ग्रामीण शासन में छिपी बाधा
कई गाँवों में, स्थानीय निकायों के लिए चुनी गई महिलाएं वास्तविक कार्यभार निभाने के बजाय उनके पतियों द्वारा छाया में रखी जाती हैं। यह प्रथा ‘प्रधान पति‘ के रूप में जानी जाती है और यह महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों (WERs) को स्वतंत्र रूप से कार्य करने से रोकती है। भले ही संविधान में 33% आरक्षण है, ग्रामीण सामाजिक ढांचे में पुरुष वर्चस्व अभी भी प्रबल है।
संविधान की भावना पर आघात
हालाँकि महिलाएं कुल 46.6% पंचायत सीटों पर निर्वाचित हैं, परंतु अधिकांश मामलों में वास्तविक सत्ता उनके परिवार के पुरुषों के हाथों में रहती है। यह 73वें संविधान संशोधन की मूल भावना को कमजोर करता है, जो विकेन्द्रीकरण और समावेशन को बढ़ावा देने के लिए लाया गया था। जब तक महिलाओं को वास्तविक स्वायत्तता नहीं मिलेगी, तब तक उनकी भागीदारी केवल औपचारिकता बनी रहेगी।
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने खींचा ध्यान
2023 में, पंचायती राज मंत्रालय ने इस चलन की जांच और सुधार हेतु एक विशेषज्ञ पैनल गठित किया। समिति की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है “पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और भूमिकाओं का रूपांतरण“, ने यह सुझाव दिया कि जहां महिलाओं को दरकिनार किया जाए वहां कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। हालांकि समिति ने यह भी कहा कि सिर्फ दंड देना समाधान नहीं होगा।
समावेशी नेतृत्व के लिए सुधार का खाका
समिति ने सुझाव दिया कि पंचायत की उप–समितियों में लिंग–आरक्षित भूमिकाएं बनाई जाएं और जो जिले स्वतंत्र महिला नेतृत्व को बढ़ावा दें, उन्हें ‘एंटी–प्रधान पति’ पुरस्कार दिया जाए। इसके अलावा, ग्राम सभा में सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करना और महिला शिकायतों के निपटारे के लिए लोकपाल नियुक्त करना भी प्रस्तावित किया गया।
महिला नेताओं के लिए डिजिटल सहयोग
समिति ने प्रशासनिक कार्यों का वर्चुअल रियलिटी (VR) सिमुलेशन विकसित करने की सिफारिश की है, जिससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाया जा सके। साथ ही, क्षेत्रीय भाषाओं में एआई टूल्स, पंचायत निर्णय पोर्टल और आधिकारिक व्हाट्सऐप नेटवर्क की भी सिफारिश की गई है ताकि महिलाएं स्थानीय मुद्दों का समाधान कर सकें।
गहरी पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती
समिति ने स्पष्ट किया कि समस्या केवल प्रतिनिधित्व की नहीं, बल्कि गहरे पितृसत्तात्मक सोच की है। जो महिलाएं नेतृत्व निभाना चाहती हैं, उन्हें डराने, बाहर निकालने या धमकाने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए कानूनी संरक्षण, आर्थिक स्वतंत्रता और महिला नेतृत्व सहयोग नेटवर्क की आवश्यकता है।
सशक्त नेतृत्व की दिशा में रास्ता
समिति का कहना है कि पुरुष हस्तक्षेप को दंडित करना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि महिलाओं को आत्मविश्वासपूर्वक नेतृत्व करने में सक्षम बनाना उद्देश्य होना चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को महिलाओं के नेतृत्व का समर्थन करने का प्रशिक्षण, और NGOs व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ साझेदारी पर बल दिया गया है। केरल के समावेशी पंचायत मॉडल को एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
STATIC GK SNAPSHOT (प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्थायी जानकारी)
विषय | विवरण |
मुद्दा | निर्वाचित महिला नेताओं की जगह ‘प्रधान पति’ का कार्यभार निभाना |
महिलाओं की भागीदारी | 46.6% (32.29 लाख में से 15.03 लाख सदस्य) |
सर्वाधिक प्रभावित राज्य | उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान |
संवैधानिक आधार | 73वां संशोधन अधिनियम, 1992 |
रिपोर्ट का नाम | “पंचायती राज में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का रूपांतरण” |
तकनीकी सिफारिशें | VR प्रशिक्षण, AI टूल्स, पंचायत निर्णय पोर्टल |
प्रतीकात्मक पहल | एंटी-प्रधान पति अवॉर्ड, ग्राम सभा शपथ |
सामाजिक उपाय | लोकपाल, महिला समर्थन समूह, कानूनी सुरक्षा |
मूल समस्या | पितृसत्ता और महिला स्वायत्तता की कमी |
गठन संस्था | पंचायती राज मंत्रालय, वर्ष 2023 में गठित पैनल |