जुलाई 21, 2025 8:04 पूर्वाह्न

तमिलनाडु ने राज्यपाल की स्वीकृति के बिना 10 विधेयकों को अधिसूचित किया: एक ऐतिहासिक विधायी पहल

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Tamil Nadu Notifies 10 Acts Without Governor’s Assent: A Landmark Legislative Step

विधायी इतिहास में अभूतपूर्व कदम

11 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना 10 अधिनियमों को राज्य राजपत्र में अधिसूचित किया। यह निर्णय भारतीय विधायी इतिहास में पहला ऐसा उदाहरण है और यह सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के आधार पर लिया गया, जिसने राज्यपालों की विवेकाधीन शक्तियों को फिर से परिभाषित किया।

विश्वविद्यालय प्रशासन से जुड़े अधिनियम

इन अधिनियमों में अधिकांश का संबंध राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से है। पहले यह अधिकार राज्यपाल (कुलाधिपति के रूप में) के पास था। अब यह तमिलनाडु सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया है। इन 10 अधिसूचित अधिनियमों में 2020 से 2023 तक के तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय अधिनियम, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय अधिनियम, डॉ. अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय अधिनियम और डॉ. एम.जी.आर. मेडिकल विश्वविद्यालय अधिनियम शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट का परिवर्तनकारी फैसला

इस ऐतिहासिक विधायी कदम को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से बल मिला, जिसमें कहा गया कि राज्यपाल की निष्क्रियता असंवैधानिक है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्यपाल को किसी भी विधेयक पर 1 से 3 महीनों के भीतर कार्यवाही करनी होगी—चाहे वह स्वीकृति देना हो, उसे रोकना हो, या राष्ट्रपति के पास भेजना हो। इससे भी अहम बात यह थी कि कोर्ट ने “मानी गई स्वीकृति (deemed assent)” की अवधारणा को भी वैध ठहराया।

राष्ट्रीय प्रभाव और भविष्य की दिशा

यह फैसला केवल तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए बाध्यकारी मिसाल बन गया है। अब राज्यपालों को विधेयकों पर कार्यवाही के लिए कानूनी समयसीमा में बंधना होगा। इससे अन्य राज्यों में रुके हुए विधेयकों पर भी प्रगति संभव हो सकती है। साथ ही, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के निर्णय अब न्यायिक समीक्षा के दायरे में भी आ सकते हैं।

संवैधानिक पीठ को लेकर विवाद

इस फैसले की व्यापक सराहना के बावजूद, संवैधानिक वैधता पर बहस भी छिड़ी। आलोचकों का कहना है कि इतना महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दा केवल दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा नहीं, बल्कि अनुच्छेद 145(3) के अनुसार पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए था। फिर भी, यह फैसला संघीय ढांचे, न्यायिक निगरानी और विधायी स्वतंत्रता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण बना हुआ है।

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विषय विवरण
अधिसूचना तिथि 11 अप्रैल 2025
अधिसूचित अधिनियमों की संख्या 10
राज्यपाल की स्वीकृति नहीं दी गई; सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत अधिसूचित
मुख्य विषय राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति
संबंधित संविधान अनुच्छेद अनुच्छेद 200 – विधेयकों पर स्वीकृति
सुप्रीम कोर्ट निर्देश 1–3 माह की समयसीमा, मानी गई स्वीकृति की धारणा
सम्बंधित राज्य तमिलनाडु
प्रभाव संघीय ढांचे पर प्रभाव, न्यायिक नियंत्रण, विधायी स्वायत्तता

 

Tamil Nadu Notifies 10 Acts Without Governor’s Assent: A Landmark Legislative Step
  1. तमिलनाडु ने 11 अप्रैल 2025 को राज्यपाल की सहमति के बिना 10 राज्य अधिनियमों को अधिसूचित किया।
  2. यह भारत का पहला मामला है जिसमें किसी राज्य ने बिना राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति के अधिनियमों को राजपत्रित किया है।
  3. यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले के आधार पर लिया गया, जिसने अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की शक्तियों की पुनर्व्याख्या की।
  4. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में परिकल्पित स्वीकृति” (Deemed Assent) का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
  5. यदि राज्यपाल विधेयक पर समयसीमा से अधिक विलंब करते हैं, तो अब वह स्वतः पारित माना जाएगा।
  6. ये सभी 10 अधिनियम मुख्य रूप से राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्तियों से संबंधित हैं।
  7. अधिनियमों में मत्स्य, पशु चिकित्सा, विधि, और चिकित्सा विश्वविद्यालय कानून (2020 से 2023 तक) में संशोधन शामिल हैं।
  8. इन विधेयकों को पहले तमिलनाडु विधानसभा ने पारित किया था और राज्यपाल की देरी के कारण पुनः पारित किया गया।
  9. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की निष्क्रियता को असंवैधानिक घोषित किया।
  10. अब राज्यपाल को किसी भी विधेयक पर 1 से 3 महीने की अवधि में निर्णय लेना अनिवार्य होगा।
  11. यह फैसला भारत की संघीय व्यवस्था में राज्य की विधायी स्वतंत्रता को मजबूत करता है।
  12. यह निर्णय देशभर के अन्य राज्यों के लिए भी एक कानूनी मिसाल बन गया है।
  13. अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल की सहमति में देरी अब न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत लाई जा सकती है।
  14. इन अधिनियमों से तमिलनाडु में विश्वविद्यालयों के प्रशासन मॉडल में बड़ा बदलाव होगा।
  15. राज्यपाल की चांसलर की भूमिका को अब प्रत्यक्ष रूप से सीमित कर दिया गया है।
  16. आलोचकों का मानना है कि ऐसा फैसला संविधान पीठ (5 न्यायाधीशों की पीठ) द्वारा होना चाहिए था।
  17. यह मामला अनुच्छेद 145(3) की वैधानिक प्रक्रिया और संवैधानिक पीठ गठन पर भी सवाल खड़ा करता है।
  18. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर सहमति प्रदान करने से जुड़ा है।
  19. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सहर्ष स्पष्ट करता है कि सहमति की समयसीमा क्या होगी।
  20. यह घटनाक्रम राज्य सरकार द्वारा विधायी अधिकारों की ऐतिहासिक अभिव्यक्ति के रूप में दर्ज हो गया है।

Q1. तमिलनाडु ने बिना राज्यपाल की स्वीकृति के 10 अधिनियमों को किस तारीख को अधिसूचित किया?


Q2. तमिलनाडु द्वारा अधिसूचित किए गए 10 अधिनियम किस विषय से संबंधित थे?


Q3. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में राज्यपाल की विधेयकों पर स्वीकृति का उल्लेख है?


Q4. राज्यपाल की स्वीकृति से संबंधित सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तुत नया सिद्धांत क्या है?


Q5. आलोचकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कितने न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाया जाना चाहिए था?


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