अक्टूबर 15, 2025 6:25 अपराह्न

जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्टीकरण

वर्तमान घटनाएँ: सर्वोच्च न्यायालय, जिला न्यायाधीश नियुक्ति, अनुच्छेद 233, पात्रता मानदंड, राज्यपाल, उच्च न्यायालय परामर्श, न्यायिक अधिकारी, सात वर्ष अनुभव, प्रत्यक्ष भर्ती, सेवा में उम्मीदवार, संवैधानिक व्याख्या

Appointment of District Judges and Supreme Court Clarification

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय — पात्रता पर स्पष्टता

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंड पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया है।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे न्यायिक अधिकारी जिनके पास वकील और न्यायिक सेवा दोनों रूपों में कुल सात वर्ष का अनुभव है, वे प्रत्यक्ष भर्ती के माध्यम से जिला न्यायाधीश पद के लिए पात्र होंगे।

यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या को व्यापक बनाता है और सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों तथा प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं दोनों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 233 की समझ

अनुच्छेद 233 भारत में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।
इस अनुच्छेद के तहत, राज्यपाल संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय से परामर्श करके इन नियुक्तियों को करता है।

स्थिर GK तथ्य: अनुच्छेद 233, भारतीय संविधान (1950) के भाग VI – राज्यों के अंतर्गत आता है, जो राज्य न्यायपालिका की संरचना को परिभाषित करता है।

प्रत्यक्ष भर्ती और संवैधानिक संतुलन

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 233(2) में प्रयुक्त “अधिवक्ता (Advocate)” शब्द में वे व्यक्ति भी शामिल हैं जो पहले वकालत कर चुके हैं और बाद में न्यायिक सेवा में शामिल हुए हैं।
इससे उन योग्य उम्मीदवारों का अनावश्यक बहिष्कार नहीं होगा, जिन्होंने कानूनी अभ्यास से न्यायिक सेवा में परिवर्तन किया है।

स्थिर GK टिप: जिला न्यायाधीशों की प्रत्यक्ष भर्ती संबंधित राज्य द्वारा बनाए गए राज्य न्यायिक सेवा नियमों (State Judicial Service Rules) के तहत की जाती है, जो अनुच्छेद 309 और अनुच्छेद 233 के अनुरूप होते हैं।

राज्यपाल की भूमिका और उच्च न्यायालय से परामर्श

जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, लेकिन यह तभी संभव है जब संबंधित उच्च न्यायालय से अनिवार्य परामर्श (Consultation) किया गया हो।
यह परामर्श प्रक्रिया न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।

उच्च न्यायालय का मत (opinion) इस प्रक्रिया में निर्णायक और बाध्यकारी माना जाता है ताकि कार्यपालिका (Executive) न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप कर सके

स्थिर GK तथ्य: चंद्रमोहन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1966) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कार्यपालिका जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति एकतरफा नहीं कर सकती, बल्कि उच्च न्यायालय से परामर्श अनिवार्य है

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्व

यह निर्णय न्यायिक समावेशिता (Judicial Inclusivity) को मज़बूत करता है और उच्च न्यायिक सेवा के लिए चयन का आधार व्यापक बनाता है।
अब वकालत और न्यायिक सेवा — दोनों क्षेत्रों के अनुभव को समान रूप से मान्यता मिलेगी।

यह कदम संविधान की उस भावना के अनुरूप है, जो कहती है कि भारत की न्यायिक प्रणाली में कुशल, अनुभवी और स्वतंत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति आवश्यक है।
जिला न्यायपालिका (District Judiciary) को अक्सर भारत की न्याय व्यवस्था की रीढ़ (Backbone) कहा जाता है, और यह निर्णय उस नींव को और सुदृढ़ बनाता है।

स्थिर “Usthadian” वर्तमान घटनाएँ सारणी

विषय विवरण
संवैधानिक प्रावधान भारतीय संविधान का अनुच्छेद 233
नियुक्ति प्राधिकारी राज्यपाल
परामर्श आवश्यक संबंधित उच्च न्यायालय से
सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या 7 वर्षों के संयुक्त अनुभव वाले न्यायिक अधिकारी पात्र
निर्णय का उद्देश्य अधिवक्ताओं और सेवा में अधिकारियों के लिए समान अवसर
संविधान का भाग भाग VI – राज्य
संबंधित न्यायिक मामला चंद्रमोहन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1966)
शासकीय नियम अनुच्छेद 309 के तहत बने राज्य न्यायिक सेवा नियम
न्यायपालिका का स्तर जिला न्यायपालिका (उच्च न्यायालय के अधीन)
महत्व न्यायिक स्वतंत्रता और समावेशिता को सुदृढ़ करता है
Appointment of District Judges and Supreme Court Clarification
  1. सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पात्रता स्पष्ट की।
  2. उम्मीदवारों के पास वकालत और न्यायिक अनुभव का संयुक्त रूप से सात वर्ष का अनुभव होना आवश्यक है।
  3. यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या करता है।
  4. अधिवक्ताओं और सेवारत अधिकारियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।
  5. उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल द्वारा नियुक्तियाँ।
  6. न्यायिक समावेशिता और अनुभव मान्यता को सुदृढ़ करता है।
  7. अनुच्छेद 233 भाग VI – राज्यों के अंतर्गत आता है।
  8. यह स्पष्ट करता है कि “अधिवक्ता” में वर्तमान में सेवारत पूर्व वकील भी शामिल हैं।
  9. अनुच्छेद 309 के अंतर्गत राज्य न्यायिक सेवा नियमों द्वारा निर्देशित।
  10. न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  11. उच्च न्यायालय की राय बाध्यकारी और आवश्यक मानी गई।
  12. चंद्र मोहन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1966) के उदाहरण पर आधारित।
  13. कार्यपालिका के हस्तक्षेप से न्यायिक स्वतंत्रता को सुदृढ़ करता है।
  14. एक सक्षम और विविधतापूर्ण ज़िला न्यायपालिका को बढ़ावा देता है।
  15. ज़िला न्यायपालिका भारत की न्याय प्रणाली की रीढ़ है।
  16. उच्च न्यायपालिका के लिए योग्यता-आधारित भर्ती को बढ़ावा देता है।
  17. कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखता है।
  18. स्पष्टीकरण योग्य अधिकारियों के लिए उचित अवसर सुनिश्चित करता है।
  19. ज़मीनी स्तर पर भारत में न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया को मज़बूत करता है।
  20. न्यायिक स्वायत्तता और संवैधानिक अखंडता को बढ़ावा देता है।

Q1. संविधान का कौन-सा अनुच्छेद जिला न्यायाधीशों (District Judges) की नियुक्ति से संबंधित है?


Q2. जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है?


Q3. पात्रता के लिए न्यूनतम सम्मिलित अनुभव कितना आवश्यक है?


Q4. किस मामले ने उच्च न्यायालय से परामर्श की अनिवार्यता पर जोर दिया?


Q5. अनुच्छेद 233 संविधान के किस भाग (Part) में आता है?


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Current Affairs PDF October 15

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