2016 का सर्कुलर रद्द
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2016 के उस सर्कुलर को वापस ले लिया है, जिसने बैंकों की एकल कॉरपोरेट उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले ऋण की अधिकतम सीमा निर्धारित की थी।
इस नियम का उद्देश्य था — कुछ चुनिंदा बड़े कॉरपोरेट्स को अत्यधिक ऋण देने से उत्पन्न वित्तीय अस्थिरता के जोखिम को कम करना।
अब, आरबीआई ने यह सर्कुलर हटाते हुए लेंडिंग नियमों को सरल और विकासोन्मुख बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना 1935 में हुई थी, और यह भारत का केंद्रीय बैंक एवं मौद्रिक नीति नियंत्रक है।
2016 के नियमों की पृष्ठभूमि
2016 के दिशा-निर्देशों के तहत बैंकों को बड़े कॉरपोरेट उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले कुल ऋण पर सिस्टम-वाइड सीमा तय की गई थी:
• वित्त वर्ष 2017–18 – ₹25,000 करोड़
• वित्त वर्ष 2018–19 – ₹15,000 करोड़
• वित्त वर्ष 2019–20 से आगे – ₹10,000 करोड़
इन सीमाओं का उद्देश्य था कि यदि कोई बड़ा कॉरपोरेट डिफॉल्ट करता है, तो पूरे बैंकिंग सिस्टम पर उसका गंभीर प्रभाव न पड़े।
सर्कुलर हटाने के कारण
आरबीआई के अनुसार, 2016 के बाद से कुल बैंक क्रेडिट में कॉरपोरेट लोन का हिस्सा लगभग 10% घटा है।
इससे स्पष्ट होता है कि बैंकों ने अपने ऋण पोर्टफोलियो को विविध किया और अब वे कुछ चुनिंदा कॉरपोरेट्स पर निर्भर नहीं हैं।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि यह कदम वित्तीय स्थिरता और ऋण विस्तार के बीच संतुलन बनाते हुए नियमों के सरलीकरण के उद्देश्य से उठाया गया है।
स्थैतिक जीके टिप: आरबीआई गवर्नर का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है, जिसे आरबीआई अधिनियम, 1934 के तहत बढ़ाया जा सकता है।
लार्ज एक्सपोज़र फ्रेमवर्क (LEF) जारी रहेगा
हालाँकि सिस्टम-वाइड सीमा को हटा दिया गया है, लेकिन Large Exposure Framework (LEF) व्यक्तिगत बैंक स्तर पर जारी रहेगा।
इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत:
• किसी एक उधारकर्ता (single borrower) को बैंक का एक्सपोज़र उसकी Tier 1 पूंजी के 20% से अधिक नहीं हो सकता।
• समूह उधारकर्ताओं (group borrowers) के लिए यह सीमा Tier 1 पूंजी के 25% तक है।
इससे जोखिम प्रबंधन (Risk Management) सुनिश्चित रहेगा, जबकि बैंकों को लचीलापन (flexibility) भी मिलेगा।
भविष्य के जोखिमों का प्रबंधन
आरबीआई ने कहा है कि यदि भविष्य में सिस्टम-स्तरीय जोखिम दोबारा बढ़ते हैं, तो वह मैक्रोप्रूडेंशियल टूल्स (Macroprudential Tools) का उपयोग करेगा — जैसे:
• काउंटर-साइक्लिकल कैपिटल बफ़र (Counter-Cyclical Capital Buffer)
• सेक्टोरल लेंडिंग कैप्स (Sectoral Lending Caps)
इन उपायों से क्रेडिट ग्रोथ और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखा जा सकेगा।
बाज़ार प्रतिक्रिया और दृष्टिकोण
बैंकरों का मानना है कि इस निर्णय का तात्कालिक प्रभाव सीमित रहेगा, क्योंकि वर्तमान में कॉरपोरेट ऋण की मांग अपेक्षाकृत कम है।
बड़ी कंपनियाँ अब बॉन्ड्स और एक्सटर्नल कमर्शियल बोर्रोइंग्स (ECBs) जैसे वैकल्पिक वित्त स्रोतों पर निर्भर हैं।
हालाँकि मध्यम अवधि में, इस कदम से बैंक क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आने की उम्मीद है।
SBI Research के अनुसार, FY25 में बॉन्ड्स और ECBs से लगभग ₹30 ट्रिलियन का कॉरपोरेट वित्त जुटाया गया।
यदि इसका केवल 10–15% बैंकिंग सिस्टम में वापस आता है, तो ₹3–4.5 ट्रिलियन अतिरिक्त बैंक ऋण उत्पन्न हो सकता है।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक है, जिसकी स्थापना 1955 में हुई थी और देशभर में 22,000 से अधिक शाखाएँ हैं।
स्थैतिक उस्तादियन करंट अफेयर्स तालिका
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| नियामक संस्था | भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) |
| वापस लिया गया सर्कुलर | 2016 का सिस्टम-वाइड लेंडिंग लिमिट सर्कुलर |
| पहली सीमा (FY20 से) | ₹10,000 करोड़ |
| LEF में सिंगल बॉरोअर लिमिट | टियर 1 पूंजी का 20% |
| LEF में ग्रुप बॉरोअर लिमिट | टियर 1 पूंजी का 25% |
| सर्कुलर हटाने का कारण | कॉरपोरेट एक्सपोज़र में विविधता और घटा जोखिम |
| RBI गवर्नर | संजय मल्होत्रा |
| संभावित अतिरिक्त क्रेडिट प्रवाह | ₹3–4.5 ट्रिलियन |
| विश्लेषण स्रोत | SBI Research |
| भविष्य के जोखिम प्रबंधन उपकरण | मैक्रोप्रूडेंशियल उपाय (Macroprudential Measures) |





