भारत के कीट अनुसंधान में महत्वपूर्ण खोज
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और जर्मनी के म्यूज़ियम ए. कोएनिग ने मिलकर 2025 में सेरिसिनी उपकुल की छह नई स्कैरैब बीटल प्रजातियों की खोज की है। इन खोजों को प्रतिष्ठित Zootaxa पत्रिका में प्रकाशित किया गया, जिससे भारत की अपर्याप्त रूप से खोजी गई कीट विविधता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। ये खोजें भारत के सुदूर जैविक आवासों के पारिस्थितिकीय महत्व को दोहराती हैं और उन्हें संरक्षित रखने की तात्कालिक आवश्यकता को उजागर करती हैं।
नई बीटल प्रजातियाँ: केरल से मिज़ोरम तक
नवीन बीटल प्रजातियाँ पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी घाट, जो दोनों वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं, से पहचानी गईं। प्रमुख खोजों में शामिल हैं:
- Maladera champhaiensis – मिज़ोरम
- Neoserica churachandpurensis – मणिपुर
- Maladera onam – केरल
- Maladera barasingha, Maladera lumlaensis, Serica subansiriensis – अरुणाचल प्रदेश
इन प्रजातियों के नाम प्रायः क्षेत्रीय पहचान या विशिष्ट शारीरिक लक्षणों पर आधारित होते हैं, जैसे Maladera barasingha, जिसे भारतीय दलदली हिरण (बारहसिंगा) के नाम पर रखा गया।
जैव विविधता के लिए ये क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण हैं?
इनमें से अधिकांश बीटल हिमालयी जैव विविधता हॉटस्पॉट के अंतर्गत पूर्वोत्तर भारत में पाई गईं। यह क्षेत्र अपने पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता और स्थानिकता के लिए प्रसिद्ध है और इसमें कई ऐसे जीव हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं पाए जाते। वहीं, पश्चिमी घाट, जो एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, में पाई गई Maladera onam इस क्षेत्र की जैविक विविधता को दर्शाती है। शहरीकरण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दबावों से ये आवास खतरे में हैं, जिससे इनकी संरक्षण की अनिवार्यता स्पष्ट होती है।
बीटल, पारिस्थितिकी तंत्र और कृषि
बीटल केवल मिट्टी में रेंगने वाले छोटे जीव नहीं हैं। सेरिसिनी स्कैरैब उपकुल की कुछ प्रजातियाँ गन्ना और मक्का जैसी फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कृषि कीटों के रूप में जानी जाती हैं। दूसरी ओर, कुछ प्रजातियाँ सजैव पदार्थों का विघटन करके मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं। इन बीटल्स की समय रहते पहचान, पर्यावरण–अनुकूल कीट नियंत्रण रणनीतियों को अपनाने में सहायक हो सकती है, जिससे हानिकारक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम हो सके और सतत कृषि को बढ़ावा मिले।
आगे की राह: संरक्षण और जन-जागरूकता
यह खोज केवल प्रजातियों की सूची बनाने तक सीमित नहीं है – यह भारत के समृद्ध पारिस्थितिक ताने–बाने को समझने और संरक्षित करने की दिशा में एक कदम है। वैज्ञानिकों ने विशेष रूप से कम खोजे गए क्षेत्रों में व्यापक सैंपलिंग और स्थानीय समुदाय की भागीदारी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। इन बीटल्स की रक्षा का अर्थ है – जंगलों, नदियों और आजीविका की रक्षा करना। जैसे-जैसे जलवायु संकट गहराता जा रहा है, इस प्रकार का ज्ञान लचीली संरक्षण नीतियाँ बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक बन गया है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
अनुसंधान संस्थाएँ | भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और म्यूज़ियम ए. कोएनिग (जर्मनी) |
प्रकाशन | Zootaxa |
खोजी गई बीटल प्रजातियाँ | 6 |
उपकुल | सेरिसिनी (स्कैरैब बीटल्स) |
प्रमुख क्षेत्र | मिज़ोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, केरल |
जैव विविधता हॉटस्पॉट | हिमालय और पश्चिमी घाट |
महत्व | कीट नियंत्रण, मृदा स्वास्थ्य, जैव विविधता ज्ञान |