पश्चिमी घाट में दुर्लभ दर्शन
हाल ही में कर्नाटक के तटीय जिले कारवार (Karwar) में एटलस मॉथ (Attacus atlas) का दुर्लभ रिकॉर्ड दर्ज किया गया है, जो पश्चिमी घाट की समृद्ध मानसूनी जैव विविधता को उजागर करता है।
यह प्रजाति उष्णकटिबंधीय एशिया की मूल निवासी है — भारत, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में पाई जाती है — और इसे विश्व की सबसे बड़ी पतंग (moth) प्रजातियों में गिना जाता है।
स्थिर जीके तथ्य: पश्चिमी घाट यूनेस्को विश्व विरासत स्थल हैं और विश्व के आठ “हॉटेस्ट बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट्स” में से एक हैं।
आवास और स्थान
एटलस मॉथ आर्द्र सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वनों में पनपता है जहाँ पर्याप्त पोषक पौधे उपलब्ध होते हैं।
कर्नाटक के तटीय भाग में इसका मिलना पश्चिमी घाट क्षेत्र में इसके स्थायी लेकिन छिटपुट वितरण की पुष्टि करता है।
सामान्यतः इसके वयस्क (adults) मानसून के बाद के महीनों में निकलते हैं और पेड़ों के तनों या दीवारों पर विश्राम करते देखे जाते हैं।
आकार और शारीरिक विशेषताएँ
Attacus atlas का पंख फैलाव 25–27 सेमी तक होता है, जबकि कुछ विशेष नमूने 30 सेमी तक पहुँचते हैं।
इसके पंख जंग-भूरे रंग के होते हैं जिन पर सफेद-काले पैटर्न बने रहते हैं।
इसकी सामने की पंख-नोकें (forewing tips) साँप के सिर जैसी दिखाई देती हैं — यह नकल-रक्षा तकनीक (mimicry) शिकारियों को भ्रमित करने के लिए होती है।
मादाएँ आकार में बड़ी व भारी होती हैं, जबकि नर के पंख चौड़े और पंखदार स्पर्शक (feathery antennae) होते हैं, जिनसे वे मादाओं की गंध (pheromones) पहचानते हैं।
स्थिर जीके टिप: एटलस मॉथ को विश्व के सबसे बड़े कीटों में माना जाता है, और इसे अक्सर ऑस्ट्रेलिया के हरक्यूलिस मॉथ से तुलना की जाती है।
जीवन चक्र और व्यवहार
एटलस मॉथ की इल्ली (caterpillar) नींबू, अमरूद और दालचीनी के पत्तों पर भोजन करती है और रूपांतरण के लिए पोषक तत्व एकत्र करती है।
वे एक कागज़ी कोकून बनाकर उसमें प्यूपा बन जाती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि वयस्क पतंगों के पास कार्यात्मक मुखांग (mouthparts) नहीं होते — वे भोजन नहीं करतीं और मात्र 1–2 सप्ताह जीवित रहती हैं, इस अवधि में केवल प्रजनन पर ध्यान देती हैं।
कमज़ोर पड़ने के बाद इनका शिकार पक्षी, चींटियाँ और ततैया करते हैं।
संरक्षण और पारिस्थितिक महत्त्व
हालाँकि एटलस मॉथ को संवेदनशील प्रजाति (threatened species) के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, फिर भी इसे आवास-हानि, कीटनाशक ड्रिफ्ट और प्रकाश प्रदूषण जैसी स्थानीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
स्थानीय मिश्रित वृक्षावरण को बनाए रखना और जंगलों के पास कृत्रिम रोशनी को सीमित करना इसकी सुरक्षा में मदद करेगा।
कारवार में हाल की उपस्थिति पश्चिमी घाट की पारिस्थितिक समृद्धि और वन संरक्षण के महत्व की याद दिलाती है।
स्थिर जीके तथ्य: भारत में 1500 से अधिक मॉथ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो परागण (pollination) तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य सूचक (bio-indicator) के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
स्थिर उस्तादियन करेंट अफेयर्स तालिका
| विषय | विवरण |
| वैज्ञानिक नाम | Attacus atlas |
| सामान्य नाम | एटलस मॉथ |
| दर्ज स्थान | कारवार, तटीय कर्नाटक |
| आवास | आर्द्र सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन |
| पंख फैलाव | 25–27 सेमी; दुर्लभ नमूने 30 सेमी तक |
| विशिष्ट विशेषता | आगे के पंख साँप के सिर जैसे दिखाई देते हैं |
| लार्वा के पोषक पौधे | नींबू, अमरूद, दालचीनी |
| वयस्क भोजन | भोजन नहीं करते; लार्वा की ऊर्जा पर निर्भर |
| संरक्षण खतरे | आवास हानि, कीटनाशक ड्रिफ्ट, प्रकाश प्रदूषण |
| वैश्विक वितरण | भारत, श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया |





