राजनीतिक संवाद को रफ़्तार
गृह मंत्रालय (MHA) ने लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ वार्ताएँ शुरू की हैं और लद्दाख के लिए अनुच्छेद 371 जैसी व्यवस्था का प्रस्ताव रखा है। यह कदम हालिया हिंसक विरोध प्रदर्शनों (चार मृतकों सहित, जिनमें एक कारगिल युद्ध के दिग्गज भी थे) और राज्य के दर्जे व आदिवासी सुरक्षा की व्यापक मांगों की पृष्ठभूमि में आया है।
2019 में जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन के बाद से लद्दाख बिना विधानमंडल वाला केंद्रशासित प्रदेश है। प्रारंभिक उत्साह के बाद भूमि अधिकार, सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर असंतोष बढ़ा है।
स्थिर जीके तथ्य: अनुच्छेद 371 की व्यवस्थाएँ आज़ादी के बाद विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक–सांस्कृतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 1950 से लागू की गईं।
लेह और कारगिल की मुख्य मांगें
LAB और KDA ने एकजुट होकर ये मांगें रखी हैं:
• लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
• छठी अनुसूची के तहत आदिवासी अधिकार और भूमि संरक्षण
• गिरफ्तार कार्यकर्ताओं, जिनमें जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक शामिल हैं, की रिहाई
• प्रदर्शन के दौरान पुलिस कार्रवाई में पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति
इन मांगों में स्वशासन और भूमि अधिग्रहण/बाहरी प्रभाव से कानूनी सुरक्षा की इच्छा स्पष्ट है।
स्थिर जीके टिप: छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजातीय क्षेत्रों की परंपराओं की रक्षा के लिए बनाई गई थी।
अनुच्छेद 371 क्या है और इसके निहितार्थ
अनुच्छेद 371 का उद्देश्य कुछ राज्यों की सामाजिक–सांस्कृतिक–आर्थिक विशेषताओं की रक्षा हेतु विशेष प्रावधान देना है। यह वर्तमान में 12 राज्यों (जैसे नगालैंड, मिज़ोरम, सिक्किम, असम) पर लागू है और स्थानीय प्रशासन में कुछ लचीलापन देता है।
हालाँकि कार्यकर्ताओं का तर्क है कि अनुच्छेद 371, छठी अनुसूची जैसी विधायी स्वायत्तता नहीं देता, जहाँ स्वायत्त जिला परिषदों को भूमि, वनों और सामुदायिक कानूनों पर व्यापक अधिकार मिलते हैं।
स्थिर जीके तथ्य: अनुच्छेद 371(ए) नगालैंड की प्रथागत क़ानून–भूमि स्वामित्व को केंद्र के हस्तक्षेप से विशेष सुरक्षा देता है।
छठी अनुसूची बनाम अनुच्छेद 371
सरकारी प्रस्ताव ने एक संवैधानिक बहस को जन्म दिया है। अनुच्छेद 244 के तहत बनी छठी अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों के लिए मज़बूत सुरक्षा मानी जाती है—यह अधिक विकेन्द्रीकरण सुनिश्चित करती है, जिससे समुदाय संसाधनों का प्रबंधन और अपने नियम बना सकें।
इसके विपरीत अनुच्छेद 371 सांस्कृतिक–प्रशासनिक लचीलापन तो देता है, पर प्रमुख शक्तियाँ संघ सरकार के पास बनी रहती हैं। लद्दाख का नेतृत्व मानता है कि विधायी स्वायत्तता के बिना, क्षेत्र की जनजातीय–पर्यावरणीय विशिष्टता असुरक्षित रह सकती है।
आगे की राह
केंद्र का प्रस्ताव रुख़ में बदलाव दर्शाता है, पर लद्दाख नेतृत्व राज्य के दर्जे + छठी अनुसूची की दोहरी मांग पर अडिग है। संवैधानिक प्रावधानों और स्थानीय आकांक्षाओं के संतुलन से ही इस रणनीतिक हिमालयी क्षेत्र में शांति और भरोसा कायम रह सकेगा।
स्थिर जीके टिप: लद्दाख की सीमाएँ चीन (अक्साई चिन) और पाकिस्तान (गिलगित–बाल्टिस्तान) से लगती हैं, इसलिए यह भारत का संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र है।
स्थिर उस्तादियन करेंट अफेयर्स तालिका
| विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
| संबंधित मंत्रालय | गृह मंत्रालय (MHA) |
| स्थानीय निकाय | लेह एपेक्स बॉडी (LAB), कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) |
| मुख्य मांग | राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची |
| सरकारी प्रस्ताव | अनुच्छेद 371 जैसी विशेष व्यवस्था |
| अनुच्छेद 371 के तहत राज्य | 12 राज्य (जैसे नगालैंड, मिज़ोरम, असम, सिक्किम) |
| छठी अनुसूची लागू क्षेत्र | असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिज़ोरम |
| मुख्य कार्यकर्ता | सोनम वांगचुक |
| जे&के पुनर्गठन का वर्ष | 2019 |
| विरोध का कारण | भूमि, रोजगार और सांस्कृतिक सुरक्षा का अभाव |
| रणनीतिक महत्त्व | चीन–पाकिस्तान से सटी सीमाएँ; संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र |





