उपेक्षित समुदायों का राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण
भारत में पहली बार, एक राष्ट्रीय स्तर का सर्वेक्षण उन समुदायों पर केंद्रित हुआ है जिन्हें विमुक्त (DNT), घुमंतू (NT), और अर्ध–घुमंतू (SNT) के रूप में जाना जाता है। भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण विभाग (AnSI) के नेतृत्व में और जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (TRIs) के सहयोग से इस अध्ययन में 268 समुदायों का विवरण 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एकत्र किया गया। यह कार्य फरवरी 2020 में शुरू होकर अगस्त 2022 में पूर्ण हुआ।
ओडिशा, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश के संस्थानों ने ज़मीनी स्तर से जानकारी जुटाई—इनमें केवल जातियों को वर्गीकृत करना ही नहीं बल्कि उनके ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य को समझना भी शामिल था।
179 समुदायों को आरक्षण सूचियों में शामिल करने की सिफारिश
इस अध्ययन के अनुसार, 179 समुदायों को अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई है। इनमें से 85 जातियाँ पहली बार नामित हुई हैं—46 को OBC, 29 को SC, और 10 को ST श्रेणी में सिफारिश की गई है।
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 19 जातियों को शामिल करने की सिफारिश की गई है। इसके बाद तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 8-8 समुदायों की सिफारिश है। उदाहरणस्वरूप, राजस्थान का एक पारंपरिक वैद्य समुदाय, जो अब तक किसी भी सरकारी सूची में नहीं था, अब आरक्षण और कल्याण योजनाओं के तहत पात्र हो सकता है।
गुमशुदा समुदाय और प्रक्रिया की जटिलताएँ
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 63 समुदायों का कोई सुराग नहीं मिल सका। इसके पीछे प्रवास, अन्य जातियों में विलय या नाम परिवर्तन को कारण माना जा रहा है। शोधकर्ताओं ने विस्तृत फील्डवर्क, साक्षात्कार और दस्तावेज़ों की खोज की, फिर भी कई जातियाँ अब भी अदृश्य हैं।
यह रिपोर्ट अगस्त 2023 में सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंपी गई, लेकिन इसकी कानूनी प्रक्रिया अभी लंबित है। संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत किसी भी जाति को अनुसूचित सूची में शामिल करने की प्रक्रिया राज्य सरकार की अनुशंसा से शुरू होती है, जिसके बाद Registrar General और राष्ट्रीय आयोगों की समीक्षा होती है।
अलग कोटा प्रणाली की मांग
जहाँ अभी तक इन समुदायों को मौजूदा SC/ST/OBC श्रेणियों में शामिल करने की सिफारिश की गई है, वहीं कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि DNT/NT/SNT की ऐतिहासिक स्थिति और उनके साथ जुड़ा सामाजिक कलंक अलग है और उन्हें एक विशिष्ट कोटा या उप–कोटा की ज़रूरत है।
विमुक्त जनजातियों के लिए विकास और कल्याण बोर्ड (DWBDNC) इस मुद्दे पर विचार कर रहा है कि क्या अलग ऊर्ध्वाधर आरक्षण बनाना बेहतर समाधान होगा, जिससे इनकी पहचान और आवश्यकताएँ प्रमुख बनी रहें।
अध्ययन की पृष्ठभूमि और नीति महत्व
यह पैनल फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गठित किया गया था, जिसमें नीति आयोग के उपाध्यक्ष, भीकू राम ईदाते, और डॉ. जे.के. बजाज (Centre for Policy Studies) शामिल थे। इस समिति को 2017 के आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर कार्य करना था, जिसने 269 जनजातियों के वर्गीकरण से बाहर रहने की समस्या को उजागर किया था।
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत की कल्याणकारी नीति प्रणाली में एक बड़ा अंतर मौजूद है। UPSC, TNPSC, SSC जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए यह विषय राजनीति, समाज और संवैधानिक प्रक्रिया के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
कुल सर्वेक्षित समुदाय | 268 |
अनुशंसित समुदाय | 179 (46 OBC, 29 SC, 10 ST) |
संबंधित अनुच्छेद | अनुच्छेद 341 (SC), अनुच्छेद 342 (ST) |
प्रमुख संस्थाएँ | AnSI, TRIs, नीति आयोग |
अध्ययन शुरू | 2020 |
अध्ययन पूर्ण | 2022 |
रिपोर्ट प्रस्तुत | अगस्त 2023 |
अधिकतम अनुशंसा वाला राज्य | उत्तर प्रदेश (19), फिर तमिलनाडु, राजस्थान (8) |
सुझाव | अलग आरक्षण खंड या उप-कोटा के लिए विचार |