भोपाल में सार्वजनिक स्थानों पर भीख पर प्रतिबंध लागू
भोपाल के जिलाधिकारी द्वारा हाल ही में सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह निर्णय इंदौर में पहले लागू किए गए आदेश के बाद आया है, जिससे मध्य प्रदेश में यह एक क्षेत्रीय प्रवृत्ति बनती दिख रही है। यह आदेश भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 163 के तहत जारी किया गया है, जो अधिकारियों को सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुँचाने वाली स्थितियों में तुरंत कार्रवाई का अधिकार देता है।
यह प्रतिबंध ट्रैफिक सिग्नल, बाज़ार, मंदिरों जैसे स्थानों पर भीख मांगने से रोकता है। उल्लंघन करने पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 के तहत जेल और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
कानूनी आधार: किस प्रावधान का उपयोग?
BNSS 2023 की धारा 163 अधिकारियों को ऐसे कार्यों पर रोक लगाने की अनुमति देती है जो सार्वजनिक स्थानों पर अव्यवस्था या खतरा उत्पन्न करते हैं। यह कानून पुराने CrPC प्रावधानों का स्थान लेता है और प्रशासन को अधिक त्वरित शक्ति प्रदान करता है।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि गरीबी को अपराध मानना संविधान के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो सकता है, विशेषकर तब जब भीख मांगने के लिए कोई केंद्रीय कानून मौजूद नहीं है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 जैसे उपनिवेशकालीन कानून आज भी कई राज्यों में लागू हैं।
ऐतिहासिक और न्यायिक संदर्भ
1959 का बॉम्बे भीख अधिनियम शहरी क्षेत्रों को “स्वच्छ” बनाने के उद्देश्य से बना था, जिसमें भिखारियों को असीमित समय तक हिरासत में रखने का प्रावधान था। 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे अमान्य करार देते हुए कहा कि भीख अपराध नहीं, बल्कि आर्थिक असमानता और अभाव का संकेत है।
हालांकि इस निर्णय ने केवल दिल्ली क्षेत्र को प्रभावित किया, देशभर में भीख मांगने को पूरी तरह अपराधमुक्त नहीं किया गया। बच्चों और जबरन भीख मंगवाने के मामलों पर अभी भी कठोर कानून लागू हैं।
वर्तमान कानूनी स्थिति और चुनौतियाँ
भारत में आज भी एकीकृत राष्ट्रीय नीति की कमी है। दिल्ली जैसे कुछ क्षेत्रों ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटाया है, जबकि अन्य राज्य अभी भी दंडात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं। इससे राज्यों में कानूनी असंगतियाँ पैदा होती हैं।
इसके अलावा, बेघर और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए बनी सहायता योजनाओं का क्रियान्वयन भी बेहद सीमित है, और अधिकतर नीतियाँ दंड पर आधारित हैं, न कि पुनर्वास पर।
सामाजिक प्रभाव और मानवाधिकार चिंताएं
सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार समूहों का मानना है कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाना समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह बेघरपन, बेरोजगारी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और उपेक्षित करता है।
2016 के “Persons in Destitution (Protection, Care and Rehabilitation) Model Bill” जैसे विधेयक पुनर्वास आधारित समाधान प्रदान करते हैं—जैसे आश्रय गृह, कौशल प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाएं।
2020 में सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 10 शहरों में “भीखमुक्त क्षेत्र“ बनाने के लिए पायलट योजना शुरू की थी, लेकिन मौजूदा प्रतिबंध बताते हैं कि नियमन की गति, सहानुभूति से आगे निकल गई है।
स्टैटिक GK स्नैपशॉट: भारत में भीख संबंधित कानून
विषय | विवरण |
प्रभावी कानून (प्रतिबंध का आधार) | भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 – धारा 163 |
दंडात्मक प्रावधान | भारतीय न्याय संहिता (BNS), धारा 223 |
भारत का पहला भीख निषेध कानून | बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 |
प्रमुख न्यायिक निर्णय | 2018 – दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में भीख अपराध नहीं माना |
पुनर्वास मॉडल कानून | 2016 – Persons in Destitution (Protection, Care and Rehabilitation) Bill |
केंद्रीय सामाजिक पहल | 2020 – सामाजिक न्याय मंत्रालय की “भीख मुक्त क्षेत्र” योजना |
हाल ही में प्रतिबंध लगाने वाले शहर | भोपाल, इंदौर |
कानूनी ढांचे की प्रकृति | कोई केंद्रीय कानून नहीं; राज्यवार कानून 1959 अधिनियम पर आधारित |