सीमाओं के पुनर्निर्धारण का प्रस्ताव
केंद्र सरकार को लद्दाख में स्थित काराकोरम और चांगथांग वन्यजीव अभयारण्यों (WLS) की सीमाओं के पुनर्निर्धारण (boundary redraw) का एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है।
इस कदम का उद्देश्य शीत मरुस्थल क्षेत्र के पारिस्थितिक प्रबंधन को सुदृढ़ करना और संरक्षण रणनीतियों को सुव्यवस्थित करना है।
यह प्रस्ताव उन नाजुक उच्च-ऊंचाई वाले पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ कई संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य के बारे में
काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 1987 में की गई थी और यह भारत के उत्तरीतम केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की काराकोरम पर्वतमाला में स्थित है।
यह अभयारण्य कई ऊँचाई पर रहने वाले वन्यजीवों और दुर्लभ प्रजातियों का महत्वपूर्ण निवास स्थान है।
यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख जीवों में शामिल हैं — हिम तेंदुआ, हिमालयी भूरा भालू, हिमालयी भेड़िया, आइबेक्स (जंगली बकरी) और नीली भेड़ (भरल)।
इस अभयारण्य का भू-भाग ऊँचे पर्वतीय ढलानों, हिमनदों और शुष्क मरुस्थलीय घाटियों से बना है, जो ठंडे मरुस्थल के विशिष्ट लक्षण हैं।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य: काराकोरम पर्वत श्रृंखला में स्थित सियाचिन ग्लेशियर विश्व के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्रों में से एक है और नुब्रा नदी का उद्गम स्थल भी है।
यहाँ की वनस्पति में एल्पाइन वनस्पति, औषधीय जड़ी–बूटियाँ और शीत मरुस्थलीय पौधों की प्रजातियाँ शामिल हैं, जो अत्यधिक तापमान और कम वर्षा के अनुकूल विकसित हुई हैं।
चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के बारे में
चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य लद्दाख के चांगथांग पठार में, लेह जिले के अंतर्गत स्थित है।
यह विशाल अभयारण्य ट्रांस–हिमालयी जैव–भौगोलिक क्षेत्र (Trans-Himalayan Bio-geographic Zone) का हिस्सा है और अपनी विशिष्ट उच्च–ऊँचाई पारिस्थितिकी के लिए प्रसिद्ध है।
चांगथांग क्षेत्र में भारत की कुछ सबसे ऊँचाई पर स्थित झीलें हैं — त्सो मोरीरी, पांगोंग त्सो और त्सो कर, जो प्रवासी पक्षियों के महत्वपूर्ण प्रजनन स्थल हैं।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान टिप: त्सो मोरीरी झील को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि (Wetland of International Importance) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
यहाँ के प्रमुख जीवों में शामिल हैं — हिम तेंदुआ, तिब्बती जंगली गधा (कियांग), डार्क–नेक्ड क्रेन, तिब्बती आर्गली तथा मध्य एशिया से आने वाले प्रवासी पक्षी।
ये सभी जीव विस्तृत घासभूमियों और खुले पठारी क्षेत्रों में पनपते हैं, जो अधिकांशतः मानव गतिविधियों से अछूते हैं।
पारिस्थितिक और सामरिक महत्व
दोनों अभयारण्यों का क्षेत्र ट्रांस–हिमालयी वन्यजीव गलियारे (Wildlife Corridor) का अभिन्न हिस्सा है, जो विभिन्न प्रजातियों के बीच आनुवंशिक संबंध (Genetic Connectivity) सुनिश्चित करता है।
भारत-चीन सीमा के निकट इनका सामरिक स्थान इन अभयारण्यों को भू–राजनीतिक महत्व भी प्रदान करता है, जहाँ संरक्षण को सीमांत सतत विकास (Sustainable Borderland Development) से जोड़ा जा रहा है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य: चांगथांग पठार का विस्तार तिब्बत तक फैला हुआ है और यह पामीर–काराकोरम–हिमालय पारिस्थितिकी प्रणाली का हिस्सा है, जो पृथ्वी के सबसे ऊँचे निरंतर पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।
संरक्षण की चुनौतियाँ
यह क्षेत्र अत्यधिक ठंड, सीमित वनस्पति और मानव–वन्यजीव संघर्षों के कारण संरक्षण के लिए चुनौतीपूर्ण है।
घरेलू पशुओं का अतिचराई (Overgrazing) और पर्यटन गतिविधियों में वृद्धि, विशेष रूप से पांगोंग त्सो और त्सो मोरीरी झीलों के आसपास, स्थानीय पारिस्थितिकी को प्रभावित कर रही हैं।
सीमा पुनर्निर्धारण प्रस्ताव का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों के आपसी जुड़ाव (Ecosystem Connectivity) को बढ़ाना और प्रबंधन दक्षता में सुधार करना है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) | 
| काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य का स्थान | काराकोरम पर्वतमाला, लद्दाख | 
| स्थापना वर्ष | 1987 | 
| काराकोरम के प्रमुख जीव | हिम तेंदुआ, हिमालयी भूरा भालू, आइबेक्स, भरल | 
| काराकोरम की प्रमुख वनस्पति | एल्पाइन वनस्पति, औषधीय पौधे | 
| चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य का स्थान | चांगथांग पठार, लेह जिला, लद्दाख | 
| चांगथांग की प्रमुख झीलें | त्सो मोरीरी, पांगोंग त्सो, त्सो कर | 
| क्षेत्र का रामसर स्थल | त्सो मोरीरी झील | 
| चांगथांग के प्रमुख जीव | हिम तेंदुआ, तिब्बती जंगली गधा, डार्क-नेक्ड क्रेन | 
| जैव-भौगोलिक क्षेत्र | ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र | 
| नवीनतम अपडेट | केंद्र सरकार को अभयारण्य सीमाओं के पुनर्निर्धारण का प्रस्ताव प्राप्त हुआ | 
 
				 
															





