हिमालयी राज्यों में NDMA सर्वेक्षण
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने जम्मू-कश्मीर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (J&K SDMA) के साथ मिलकर जम्मू–कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बादल फटने और अचानक बाढ़ पर सर्वेक्षण शुरू किया है। दुर्गम क्षेत्रों में ISRO की सैटेलाइट मैपिंग से संवेदनशील क्षेत्रों का अध्ययन किया जा रहा है।
Static GK तथ्य: NDMA की स्थापना 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुई थी और इसके अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं।
सर्वेक्षण के उद्देश्य
इस सर्वे का मकसद नदियों और ग्लेशियल झीलों में अचानक पानी बढ़ने के स्रोतों का पता लगाना है। सैटेलाइट इमेजरी से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की निगरानी की जा रही है। भूवैज्ञानिक, जलवैज्ञानिक और जलवायु संबंधी डेटा को मिलाकर रोकथाम और समाधान रणनीतियाँ सुझाई जाएंगी।
Static GK तथ्य: हिमालयी पट्टी में भारत की 2000 से अधिक ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से कई ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) के प्रति संवेदनशील हैं।
क्लाउडबर्स्ट और फ्लैश फ्लड्स के कारण
क्लाउडबर्स्ट तब होता है जब कम समय में अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे पानी इकट्ठा होकर बहाव पैदा करता है। हिमालय में पिघलते ग्लेशियरों से उत्पन्न GLOFs, सूक्ष्म-भूकंपीय गतिविधि और दरार वाली चट्टानें स्थिति को और बिगाड़ती हैं। जलवायु परिवर्तन ग्लेशियर पिघलने को तेज करता है, जिससे आपदाएँ बार-बार होती हैं।
हालिया प्रभाव
पिछले वर्षों में हिमालयी राज्यों में लगातार क्लाउडबर्स्ट हुए हैं। उत्तराखंड के धराली गाँव की बस्तियाँ मलबे में दब गईं। जम्मू-कश्मीर के रामबन और रियासी जिलों में फ्लैश फ्लड्स से जन और घरों का नुकसान हुआ। ये घटनाएँ हिमालयी तलहटी की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।
Static GK टिप: 2013 का केदारनाथ बाढ़ हादसा भारत की सबसे भीषण फ्लैश फ्लड आपदाओं में से एक था।
आपदा-रोधी अवसंरचना
विशेषज्ञों ने उच्च जोखिम क्षेत्रों में भूकंप–रोधी इमारतों, पुलों और जलविद्युत संरचनाओं पर जोर दिया है। जापान की भूकंपीय इंजीनियरिंग तकनीक को आदर्श मॉडल माना जा रहा है। वहीं, सिक्किम जैसे राज्यों ने भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण पर रोक लगाकर जोखिम कम किया है।
भूकंपीयता और जलवायु परिवर्तन का संबंध
हिमालय एक भूकंप–जन्य क्षेत्र है, जहाँ छोटे-छोटे भूकंप चट्टानों को तोड़ते रहते हैं। ग्लेशियर पिघलने से बर्फ की मोटाई घटती है, जिससे लिथोस्फेरिक संतुलन बदलता है और भूकंपीयता बढ़ती है। यह संयोजन क्षेत्र में बहु-स्तरीय आपदा जोखिम पैदा करता है।
भविष्य की तैयारी
सर्वेक्षण का फोकस अर्ली वार्निंग सिस्टम, ग्लेशियल झीलों की निगरानी और संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण है। वैज्ञानिक उपकरणों के साथ स्थानीय समुदाय के अनुभवों को जोड़कर आपदा तैयारी को मजबूत किया जाएगा। दीर्घकालिक समाधान के लिए सतत अवसंरचना और वनों व नदियों का संरक्षण अहम रहेगा।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
NDMA सर्वेक्षण राज्य | जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश |
साझेदार संगठन | NDMA, J&K SDMA, ISRO |
अध्ययन की मुख्य आपदाएँ | क्लाउडबर्स्ट और फ्लैश फ्लड्स |
प्रयुक्त तकनीक | ISRO सैटेलाइट मैपिंग |
पहचाने गए कारण | अत्यधिक वर्षा, GLOFs, भूकंपीय गतिविधि, जलवायु परिवर्तन |
प्रमुख प्रभावित क्षेत्र | धराली (उत्तराखंड), रामबन और रियासी (J&K) |
वैश्विक संदर्भ मॉडल | जापान की भूकंप-रोधी संरचना |
ऐतिहासिक आपदा संदर्भ | 2013 केदारनाथ बाढ़ |
रोकथाम उपाय | खतरे वाले क्षेत्रों का मानचित्रण, आपदा-रोधी निर्माण |
दीर्घकालिक लक्ष्य | आपदा-रोधी हिमालयी विकास |