जनजातीय धरोहर संरक्षण के लिए सरकार की पहल
तमिलनाडु सरकार के आदि द्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग ने अनुसूचित जनजातियों की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को संरक्षित करने के लिए थोल्कुड़ी योजना के तहत एक महत्वपूर्ण डिजिटल परियोजना की शुरुआत की है। 2024–25 के बजट के तहत राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए ₹2 करोड़ का आवंटन किया है। यह परियोजना पाँच जनजातीय समूहों—इरुला, टोडा, नरिकुरावर, कणिक्करर और कुरुम्बर—के एथ्नोग्राफिक रिकॉर्ड तैयार करने पर केंद्रित है।
एथ्नोग्राफिक प्रलेखन का उद्देश्य
इस पहल का मुख्य उद्देश्य है कि उन जनजातीय भाषाओं और मौखिक परंपराओं को डिजिटल रूप से दर्ज किया जाए, जो धीरे–धीरे लुप्त होती जा रही हैं। यह कार्य साक्षात्कार, ऑडियो–वीडियो रिकॉर्डिंग और ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण के माध्यम से किया जाएगा, जिससे जनजातीय समुदाय के जीवन में न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ उनकी संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
समुदाय केंद्रितता और सांस्कृतिक विविधता
चयनित पाँचों जनजातियों की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और बोलियाँ हैं:
- इरुला: ये चूहों और साँपों को पकड़ने में माहिर होते हैं और देवी कन्यम्मा की पूजा करते हैं।
- टोडा: नीलगिरी की पहाड़ियों में रहते हैं, सब्ज़ी की खेती और कढ़ाई करते हैं, तथा भगवान शिव और पवित्र पर्वतों को पूजते हैं।
- कुरुम्बा: बेट्टा और जेणु कुरुम्बा जैसे उपसमूहों में बंटे हैं, ये शिकारी, चित्रकार और तांत्रिक क्रियाओं में संलग्न हैं, और भैरवन की पूजा करते हैं।
- नरिकुरावर: घुमंतू जीवन शैली वाले होते हैं, और इनकी मौखिक कथा परंपरा समृद्ध है।
- कणिक्करर: प्रकृति से गहरा संबंध रखते हैं और प्राकृतिक एवं आदिम आस्था प्रणाली का पालन करते हैं।
भाषाओं की भूमिका सांस्कृतिक अस्तित्व में
इन जनजातीय भाषाओं की जड़ें द्रविड़ भाषा परिवार में हैं और इनमें तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु के तत्वों का मिश्रण होता है। इन भाषाओं का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके माध्यम से मौखिक इतिहास, आस्था, और पारिस्थितिक ज्ञान की पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरण होता है।
परियोजना का दीर्घकालिक महत्त्व
यह परियोजना तमिलनाडु सरकार के जनजातीय कल्याण, समावेशी विकास और डिजिटल संग्रहण के व्यापक लक्ष्यों से जुड़ी है। यह पहल न केवल एक शैक्षणिक और सांस्कृतिक संसाधन के रूप में कार्य करेगी, बल्कि यह सुनिश्चित करेगी कि इन जनजातियों की अगली पीढ़ियाँ अपनी विरासत को डिजिटल रूप में जान सकें और उससे जुड़ सकें। थोल्कुड़ी योजना अन्य राज्यों के लिए जनजातीय सशक्तिकरण और भाषा संरक्षण का एक उदाहरण बन सकती है।
STATIC GK SNAPSHOT
पहल का पक्ष | विवरण |
योजना का नाम | थोल्कुड़ी योजना |
बजट आवंटन | ₹2 करोड़ (2024–25) |
क्रियान्वयन विभाग | तमिलनाडु आदि द्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग |
शामिल जनजातियाँ | इरुला, टोडा, नरिकुरावर, कणिक्करर, कुरुम्बर |
मुख्य उद्देश्य | जनजातीय भाषा और संस्कृति का डिजिटल प्रलेखन |
तकनीकी विधियाँ | ऑडियो-विज़ुअल रिकॉर्डिंग, साक्षात्कार, ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण |
पूजा परंपराएँ (उदाहरण) | इरुला – देवी कन्यम्मा; टोडा – भगवान शिव; कुरुम्बा – भैरवन |
भाषा परिवार | द्रविड़ (तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु मिश्रण) |