पहाड़ियों में बढ़ती समस्या
कोडाईकनाल और पलनी पहाड़ियों में पराली जलाना एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बनकर उभरा है। नवंबर और दिसंबर के महीनों में किसान फसल कटाई के बाद बचे अवशेषों को जलाते हैं। यह तरीका भले ही सस्ता और तेज हो, लेकिन इससे पहाड़ी क्षेत्रों की नाजुक पारिस्थितिकी पर बड़ा खतरा पैदा होता है।
स्थिर जीके तथ्य: कोडाईकनाल, पश्चिमी घाट की पलनी हिल्स श्रृंखला का हिस्सा है — जो विश्व के आठ “हॉटस्पॉट्स ऑफ बायोडायवर्सिटी” में शामिल है।
कृषि संबंधी चुनौतियाँ
इन क्षेत्रों में टेरेस फार्मिंग होती है, जिससे पराली को मशीनों से हटाना या हाथों से साफ करना बेहद कठिन होता है। पहाड़ी गाँवों में मजदूरों की कमी भी एक बड़ी समस्या है। इसलिए किसान खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाने का विकल्प चुनते हैं। लेकिन इससे मिट्टी की गुणवत्ता और वायु स्वच्छता को भारी नुकसान होता है।
स्थिर जीके टिप: टेरेस फार्मिंग पहाड़ी इलाकों में मिट्टी कटाव रोकने और पानी के बेहतर प्रबंधन के लिए अपनाई जाती है।
पर्यावरणीय दुष्परिणाम
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पराली जलाने से पैदा होने वाली भीषण गर्मी मिट्टी में मौजूद केंचुओं और उपयोगी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है।
धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे हानिकारक गैसें होती हैं, जो प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाती हैं।
स्थिर जीके तथ्य: नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 300 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
जंगलों में आग का बड़ा खतरा
अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि जलती पराली से उठने वाली चिंगारियाँ सूखे मौसम में पहाड़ी जंगलों में आग लगा सकती हैं। ऐसी आगें कोडाईकनाल वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी और आसपास के जंगलों को भारी नुकसान पहुँचा सकती हैं। पहाड़ी भूभाग और घने वन क्षेत्र के कारण ऐसी आग पर नियंत्रण पाना कठिन होता है।
स्थिर जीके टिप: कोडाईकनाल वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी को वर्ष 2021 में अधिसूचित किया गया था।
टिकाऊ विकल्पों की ओर कदम
कृषि विभाग किसानोें को पराली जलाने के बजाय
• कम्पोस्टिंग
• मल्चिंग
• वर्मीकम्पोस्टिंग
जैसी पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
इन तरीकों से पराली खाद बनकर खेतों की उर्वरता बढ़ाती है।
स्थिर जीके तथ्य: NGT और CPCB ने कई बार स्पष्ट किया है कि खुले में फसल अवशेष जलाना भारत के पर्यावरण नियमों का उल्लंघन है।
समुदाय की भूमिका और जागरूकता
विशेषज्ञ मानते हैं कि वास्तविक सुधार तभी संभव है जब किसान, स्थानीय समुदाय और वन विभाग मिलकर काम करें। जागरूकता कार्यक्रम, खाद बनाने के उपकरणों पर सब्सिडी और कड़े नियमों का पालन—ये सभी उपाय कोडाईकनाल की संवेदनशील पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने में मदद करेंगे।
स्थिर जीके टिप: पश्चिमी घाट भारत के कुल मीठे पानी का लगभग 40% योगदान करते हैं। इसलिए कोडाईकनाल जैसे क्षेत्रों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| प्रभावित क्षेत्र | कोडाईकनाल और पलनी हिल्स, तमिलनाडु |
| पराली जलाने का मौसम | नवंबर–दिसंबर |
| मुख्य कारण | फसल काटने के बाद खेतों की सफाई |
| प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम | मिट्टी की उर्वरता में कमी और जंगलों में आग |
| खेती का प्रकार | टेरेस फार्मिंग |
| उत्सर्जित मुख्य गैसें | कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड |
| प्रभावित वन्यजीव क्षेत्र | कोडाईकनाल वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी |
| जिम्मेदार विभाग | तमिलनाडु कृषि विभाग, वन विभाग |
| राष्ट्रीय नियामक निकाय | केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) |
| संरक्षण का महत्व | पश्चिमी घाट के जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा |





