भारत में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर
भारत ने वन्यजीव संरक्षण विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जब दार्जिलिंग स्थित पद्मजा नायडू हिमालयन प्राणि उद्यान (PNHZP) में देश का पहला चिड़ियाघर–आधारित वाइल्डलाइफ बायोबैंक शुरू किया गया। जुलाई 2024 से परिचालन में आए इस बायोबैंक की स्थापना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (CCMB) के सहयोग से की गई है। इस अत्याधुनिक सुविधा में -196°C पर तरल नाइट्रोजन का उपयोग करके लुप्तप्राय प्रजातियों के DNA, ऊतक और प्रजनन सामग्री को संरक्षित किया जाता है।
भविष्य के लिए आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करना
वर्तमान में इस बायोबैंक में 60 जानवरों की 23 लुप्तप्राय प्रजातियों की आनुवंशिक सामग्री संग्रहीत है। इसे ‘फ्रोजन ज़ू’ के रूप में जाना जाता है और यह वन्यजीव आनुवंशिकी, रोग अध्ययन और विलुप्त प्रजातियों के पुनर्जीवन के लिए अनुसंधान को बढ़ावा देता है। यह पहल भारत की जैव विविधता संरक्षण रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनने की ओर अग्रसर है। इसके विस्तार के लिए दिल्ली और ओडिशा (नंदनकानन) में भी ऐसे बायोबैंक की योजना बनाई गई है।
शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने वाला संग्रहालय
बायोबैंक के साथ-साथ, PNHZP ने दिसंबर 2024 में एक पैथोलॉजी प्रयोगशाला और हड्डी संग्रहालय का भी उद्घाटन किया। पैथोलॉजी प्रयोगशाला से जानवरों के रोगों का शीघ्र पता लगाया जा सकेगा, जबकि संग्रहालय में दुर्लभ प्रजातियों की संरक्षित हड्डियाँ प्रदर्शित की गई हैं। पश्चिम बंगाल की वन मंत्री बिरबहा हांसदा द्वारा उद्घाटित यह संग्रहालय जनशिक्षा और हिमालयी जैव विविधता पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है।
हिमालयी प्रजातियों के संरक्षण में PNHZP की भूमिका
1958 में स्थापित PNHZP उच्च पर्वतीय हिमालयी प्रजातियों के संरक्षण के लिए जाना जाता है। इसका प्रमुख कार्य लाल पांडा की कैप्टिव ब्रीडिंग और पुनर्वास रहा है। वर्ष 2022 से 2024 के बीच 9 लाल पांडा जंगल में छोड़े गए, जिनमें से 5 के शावकों का जन्म भी हुआ—यह एक उल्लेखनीय संरक्षण सफलता है। इस कार्यक्रम को 2024 WAZA संरक्षण पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है।
राष्ट्रीय वन्यजीव सुरक्षा के लिए आदर्श मॉडल
दार्जिलिंग का यह बायोबैंक वैज्ञानिक संरक्षण पद्धतियों के लिए एक मिसाल बन रहा है। क्रायोजेनिक जैविक संग्रहण की यह पद्धति ऐसी प्रजातियों के पुनर्जीवन में सहायक हो सकती है जो विलुप्ति के कगार पर हैं। भविष्य में जब और बायोबैंक स्थापित होंगे, यह प्रणाली राष्ट्रव्यापी संरक्षण नीति का रूप ले सकती है। पारंपरिक संरक्षण विधियों के साथ आधुनिक जैव तकनीकी समाधानों का समावेश भारत को जैव विविधता संरक्षण में वैश्विक अग्रणी बना सकता है।
STATIC GK SNAPSHOT: भारत का पहला वाइल्डलाइफ बायोबैंक
विषय | विवरण |
खबर का कारण | दार्जिलिंग चिड़ियाघर में भारत का पहला वाइल्डलाइफ बायोबैंक शुरू |
चिड़ियाघर का नाम | पद्मजा नायडू हिमालयन प्राणि उद्यान (PNHZP), दार्जिलिंग |
परिचालन शुरू | जुलाई 2024 |
सहयोगी संस्था | CCMB (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत) |
संरक्षण तकनीक | -196°C पर तरल नाइट्रोजन द्वारा क्रायोजेनिक संग्रहण |
वर्तमान संग्रह | 60 जानवरों की 23 लुप्तप्राय प्रजातियों की आनुवंशिक सामग्री |
अतिरिक्त सुविधाएँ | पैथोलॉजी प्रयोगशाला और हड्डी संग्रहालय |
संग्रहालय उद्घाटन | 23 दिसंबर 2024 को बिरबहा हांसदा द्वारा |
भविष्य के स्थान | दिल्ली और नंदनकानन (ओडिशा) |
संरक्षण प्रभाव | जैविक अनुसंधान, प्रजाति पुनर्जीवन और दीर्घकालीन जैव विविधता सुरक्षा |