राष्ट्रपति भवन में ऐतिहासिक विमोचन
25 दिसंबर, 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में भारत के संविधान को संथाली भाषा में जारी किया।
संविधान को ओल चिकी लिपि में प्रकाशित किया गया है, जो संथाली की स्वदेशी लेखन प्रणाली है।
यह कदम भाषाई समावेशन और लोकतांत्रिक पहुंच में एक बड़ी प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।
यह संथाली भाषी नागरिकों को अपनी भाषा में भारत के सर्वोच्च कानून को पढ़ने और समझने में सक्षम बनाता है।
संवैधानिक जागरूकता में भाषा का महत्व
सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि भाषा पहचान, भागीदारी और जागरूकता को आकार देती है। अपनी मातृभाषा में संविधान तक पहुंच नागरिकों का लोकतांत्रिक संस्थानों के साथ संबंध मजबूत करती है।
संथाली भाषी आदिवासी समुदायों के लिए, यह पहल संविधान को एक दूर के कानूनी पाठ से एक जीवंत और संबंधित मार्गदर्शक में बदल देती है। यह इस विचार को पुष्ट करता है कि संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य सभी भारतीयों के लिए समान रूप से हैं।
स्टेटिक जीके तथ्य: भारत विविध भाषाई समुदायों तक शासन सुनिश्चित करने के लिए एक बहुभाषी संवैधानिक ढांचे का पालन करता है।
ओल चिकी लिपि और सांस्कृतिक महत्व
इस विमोचन की एक प्रमुख विशेषता ओल चिकी लिपि का उपयोग है। वर्ष 2025 ओल चिकी लिपि की शताब्दी वर्ष है, जो प्रकाशन में प्रतीकात्मक महत्व जोड़ता है।
राष्ट्रपति ने लिपि के 100वें वर्ष के दौरान इस कार्य को पूरा करने में कानून और न्याय मंत्रालय की भूमिका की सराहना की। यह कदम स्वदेशी लिपियों और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
स्टेटिक जीके टिप: ओल चिकी को पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संथाली को एक विशिष्ट लिखित पहचान प्रदान करने के लिए विकसित किया था।
संथाली भाषा की पृष्ठभूमि
संथाली भारत की सबसे पुरानी जीवित आदिवासी भाषाओं में से एक है। यह मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में बोली जाती है। इसके जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक महत्व को पहचानते हुए, संथाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। यह समावेशन 92वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से हुआ।
आठवीं अनुसूची की स्थिति शिक्षा, प्रशासन और सार्वजनिक संचार में भाषा विकास को बढ़ावा देती है। यह संरक्षण और विकास के लिए राज्य के समर्थन को भी सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक और कानूनी प्रासंगिकता
संथाली संविधान संस्करण अनुच्छेद 29 के अनुरूप है, जो अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और भाषाई हितों की रक्षा करता है। यह अनुच्छेद 350A की भावना को भी दर्शाता है, जो प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा पर ज़ोर देता है।
संवैधानिक ग्रंथों का आदिवासी भाषाओं में विस्तार करके, राज्य संवैधानिक साक्षरता को मज़बूत करता है। यह एक सहभागी और सूचित लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
स्टेटिक जीके तथ्य: आठवीं अनुसूची वर्तमान में 22 भाषाओं को मान्यता देती है।
आदिवासी सशक्तिकरण के लिए व्यापक महत्व
यह पहल प्रतीकात्मकता से कहीं आगे है। यह आदिवासी नागरिकों को मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों और शासन सिद्धांतों के साथ सीधे जुड़ने में सक्षम बनाकर उन्हें सशक्त बनाता है। यह प्रकाशन समावेशी शासन और भारत की बहुलवादी पहचान के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है। यह भविष्य में अन्य स्वदेशी भाषाओं में संवैधानिक अनुवाद के लिए एक मिसाल कायम करता है।
स्टैटिक उस्तादियन करंट अफेयर्स तालिका
| विषय | विवरण |
| स्थान | सांगली ज़िला, महाराष्ट्र |
| संस्थान | Shivaji University, Kolhapur |
| स्वीकृति प्राधिकारी | विश्वविद्यालय सीनेट |
| मुख्य उद्देश्य | किशमिश में वैज्ञानिक अनुसंधान और गुणवत्ता में सुधार |
| प्रमुख फोकस क्षेत्र | प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, कौशल विकास |
| कार्यान्वयन मॉडल | चरणबद्ध कार्यान्वयन पद्धति |
| लाभार्थी | किशमिश किसान, प्रसंस्करक, निर्यातक |
| रणनीतिक महत्व | भारतीय किशमिश की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देता है |





