पहली पुष्टि ने पैदा किया खतरा
भारत के मधुमक्खी पालन क्षेत्र में चेतावनी का माहौल है क्योंकि पश्चिम बंगाल में स्मॉल हाइव बीटल (Small Hive Beetle – SHB) की पहली बार आधिकारिक पुष्टि हुई है। इसका वैज्ञानिक नाम Aethina tumida है, और यह कीट भारत में पहले कभी दर्ज नहीं किया गया था। यह खोज केवल एक स्थानीय चिंता नहीं, बल्कि मधुमक्खी पालन, कृषि उत्पादकता और देश की जैव विविधता के लिए एक गंभीर चुनौती है।
स्मॉल हाइव बीटल क्या है?
स्मॉल हाइव बीटल एक विदेशी आक्रामक कीट है जो मधुमक्खियों के छत्तों पर हमला करता है। इसका आकार 5 से 7 मिमी होता है और रंग लाल-भूरा होता है। मादा बीटल छत्तों में छोटी दरारों से प्रवेश कर अंडे देती हैं। लार्वा निकलते हैं और शहद, पराग और मधुमक्खियों के बच्चों को खाते हैं, जिससे पूरा छत्ता असंतुलित हो जाता है। शहद सड़ जाता है और समय रहते रोकथाम न होने पर छत्ता पूरी तरह ढह सकता है।
यह भारत में कैसे पहुँचा?
SHB की उत्पत्ति उप-सहारा अफ्रीका में मानी जाती है और यह धीरे-धीरे दुनिया के अन्य भागों में फैल गया। इसे 1999 में पहली बार अमेरिका और फिर 2002 में ऑस्ट्रेलिया में देखा गया। वैश्विक व्यापार और यात्रा के इस युग में इस तरह के कीट नए क्षेत्रों में आसानी से पहुंच रहे हैं, जिससे जैव सुरक्षा तंत्र की कमजोरी उजागर होती है।
भारत की मधुमक्खियों और पारिस्थितिकी पर इसका प्रभाव
भारत दुनिया में शहद का छठा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और हजारों लोगों की आजीविका मधुमक्खी पालन पर निर्भर है। लेकिन SHB इस प्रणाली के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। संक्रमित शहद उपयोग या बिक्री के योग्य नहीं रहता। यह कीट केवल यूरोपीय मधुमक्खियों (Apis mellifera) को ही नहीं, बल्कि भारतीय मधुमक्खियों (Apis cerana) और भंवरे जैसी अन्य प्रमुख परागणकर्ताओं को भी नुकसान पहुंचाता है। इससे फसल उत्पादन घटता है और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
विशेषज्ञ क्या कर रहे हैं?
वैज्ञानिक इस कीट के व्यवहार को समझने के लिए प्रयोगशालाओं में अध्ययन कर रहे हैं। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के मधुमक्खी फार्मों के चारों ओर नियंत्रण क्षेत्र स्थापित करने की सिफारिश की जा रही है। सरकार को संभवतः टिड्डी दल या फुट-एंड-माउथ बीमारी जैसे निगरानी प्रोटोकॉल अपनाने की आवश्यकता पड़ेगी। स्थानीय मधुमक्खी पालकों को जागरूक करने और सुरक्षित प्रबंधन की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
केवल मधुमक्खी पालन नहीं, पूरी पारिस्थितिकी पर असर
SHB एक बड़ी चेतावनी है कि विदेशी प्रजातियाँ पारिस्थितिक संतुलन को कैसे बिगाड़ सकती हैं। यदि इसे रोका नहीं गया, तो यह स्थानीय कीटों से प्रतिस्पर्धा करेगा, खाद्य श्रृंखला को बदल देगा, और अन्य परागणकर्ताओं में बीमारियाँ फैला सकता है। इससे पौधों की विविधता, विशेषकर लुप्तप्राय प्रजातियाँ, संकट में पड़ सकती हैं। भारत की पर्यावरण एजेंसियों को जल्द से जल्द कार्रवाई करनी होगी।
Static GK Snapshot (हिंदी में)
विषय | विवरण |
आक्रामक प्रजाति का नाम | स्मॉल हाइव बीटल (Aethina tumida) |
पहली वैश्विक उपस्थिति | उप-सहारा अफ्रीका (1867) |
भारत में पहली बार पाई गई | पश्चिम बंगाल (2025) |
खतरे का स्तर | उच्च – मधुमक्खियों, जैव विविधता और शहद के लिए |
प्रमुख प्रभावित क्षेत्र | मधुमक्खी पालन (Apiculture) |
अमेरिका में पहली उपस्थिति | 1999 |
भारत की शहद उत्पादन रैंकिंग | वैश्विक स्तर पर 6वीं |
नियंत्रण उपाय | प्रयोगशाला अध्ययन, नियंत्रण क्षेत्र, मधुमक्खी पालकों को प्रशिक्षण |
परीक्षा प्रासंगिकता | UPSC, TNPSC, SSC, NABARD, RBI |