संवैधानिक आधार
न्याय तक पहुँच लोकतंत्र का मूल स्तंभ है। भारतीय संविधान अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा और अनुच्छेद 39A के तहत मुफ़्त कानूनी सहायता का प्रावधान करता है। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि आर्थिक या सामाजिक बाधाओं के कारण किसी को भी न्याय से वंचित न किया जाए।
स्थिर जीके तथ्य: अनुच्छेद 39A को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया था।
न्याय तक पहुँच की प्रमुख बाधाएँ
भौगोलिक चुनौतियाँ
न्यायालय और विधि विद्यालय प्रायः शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जिससे ग्रामीण और दूरस्थ नागरिकों की पहुँच सीमित हो जाती है। लंबी दूरी और अपर्याप्त अवसंरचना न्याय को अप्राप्य बनाती है।
भाषाई सीमाएँ
कानूनी शिक्षा और कार्यवाही अंग्रेज़ी पर आधारित होने से केवल क्षेत्रीय भाषाओं को जानने वाले नागरिकों के लिए यह बाधा बनती है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में समावेशिता घटती है।
आर्थिक कठिनाइयाँ
मुकदमेबाज़ी की ऊँची लागत, वकीलों की फीस और कानूनी शिक्षा का महँगा होना न्याय को कमजोर वर्गों के लिए अप्राप्य बना देता है। वित्तीय संसाधनों की कमी कई लोगों को न्यायालय से दूर रखती है।
सामाजिक और संरचनात्मक बाधाएँ
जाति व्यवस्था, व्यापक अशिक्षा और कानूनी जागरूकता का अभाव हाशिये पर मौजूद समूहों को अपने अधिकारों का दावा करने से रोकता है।
डिजिटल और अवसंरचनात्मक अंतर
डिजिटल विभाजन और निचली अदालतों में अवसंरचना की कमी सुधारों को धीमा कर देती है। भारत की ज़िला और अधीनस्थ अदालतों में 4.6 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
स्थिर जीके तथ्य: 2025 तक भारत दुनिया की सबसे बड़ी न्यायिक लंबित मामलों की सूची में शामिल है, जहाँ सभी स्तरों पर 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
संस्थागत पहलें
न्याय वितरण और कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशन
यह पहल अदालत अवसंरचना सुधारने, देरी कम करने और संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987
इस अधिनियम ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA), राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और लोक अदालतों की स्थापना की ताकि मुफ़्त कानूनी सेवाएँ और वैकल्पिक विवाद समाधान प्रदान किए जा सकें।
स्थिर जीके टिप: पहली लोक अदालत 1982 में गुजरात में आयोजित हुई थी।
ई-कोर्ट्स मिशन मोड प्रोजेक्ट
इस परियोजना का उद्देश्य अदालत अभिलेखों का डिजिटलीकरण, ई-फाइलिंग और वर्चुअल सुनवाई को बढ़ावा देना है ताकि देरी कम हो और पारदर्शिता बढ़े।
आगे की राह
भाषाई समावेशन
न्यायालय की कार्यवाही और कानूनी शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना प्रणाली को अधिक सुलभ बनाएगा।
कानूनी शिक्षा में वित्तीय सहायता
छात्रवृत्ति, वजीफे और शुल्क माफी कमजोर वर्गों के छात्रों को विधि की पढ़ाई करने में मदद करेंगे।
स्थानीय पहुँच का विस्तार
ज़िला अदालतों, विधि विद्यालयों और विधिक सहायता केंद्रों की संख्या बढ़ाने से दूरस्थ नागरिकों की निर्भरता शहरी केंद्रों पर कम होगी।
प्रौद्योगिकी-आधारित सुधार
एआई आधारित उपकरणों, ऑनलाइन विवाद समाधान और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग न्याय वितरण को तेज़ करेगा और लंबित मामलों को घटाएगा।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने वाले अनुच्छेद | अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 39A |
अनुच्छेद 39A जोड़े जाने का वर्ष | 1976 (42वाँ संशोधन) |
निचली अदालतों में लंबित मामले | 4.6 करोड़ से अधिक |
न्याय वितरण हेतु राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत | 2011 |
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम | 1987 |
NALSA की स्थापना | 1995 |
पहली लोक अदालत | 1982, गुजरात |
ई-कोर्ट्स मिशन मोड प्रोजेक्ट | 2005 में शुरू |
मुख्य न्यायाधीश की चिंता | हाशिये पर मौजूद नागरिकों की बाधाएँ |
प्रमुख सुधार उपाय | भाषाई समावेशन, छात्रवृत्ति, स्थानीय अदालतें, तकनीकी एकीकरण |