नई राजनयिक पहल
अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद पहली बार काबुल नियुक्त शासन ने भारत में अपना आधिकारिक राजनयिक भेजने का निर्णय लिया है।
यह नई दिल्ली में तालिबान शासन के बाद से पहली प्रमुख राजनयिक उपस्थिति है।
यह कदम अक्टूबर 2025 में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा के बाद आया है।
इससे भारत–अफगानिस्तान संबंधों में धीरे-धीरे पिघलती बर्फ (calibrated thaw) और सीमित स्तर पर राजनयिक पुनःसंपर्क (diplomatic re-engagement) का संकेत मिलता है।
भारत की रणनीति और सतर्क कूटनीति
भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता (official recognition) नहीं दी है,
लेकिन काबुल में एक तकनीकी मिशन बनाए रखा है और मानवीय सहायता (humanitarian aid) जारी रखी है।
तालिबान द्वारा नियुक्त राजनयिक को स्वीकार करने से भारत को एक सीधा संवाद चैनल (direct communication channel) प्राप्त होगा,
साथ ही वह औपचारिक मान्यता से बचते हुए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा कर सकेगा।
इस कदम से भारत को —
- अफगान भूमि का आतंकवाद के लिए उपयोग रोकने,
- अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने,
- और क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने में मदद मिलेगी।
स्थैतिक तथ्य (Static GK fact): भारत विश्व की सबसे बड़ी तकनीकी राजनयिक मिशनों में से एक संचालित करता है, जो मानवीय कूटनीति (Humanitarian Diplomacy) पर आधारित है।
क्षेत्रीय परिदृश्य पर प्रभाव
तालिबान से भारत की यह नई पहल क्षेत्रीय भू-राजनीति (regional geopolitics) में कई संकेत देती है —
यह चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास है।
साथ ही यह भारत को चाबहार पोर्ट (ईरान) के माध्यम से व्यापार और अवसंरचना सहयोग बढ़ाने का अवसर देती है।
हालाँकि, भारत को इस जुड़ाव के मानवाधिकार और महिला अधिकार से जुड़ी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ सकता है,
क्योंकि गहन संवाद को ‘मान्यता’ के नरमीकरण (soft recognition) के रूप में देखा जा सकता है।
दृष्टिकोण और आगे की राह
निकट भविष्य में भारत और तालिबान शासित अफगानिस्तान के बीच मानवीय सहयोग, व्यापार सुविधा,
और भारतीय अफगान नागरिकों के लिए वाणिज्यिक सेवाएँ (consular services) प्रमुख विषय रहेंगे।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता फिलहाल एजेंडा में नहीं है।
भारत की कूटनीति “संपर्क बिना समर्थन” (Engagement without Endorsement) के सिद्धांत पर आधारित है —
जिससे वह अपने हितों की रक्षा करते हुए लचीलापन बनाए रख सके।
स्थैतिक जीके टिप (Static GK Tip): वियना राजनयिक संबंध अभिसमय (Vienna Convention on Diplomatic Relations, 1961) किसी देश को यह अनुमति देता है कि वह किसी शासन को मान्यता दिए बिना भी उसका राजनयिक मिशन होस्ट कर सकता है।
स्थैतिक “Usthadian” चालू घटनाएँ तालिका
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| राजनयिक कदम | 2021 के बाद तालिबान द्वारा भारत में पहला राजनयिक भेजा गया |
| भारत की भागीदारी | भारत काबुल में तकनीकी मिशन उन्नत कर रहा है और तालिबान दूत की मेजबानी कर रहा है |
| मान्यता की स्थिति | भारत ने तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है |
| रणनीतिक उद्देश्य | चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करना; अफगान भूमि का दुरुपयोग रोकना |
| व्यापारिक संभावना | चाबहार पोर्ट लिंक और अवसंरचना सहयोग पर चर्चा |
| मानवीय सहायता | भारत अफगानिस्तान को सहायता और चिकित्सीय सहयोग जारी रखे हुए है |
| क्षेत्रीय संदर्भ | दक्षिण एशिया में शक्ति-संतुलन के बदलते परिदृश्य के बीच यह पहल हुई |
| जोखिम कारक | मानवाधिकार और अल्पसंख्यक सुरक्षा के मुद्दे अब भी अनसुलझे |





