करूर में खोज
हाल ही में तमिलनाडु के करूर ज़िले की शंकरनमलाई पहाड़ी पर तीन चोल कालीन शिलालेख खोजे गए हैं। ये शिलालेख 12वीं शताब्दी के हैं और कुलोत्तुंग चोल III (1178–1218 ई.) के शासनकाल से संबंधित हैं। ये उस युग के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन की झलक प्रदान करते हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: करूर, जो अमरावती नदी के किनारे स्थित है, प्रारंभिक चेरा राजवंश की राजधानी था और बाद में चोलों का प्रमुख गढ़ बना।
शिलालेखों की सामग्री
इन 38 पंक्तियों वाले तमिल शिलालेखों में एक स्थानीय मंदिर के रखरखाव हेतु भूमि दान का विवरण दर्ज है। इसमें दान की गई भूमि की सीमाएँ, कुएँ और वृक्षों का उल्लेख मिलता है। यह उस समय की कृषि–आधारित अर्थव्यवस्था और मंदिर–केंद्रित प्रशासन को उजागर करता है।
स्थैतिक जीके तथ्य: चोल वंश अपनी विस्तृत शिलालेख परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, दक्षिण भारत में 10,000 से अधिक शिलालेख दर्ज किए गए हैं।
मूर्तिकारों का उल्लेख
इन शिलालेखों में कलिंगरायण, कचिरायण और विझुपथरायण जैसे मूर्तिकारों के नाम दर्ज हैं। यह बताता है कि मध्यकालीन दक्षिण भारत में शिल्पियों और कारीगरों को सम्मानजनक पहचान दी जाती थी। मंदिर केवल धार्मिक केंद्र ही नहीं बल्कि कला और स्थापत्य के भी प्रमुख केंद्र थे।
स्थैतिक जीके टिप: चोलों ने थंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर (यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) बनवाया था, जिसे राजा राजा चोल I ने 1010 ई. में पूरा कराया।
प्रतीकात्मक नक्काशी
शिलालेखों के अलावा यहाँ सांड और मानव आकृतियों की नक्काशी भी मिली है। माना जाता है कि ये चोल काल से भी पहले की हैं। कुछ चिह्न अनुष्ठानों और मानव बलि से जुड़ी प्रथाओं की ओर संकेत करते हैं, जिनकी पुष्टि हेतु और शोध की आवश्यकता है। यह दर्शाता है कि यह स्थल संभवतः चोल संरक्षण से पहले ही एक अनुष्ठानिक स्थल रहा होगा।
भौगोलिक संदर्भ
यह स्थल सीथलवई पंचायत, कृष्णरायपुरम तालुक, करूर ज़िला में स्थित है। करूर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि यह प्राचीन व्यापार मार्गों पर स्थित था और चेरों, चोलों और बाद में नायकों का प्रमुख केंद्र रहा।
स्थैतिक जीके तथ्य: करूर का उल्लेख संगम युगीन तमिल साहित्य में भी मिलता है, जहाँ इसे एक समृद्ध व्यापार और सांस्कृतिक केंद्र बताया गया है।
ऐतिहासिक शोध के लिए महत्व
इन शिलालेखों की खोज चोल कालीन अभिलेखों की सूची को और समृद्ध करती है। यह हमें भूमि प्रबंधन, मंदिर अर्थव्यवस्था, कारीगरों के योगदान और स्थानीय परंपराओं के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करती है। यह खोज चोल साम्राज्य के जीवन और शासन को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
स्थान | शंकरनमलाई पहाड़ी, सीथलवई पंचायत, करूर ज़िला |
राजवंश | चोल वंश |
काल | कुलोत्तुंग चोल III (1178–1218 ई.) |
शिलालेखों की संख्या | तीन |
भाषा | तमिल |
शिलालेख की लंबाई | 38 पंक्तियाँ |
मुख्य विवरण | भूमि दान, मंदिर रखरखाव, सीमाएँ, कुएँ, वृक्ष |
उल्लेखित मूर्तिकार | कलिंगरायण, कचिरायण, विझुपथरायण |
अन्य नक्काशी | सांड, मानव आकृतियाँ, अनुष्ठानिक चिह्न |
ऐतिहासिक महत्व | मंदिर अर्थव्यवस्था और मध्यकालीन कला की मान्यता |