थर्मोन्यूक्लियर तकनीक का नया युग
चीन ने हाल ही में एक क्रांतिकारी हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है जो पारंपरिक फिसाइल पदार्थों—जैसे यूरेनियम या प्लूटोनियम—का उपयोग नहीं करता। यह परमाणु हथियार विकास की प्रकृति में एक मौलिक बदलाव को दर्शाता है। यह बम द्वि–चरणीय विखंडन–फ्यूजन प्रक्रिया के बजाय मैग्नीशियम हाइड्राइड–आधारित इग्निशन और अन्य उन्नत फ्यूजन तकनीकों का उपयोग करता है, जिससे रेडियोधर्मी विकिरण के बिना विनाशकारी ऊर्जा उत्सर्जन संभव हो सका है। इससे वैश्विक परमाणु निरोधक तंत्र और हथियार नियंत्रण समझौतों की अवधारणाएं चुनौती के सामने आ खड़ी हुई हैं।
फिसाइल-मुक्त हाइड्रोजन बम कैसे काम करता है?
पारंपरिक हाइड्रोजन बमों में फ्यूजन की शुरुआत के लिए फिसाइल पदार्थों से विखंडन की आवश्यकता होती है। लेकिन चीन का नया हथियार इस फिसाइल चरण को पूरी तरह हटाता है। यह इनर्शियल कंफाइनमेंट फ्यूजन (ICF) और ज़ी–पिंच प्लाज्मा प्रणाली जैसी मैग्नेटिक कंप्रेशन तकनीकों के माध्यम से उच्च तापमान और दाब पैदा करता है, जिससे ड्यूटीरियम और ट्राइटियम के समन्वय से ऊर्जा उत्पन्न होती है। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में रेडियोधर्मी संकेत नहीं उत्पन्न होते, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय निगरानी प्रणालियों द्वारा पकड़ा नहीं जा सकता।
विधिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह तकनीक वैश्विक परमाणु संधियों को दरकिनार करती है। NPT (परमाणु अप्रसार संधि) और CTBT (परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) दोनों की परिभाषाएं फिसाइल पदार्थों पर आधारित हैं। लेकिन चीन का यह बम ऐसे किसी पदार्थ का उपयोग नहीं करता, जिससे यह कानूनी रूप से अस्पष्ट क्षेत्र में आता है। साथ ही, फ्यूजन ईंधन कम नियंत्रित होते हैं, जिससे इनका दुरुपयोग, दोहरी उपयोग वाले अनुसंधान और आतंकवादी समूहों तक पहुंच की आशंका बढ़ जाती है।
सामरिक और सैन्य परिणाम
यह गैर–रेडियोधर्मी, कॉम्पैक्ट थर्मोन्यूक्लियर हथियार आधुनिक युद्ध की अवधारणाओं को पूरी तरह बदल देता है। ये कम दिखने योग्य, पोर्टेबल और गुप्त अभियानों या ग्रे ज़ोन युद्ध के लिए उपयुक्त हैं, जहां पारंपरिक सैन्य निगरानी विफल हो सकती है। इनकी वैधता छिपी रह सकती है, जिससे यह गैर–राज्य तत्वों और छोटे राष्ट्रों के लिए आकर्षक विकल्प बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत की रणनीतिक स्थिति
इस तकनीक को देखते हुए परमाणु हथियारों की परिभाषा को केवल फिसाइल पदार्थों तक सीमित न रखकर उनके ऊर्जा उत्पादन और फ्यूजन क्षमता के आधार पर पुनर्परिभाषित करने की मांग उठ रही है। विशेषज्ञों ने CTBT को विस्तारित करने और IAEA के अंतर्गत ‘फ्यूजन वेपन वेरिफिकेशन बॉडी‘ (FWVB) की स्थापना की सिफारिश की है—जैसे रासायनिक हथियारों की निगरानी के लिए OPCW कार्य करता है।
भारत, जो “विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध” नीति अपनाता है, के लिए यह विकास रणनीतिक समीक्षा और टेक्नोलॉजी अपग्रेड का अवसर है। भारत को अब फ्यूजन आधारित हथियारों की पहचान करने वाले यंत्रों में निवेश करने और वैश्विक हथियार नियंत्रण तंत्र को अद्यतन करने की दिशा में राजनयिक प्रयास शुरू करने होंगे।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश (STATIC GK SNAPSHOT)
विषय | विवरण |
क्या परीक्षण हुआ? | फिसाइल-मुक्त हाइड्रोजन बम |
देश | चीन |
नई फ्यूजन विधि | मैग्नीशियम हाइड्राइड, ICF, Z-pinch प्रणाली |
क्यों महत्वपूर्ण है | यूरेनियम/प्लूटोनियम का प्रयोग नहीं; पारंपरिक निगरानी से बचता है |
संधि उल्लंघन | NPT और CTBT की सीमा से बाहर |
प्रमुख चिंताएँ | प्रसार, गुप्त उपयोग, दोहरे उपयोग वाले अनुसंधान का जोखिम |
प्रस्तावित समाधान | CTBT की परिभाषा विस्तारित करना; IAEA के तहत FWVB बनाना |
भारत पर प्रभाव | रणनीतिक पुनरावलोकन, फ्यूजन-डिटेक्शन तकनीक में निवेश, नीति सुधार |