वह दिन जिसने अमृतसर को झकझोर दिया
13 अप्रैल 1919 को जब पंजाब में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा था, अमृतसर का जलियांवाला बाग भयावह हत्याकांड का गवाह बन गया। हजारों भारतीय रौलेट एक्ट के विरोध में इस बाग में शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र हुए थे। लेकिन जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अपनी सेना के साथ बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलीबारी का आदेश दे दिया। बाग का एकमात्र संकरा निकास द्वार भी बंद कर दिया गया था। लगभग दस मिनट तक चली गोलीबारी में 1,650 गोलियां चलाई गईं, जिससे सैकड़ों लोग मारे गए और घायल हुए।
भयावह आंकड़े
ब्रिटिश सरकार ने 379 लोगों की आधिकारिक मृत्यु की पुष्टि की, लेकिन भारतीय आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 500 से अधिक थी, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। 1,200 से अधिक लोग घायल हुए। दीवारें खून से रंगी थीं और शव चारों ओर बिखरे पड़े थे। कई लोगों ने गोलियों से बचने के लिए बाग के कुएं में छलांग लगा दी, परंतु वे वहीं डूबकर मर गए। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और ब्रिटिश शासन के क्रूर चेहरे को उजागर कर दिया।
इस हत्याकांड का कारण क्या था?
यह नरसंहार अचानक या अकेले नहीं हुआ। इसका कारण था 1919 का रौलेट एक्ट, जो बिना मुकदमे के किसी भी भारतीय को जेल में डालने की अनुमति देता था। इसके विरोध में जब डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार किया गया, तो अमृतसर के लोग और भड़क उठे। ब्रिटिश अधिकारियों ने विद्रोह के डर से घातक बल प्रयोग किया, जिससे ब्रिटेन के कई लोग भी स्तब्ध रह गए। जनरल डायर ने कहा कि वह विद्रोह रोक रहा था, परंतु उसकी क्रूरता ने देशभर में न्याय की मांग को जन्म दिया।
विरोध और प्रतिरोध की आवाज़ें
इस हत्याकांड के बाद भारत और विश्वभर में भारी विरोध हुआ। महात्मा गांधी ने देशव्यापी हड़ताल और उपवास का आह्वान किया। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे मानवता के साथ धोखा बताते हुए ब्रिटिश नाइटहुड सम्मान लौटाया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने हंटर आयोग की जांच बिठाई, परंतु डायर को कोई सजा नहीं मिली। वर्षों बाद, 1940 में ऊधम सिंह ने लंदन में माइकल ओ‘ड्वायर की हत्या कर बदला लिया, जो डायर के कार्यों का समर्थक था।
इस नरसंहार ने भारत को कैसे बदल दिया
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय जनता को एकजुट कर दिया। जो लोग पहले सुधारवादी रास्ते पर विश्वास करते थे, उन्होंने भी ब्रिटिश राज से भरोसा खो दिया। इसी घटना के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप गांधी जी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया — यह भारत का पहला बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना ने औपनिवेशिक क्रूरता की निंदा को जन्म दिया और ब्रिटिश साम्राज्य पर दबाव बढ़ाया।
जलियांवाला बाग की स्मृति
आज जलियांवाला बाग अमृतसर में राष्ट्रीय स्मारक के रूप में मौजूद है। दीवारों पर गोलियों के निशान और शहीदों का कुआं आज भी वहाँ के दर्दनाक इतिहास को याद दिलाते हैं। हर साल 13 अप्रैल को, देशभर से लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने वहाँ पहुँचते हैं। यह स्थान बलिदान और प्रतिरोध का प्रतीक बन चुका है — एक जिंदा स्मृति जो आज़ादी की क़ीमत और अटूट संकल्प की याद दिलाती है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
घटना की तिथि | 13 अप्रैल 1919 |
स्थान | अमृतसर, पंजाब |
शामिल ब्रिटिश अधिकारी | जनरल रेजिनाल्ड डायर |
संबंधित कानून | रौलेट एक्ट, 1919 |
स्मारक स्थल | जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक, अमृतसर |
प्रमुख भारतीय प्रतिक्रिया | असहयोग आंदोलन, टैगोर का विरोध |
स्वतंत्रता सेनानी द्वारा बदला | ऊधम सिंह (1940, लंदन में हत्या) |