हैं, जिससे मंदिर का ऐतिहासिक महत्व और बढ़ गया है।
पंचलोह का अर्थ है पाँच धातुएँ — सोना, चाँदी, तांबा, जस्ता और लोहा — जिनसे प्राचीन दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रतिमाएँ बनाई जाती थीं।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज संभवतः चोल राजवंश (9वीं–13वीं शताब्दी ई.) की है, जो अपने मंदिर निर्माण और शैव परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध था।
चोल शासक अक्सर ताम्रपट्टियों पर दान, भूमि अनुदान, और मंदिर अनुष्ठानों का विवरण अंकित करवाते थे, जिससे ये अभिलेख उस काल की प्रशासनिक और धार्मिक प्रणालियों के अध्ययन के लिए अत्यंत मूल्यवान स्रोत हैं।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य: तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग (TNSDA) की स्थापना 1961 में की गई थी और यह राज्य के स्मारकों, शिलालेखों और विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।
संरक्षण और अनुसंधान प्रयास
TNSDA वर्तमान में इन ताम्रपट्टियों का वैज्ञानिक संरक्षण और प्रलेखन (Documentation) कर रहा है।
इसमें लिपि विश्लेषण, भाषाई अध्ययन और धातु संरचना परीक्षण (Metallurgical Analysis) शामिल हैं।
उन्नत इमेजिंग तकनीकों (Advanced Imaging Techniques) का उपयोग घिसे हुए अक्षरों को पढ़ने के लिए किया जा रहा है।
अध्ययन पूर्ण होने पर, विभाग इन ग्रंथों को प्रकाशित करने की योजना बना रहा है ताकि शोधकर्ताओं और आम जनता को इन तक पहुँच मिल सके।
यह खोज प्राचीन तमिल भक्ति संस्कृति, अभिलेख विज्ञान (Epigraphy) और तमिल लिपि के विकास की समझ में नया दृष्टिकोण जोड़ेगी।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान टिप: अभिलेख विज्ञान (Epigraphy) वह शाखा है जो प्राचीन शिलालेखों का अध्ययन करती है, जिससे शासन, भाषा विकास और सांस्कृतिक आदान–प्रदान के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) | 
| खोज का स्थान | थोनीयप्पर (सत्तैनाथर) मंदिर, सीर्काझी, मयिलादुथुरै ज़िला | 
| ताम्रपट्टियों की संख्या | 483 | 
| अभिलेखों का प्रकार | दोनों ओर खुदे हुए थेवारम भक्ति गीत | 
| संबंधित संत | तिरुनवुक्करसर, तिरुग्नानसंबंधर, सुन्दरर | 
| रचना काल | 7वीं–9वीं शताब्दी ईस्वी | 
| अतिरिक्त खोजें | 23 पंचलोह प्रतिमाएँ | 
| जिम्मेदार संस्था | तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग (TNSDA) | 
| संभावित ऐतिहासिक काल | चोल राजवंश काल | 
| साहित्यिक संग्रह | थेवारम (तिरुमुरै का हिस्सा) | 
| सांस्कृतिक महत्व | तमिल शैव भक्ति परंपरा और प्रारंभिक भक्तिपूर्ण साहित्य को दर्शाता है | 
 
				 
															





