बुद्ध से जुड़ा एक जीवंत संबंध
जया श्री महा बोधि को दुनियाभर में बौद्ध परंपरा का सबसे पवित्र प्रतीक माना जाता है। यह श्रीलंका की प्राचीन राजधानी अनुराधापुर में स्थित है और माना जाता है कि यह 2300 वर्षों से अधिक पुराना है। यह मनुष्य द्वारा लगाया गया दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष है, जिसका ऐतिहासिक दस्तावेजी प्रमाण मौजूद है। इसे बोधगया के उस मूल बोधि वृक्ष की सीधी शाखा माना जाता है, जिसके नीचे सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ था। 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका यात्रा के दौरान इस स्थान की यात्रा की, जो भारत और श्रीलंका दोनों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
बौद्ध इतिहास में गहराई से जड़े हुए
इस वृक्ष की कहानी 288 ईसा पूर्व में शुरू होती है, जब इसे राजा देवनांपिय तिस्स द्वारा लगाया गया था। इसकी शाखा को सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा थेरि श्रीलंका लेकर आई थीं, ताकि बौद्ध धर्म को एशिया में फैलाया जा सके। श्रीलंका का प्राचीन ग्रंथ महावंश इस घटना को विस्तार से दर्ज करता है। इस वृक्ष की उपस्थिति ने अनुराधापुर को एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में उभारा। विध्वंस और संघर्षों के बावजूद, यह वृक्ष शांति और धैर्य का प्रतीक बनकर आज भी खड़ा है।
श्रद्धा और पूजा का केंद्र
करोड़ों बौद्धों के लिए यह वृक्ष केवल एक पौधा नहीं, बल्कि बुद्ध की यात्रा का सजीव प्रतीक है। श्रद्धालु प्रतिदिन फूल, दीप और प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं। किसान अपनी पहली फसल इस वृक्ष को अर्पित करते हैं, ताकि समृद्धि प्राप्त हो। ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष की छाया में की गई प्रार्थनाएं आध्यात्मिक शक्ति और सौभाग्य देती हैं। यहां का वातावरण शांत और दिव्य होता है।
आस्था से निर्मित वास्तुकला
यह पवित्र वृक्ष एक ऊँचे पत्थर के चबूतरे पर स्थित है, जिसे चार निचले स्तरों (परिवार बोधि) से घेरा गया है। ये स्तर वृक्ष की रक्षा के साथ-साथ अनुष्ठानों को भी सहज बनाते हैं। इसके चारों ओर सोने की जाली, पत्थर की बुद्ध प्रतिमाएं, और बारीकी से नक्काशी की गई रेलिंग्स हैं। इस स्थान की देखरेख अट्टमस्थान के मुख्य भिक्षु द्वारा की जाती है। प्रति वर्ष लाखों लोग यहां दर्शन को आते हैं, लेकिन अंदरूनी घेरे तक पहुंच सीमित है, जिससे वृक्ष की सुरक्षा बनी रहती है।
एक पवित्र विरासत का संरक्षण
फाइकस रेलिजिओसा (पीपल वृक्ष) अपनी दीर्घायु के लिए जाना जाता है। संरक्षण प्रयासों के कारण यह वृक्ष दो हज़ार वर्षों से अधिक समय तक जीवित रहा है। लेकिन राह आसान नहीं थी। 1985 में एक आतंकी हमले में 146 श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई, पर वृक्ष चमत्कारिक रूप से सुरक्षित रहा। तब से सुरक्षा, प्रवेश प्रतिबंध, ढांचागत मजबूती और नियमित स्वास्थ्य परीक्षणों के ज़रिए वृक्ष को अगली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जा रहा है। यह वृक्ष भारत और श्रीलंका की साझी आध्यात्मिक धरोहर का साक्षात प्रमाण है।
Static GK Snapshot (हिंदी में)
विषय | विवरण |
स्थान | अनुराधापुर, श्रीलंका |
वृक्षारोपण वर्ष | 288 ईसा पूर्व |
लेकर आईं | संघमित्रा थेरि (सम्राट अशोक की पुत्री) |
मूल बोधि वृक्ष स्थान | बोधगया, भारत |
वृक्ष प्रकार | पीपल (Ficus religiosa) |
महत्व | मानव द्वारा लगाया गया सबसे पुराना वृक्ष (दस्तावेजी प्रमाण सहित) |
प्रमुख घटना | 1985 आतंकी हमला (146 श्रद्धालु मारे गए) |
संरक्षणकर्ता | अट्टमस्थान के मुख्य भिक्षु |
संबंधित शासक | राजा देवनांपिय तिस्स |