मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू क्यों किया गया?
लंबे समय से चले आ रहे जातीय तनाव के बीच मणिपुर के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया। इसके अंतर्गत राज्य विधानसभा को निलंबित कर दिया गया और राज्य की बागडोर सीधे केंद्र सरकार के अधीन कर दी गई, जिससे प्रशासनिक शून्यता को भरने और कानून व्यवस्था बहाल करने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन से शांति कैसे बहाल हो सकती है?
राष्ट्रपति शासन लागू होने से राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त प्रशासन स्थापित होता है, जो कुकी–जो और मैतेई समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है। केंद्र सरकार की तैनात बलें अब राज्यपाल के अधीन कार्य करेंगी, जिससे लगभग 60,000 विस्थापित लोगों का पुनर्वास संभव हो सकेगा, जो दो वर्षों से शिविरों में रह रहे हैं।
राष्ट्रपति शासन क्या है?
राष्ट्रपति शासन वह स्थिति है जब कोई राज्य सरकार संवैधानिक रूप से कार्य करने में विफल हो जाती है। तब केंद्र सरकार अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल के माध्यम से राज्य का प्रशासन संभालती है और निर्वाचित सरकार का स्थान लेती है।
राष्ट्रपति शासन की प्रक्रिया और अवधि
अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति की घोषणा को दो महीने के भीतर संसद से अनुमोदन लेना अनिवार्य होता है। प्रारंभिक अवधि 6 माह की होती है, जिसे 3 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है—परंतु यह केवल राष्ट्रीय आपातकाल अथवा चुनाव आयोग के प्रमाणन जैसी विशेष परिस्थितियों में ही संभव है। तीन वर्षों के बाद बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन आवश्यक है।
शासन पर प्रभाव
राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को, और विधायी शक्तियां संसद या केंद्र द्वारा अधिकृत प्राधिकरणों को स्थानांतरित हो जाती हैं। राज्य की वित्तीय शक्तियां भी केंद्र सरकार के अधीन हो जाती हैं, और संसद की मंजूरी तक राज्य समेकित निधि से व्यय की अनुमति दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट की राय: अनुच्छेद 356 पर
एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार को बर्खास्त करने के लिए फ्लोर टेस्ट आवश्यक है, केवल राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर बर्खास्तगी असंवैधानिक मानी जाएगी। रमेश्वर प्रसाद मामला भी इस अनुच्छेद के दुरुपयोग पर न्यायिक चेतावनी के रूप में देखा जाता है।
आयोगों की सिफारिशें
- सरकारिया आयोग (1987) ने अनुच्छेद 356 को अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल करने की सिफारिश की थी।
- पुंछी आयोग (2010) ने जिलों में स्थानीय आपातकाल का सुझाव दिया था।
- राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग (NCRWC, 2000) ने अनुच्छेद 356 को बनाए रखने के पक्ष में रहते हुए विस्तृत रिपोर्टिंग और पूर्व चेतावनी प्रोटोकॉल की अनुशंसा की थी।
निष्कर्ष: संविधान का अंतिम उपाय
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करना एक निर्णायक संवैधानिक कदम है, जिसका उद्देश्य हिंसा समाप्त कर लोकतांत्रिक शासन की बहाली करना है। हालांकि, न्यायिक फैसलों और आयोगों की सिफारिशों से यह स्पष्ट है कि इस उपाय का उपयोग अंतिम विकल्प के रूप में ही होना चाहिए—ना कि सामान्य राजनीतिक समाधान के रूप में।
Static GK Snapshot: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन – तथ्य संक्षेप में
विषय | विवरण |
लागू अनुच्छेद | अनुच्छेद 356 – भारतीय संविधान |
संबंधित अनुच्छेद | अनुच्छेद 355 – केंद्र का राज्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दायित्व |
प्रारंभिक अवधि | 6 महीने (विशेष शर्तों पर 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) |
सर्वोच्च न्यायालय का मामला | एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) |
संसद में अनुमोदन | साधारण बहुमत से दोनों सदनों द्वारा |
सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन | पंजाब (1987–1992, 67वें और 68वें संशोधनों द्वारा बढ़ाया गया) |
पहली बार लागू | पंजाब, 1951 |
प्रमुख आयोग | सरकारिया (1987), पुंछी (2010), NCRWC (2000) |
मणिपुर की राजधानी | इम्फाल |
मणिपुर की राज्यपाल (2025) | अनुसुइया उइके |