सार्वजनिक स्थानों पर शवों के दुरुपयोग को रोकने का नया प्रस्ताव
तमिलनाडु पुलिस आयोग की पाँचवीं रिपोर्ट में ‘तमिलनाडु मृत शरीर की गरिमा अधिनियम’ नामक एक नए कानून का प्रस्ताव रखा गया है। इस कानून का उद्देश्य उन विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाना है जिनमें मृत शरीरों का इस्तेमाल मुआवज़े या कार्रवाई की माँग हेतु किया जाता है, विशेषकर जब परिवारजन या समर्थक सड़कों को अवरुद्ध करते हैं। आयोग ने इसे कानून व्यवस्था के लिए खतरा और कानूनी दुरुपयोग करार दिया है, जिसके लिए कड़े कानूनी प्रावधानों की आवश्यकता बताई गई है।
सिफारिश के पीछे का तर्क
तमिलनाडु और अन्य राज्यों में हाल के वर्षों में कई घटनाएँ सामने आई हैं जहाँ परिजन शवों का अंतिम संस्कार करने से इंकार कर, उन्हें सड़कों पर रखकर प्रशासन पर दबाव बनाने लगे। यद्यपि यह भावनात्मक रूप से समझा जा सकता है, आयोग ने इसे सार्वजनिक व्यवस्था के लिए विघ्न और मृतकों की गरिमा के विरुद्ध बताया है। आयोग का मानना है कि इससे शोक को राजनीतिक हथियार बना दिया जाता है।
प्रस्तावित अधिनियम के मुख्य प्रावधान
यदि यह अधिनियम पारित हो जाता है, तो सार्वजनिक स्थलों (जैसे सड़क, अस्पताल आदि) में शव के साथ विरोध प्रदर्शन करना अपराध माना जाएगा। ऐसा कोई भी कृत्य जिसके ज़रिए पुलिस या सरकार से तात्कालिक कार्रवाई की माँग की जाती है, अधिकतम पाँच वर्ष की सज़ा का पात्र होगा। यह अधिनियम वैध पोस्टमॉर्टम प्रक्रियाओं या कानूनी उपचार में हस्तक्षेप नहीं करेगा, केवल सार्वजनिक क्षेत्रों के बाधा में उपयोग को प्रतिबंधित करेगा।
राजस्थान का उदाहरण और कानूनी ढांचा
राजस्थान ने भारत का पहला ‘मृत शरीर की गरिमा अधिनियम’ 2023 में लागू किया था। इस कानून में भी शवों के सार्वजनिक आंदोलनों में उपयोग पर प्रतिबंध है और उल्लंघन पर सज़ा निर्धारित है। तमिलनाडु इस मॉडल को अपनाते हुए ऐसी संवेदनशील मृत्यु घटनाओं (जैसे हिरासत या एनकाउंटर में मौत) के प्रबंधन में कानूनी स्पष्टता लाना चाहता है। यदि अधिनियम पारित होता है, तो यह भारत का दूसरा ऐसा कानून होगा।
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विषय | विवरण |
प्रस्तावित कानून | तमिलनाडु मृत शरीर की गरिमा अधिनियम |
प्रस्तावक संस्था | पाँचवाँ तमिलनाडु पुलिस आयोग |
उद्देश्य | सार्वजनिक स्थानों पर शवों के साथ विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध |
प्रस्तावित दंड | अधिकतम 5 वर्ष की कैद |
मुख्य कारण | मुआवज़े की माँग हेतु शवों का प्रदर्शन |
ऐसा कानून लागू करने वाला पहला राज्य | राजस्थान (2023) |
कानून का क्षेत्राधिकार | सार्वजनिक व्यवस्था, मृतक की गरिमा |
तमिलनाडु में स्थिति | प्रस्ताव विचाराधीन, विधानसभा में पेश नहीं हुआ |
प्रभाव | सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना, मृतकों की गरिमा की रक्षा करना |
लागू स्थान | सड़कें, अस्पताल, सार्वजनिक कार्यालय जहाँ शव लाए जाते हैं |