चिंताजनक आँकड़े: सांप के काटने से विश्व में सर्वाधिक मौतें भारत में
भारत में हर साल लगभग 58,000 लोगों की मौत साँप के काटने से होती है—जो वैश्विक मृत्यु दर का लगभग आधा हिस्सा है। जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा एंटीवेनम उत्पादक और उपभोक्ता है, फिर भी इलाज में देरी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की कमी और बुनियादी ढांचे की कमजोरियों के कारण यह एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन गया है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और WHO की मान्यता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल 5.4 मिलियन लोग साँप के काटने से पीड़ित होते हैं, जिनमें से 1.8 से 2.7 मिलियन मामलों में विष का प्रभाव होता है। वार्षिक मृत्यु दर 81,000 से 1.37 लाख के बीच है। WHO ने इसे “उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग” (Neglected Tropical Disease) के रूप में वर्गीकृत किया है।
भारत में साँपों की विविधता और जोखिम क्षेत्र
भारत में 300 से अधिक साँप प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें 60 से अधिक विषैली होती हैं। इनमें से “बिग फोर”—भारतीय कोबरा, कॉमन करैत, रसेल वाइपर, और सॉ–स्केल्ड वाइपर—अधिकांश मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। 2001 से 2014 के बीच, साँप के काटने से भारत में 1.2 मिलियन मौतें और 3.6 मिलियन अपंगताएँ दर्ज की गईं। हर 250 में से एक भारतीय को 70 वर्ष की आयु से पहले साँप के काटने से मृत्यु का खतरा है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में संवेदनशीलता
ग्रामीण भारत में खासकर किसानों और खेत मजदूरों में साँप के काटने की घटनाएँ अधिक होती हैं, विशेष रूप से मानसून के दौरान। पारंपरिक उपचार और ओझा-तंत्र पर विश्वास के कारण इलाज में देरी होती है। उधर, शहरी क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन की कमी, बाढ़ और तेजी से शहरीकरण के चलते लोग अधिक सांपों के संपर्क में आ रहे हैं।
साँप का विष और एंटीवेनम की प्रक्रिया
साँप के विष में तीन प्रकार के प्रोटीन होते हैं:
- हीमोटॉक्सिन – रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं
- न्यूरोटॉक्सिन – तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित करते हैं
- साइटोटॉक्सिन – ऊतकों को नष्ट करते हैं
एंटीवेनम इन विषों को निष्क्रिय करने वाली दवा है। भारत में बनाए गए पॉलीवैलेन्ट एंटीवेनम केवल “बिग फोर” के लिए कारगर हैं, लेकिन किंग कोबरा या पिट वाइपर जैसे साँपों पर यह असरदार नहीं है।
एंटीवेनम कैसे बनता है?
- जिंदा साँपों से विष निकाला जाता है
- उसे घोड़ों या भेड़ों को इंजेक्ट किया जाता है
- उनके रक्त से एंटीबॉडी निकाली जाती है
- इन्हें शुद्ध करके इंजेक्शन योग्य दवा बनाई जाती है
तमिलनाडु की इरुला जनजाति इस प्रक्रिया में 80% से अधिक विष की आपूर्ति करती है।
कानूनी ढाँचा और संरक्षण
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सभी साँप संरक्षित प्रजातियाँ हैं। बिना अनुमति के साँप को पकड़ना, नुकसान पहुँचाना या विष निकालना गैरकानूनी है। अनुसूची-I के साँपों के लिए केंद्र सरकार से विशेष अनुमति जरूरी होती है।
भारत में एंटीवेनम उपयोग में बाधाएँ
- दूरदराज़ गाँवों में चिकित्सा केंद्रों की कमी
- आस्था व मिथक, इलाज में देरी करते हैं
- उत्पादन लागत अधिक होने से ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित आपूर्ति
- कोल्ड चेन की कमजोरी से दवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है
नवाचार और राष्ट्रीय पहल
भारत सरकार ने NAP-SE (National Action Plan – Snakebite Envenoming) की शुरुआत की है, जिसका लक्ष्य 2030 तक मौतों और अपंगता को 50% तक कम करना है। नवाचार में शामिल हैं:
- AI-आधारित सिंथेटिक एंटीवेनम (2024 में नोबेल विजेता डेविड बेकर की टीम)
- IISc बेंगलुरु द्वारा क्षेत्र–विशिष्ट एंटीवेनम
- पोर्टेबल विष पहचान किट
- जन जागरूकता अभियान
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
वैश्विक साँप काटने के मामले | 5.4 मिलियन (WHO) |
वैश्विक मृत्यु दर | 81,000–1,37,000 वार्षिक |
भारत में मृत्यु दर | लगभग 58,000 प्रति वर्ष |
प्रमुख विषैले साँप | इंडियन कोबरा, करैत, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर |
एंटीवेनम प्रकार | पॉलीवैलेन्ट (केवल “बिग फोर” पर प्रभावी) |
विष आपूर्तिकर्ता | इरुला जनजाति, तमिलनाडु (~80%) |
कानून | वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 |
राष्ट्रीय योजना | NAP-SE (2030 तक मृत्यु व अपंगता 50% कम करना) |
नवाचार | AI एंटीवेनम, क्षेत्रीय समाधान, विष जांच किट |