थेरीझंधूर में खोज
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India – ASI) ने हाल ही में तमिलनाडु के मयिलादुथुरै जिले के थेरीझंधूर स्थित ऐतिहासिक वेदपुरीश्वरर शिव मंदिर में चोल कालीन 10 अभिलेखों (Inscriptions) का दस्तावेजीकरण किया है।
ये अभिलेख मंदिर प्रशासन, राजकीय अनुदान, और स्थानीय शासन प्रणाली पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जो चोल राजवंश के शासनकाल की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को दर्शाते हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्थापना 1861 में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने की थी, जिन्हें “भारतीय पुरातत्व के जनक (Father of Indian Archaeology)” कहा जाता है।
कुलोत्तुंग चोल I के अभिलेख
दो महत्वपूर्ण अभिलेख कुलोत्तुंग चोल I (1070–1122 ईस्वी) के 34वें और 44वें शासन वर्ष से संबंधित हैं।
इनमें ब्राह्मणों को मंदिर में दीप प्रज्वलन के लिए पाँच स्वर्ण मुद्राएँ (Gold Coins) दान में देने का उल्लेख है।
यह चोल काल के धार्मिक अनुदान (Religious Endowments) और अनुष्ठानिक निरंतरता (Ritual Continuity) पर दिए गए महत्व को दर्शाता है।
ऐसे अभिलेख आमतौर पर दाता (Donor), उपहार का स्वरूप, और इसके उपयोग की शर्तों का भी विवरण देते हैं।
स्थैतिक जीके टिप: चोल काल के शिलालेखों में “वट्टेलुट्टु” और “ग्रन्था” लिपियों का प्रयोग प्रमुख रूप से किया जाता था।
कुलोत्तुंग चोल III के शासनकाल की जानकारी
एक अन्य समूह के अभिलेख कुलोत्तुंग चोल III (1178–1218 ईस्वी) के शासनकाल से संबंधित हैं, जो चोल वंश के सबसे लंबे शासनकाल वाले राजाओं में से एक थे।
इन अभिलेखों में “तिरुमंजनम्” (पवित्र स्नान अनुष्ठान) के लिए दान का उल्लेख है, साथ ही उन व्यक्तियों पर लगाए गए दंड का भी उल्लेख है जो मंदिर दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहे।
यह दिखाता है कि धार्मिक संस्थानों में भी प्रशासनिक अनुशासन (Administrative Discipline) और कानूनी नियंत्रण (Legal Enforcement) चोल शासन में कितना सशक्त था।
स्थैतिक जीके तथ्य: कुलोत्तुंग चोल III के काल में त्रिभुवनम का कम्पहेस्वरर मंदिर (Kampaheswarar Temple) जैसे भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ — जो चोल स्थापत्य कला के उत्कर्ष काल का प्रतीक है।
राजराजा II के योगदान
राजराजा II (1146–1173 ईस्वी) के शासनकाल से प्राप्त एक अभिलेख में नुंदविलक्कु (अनंत दीप) के लिए दान का उल्लेख है, जो आध्यात्मिक निरंतरता का प्रतीक (Symbol of Eternal Light) है।
यह बताता है कि लगातार पीढ़ियों तक चोल शासकों ने मंदिर संरक्षण को राज्य नीति (State Policy) का हिस्सा बनाए रखा।
स्थैतिक जीके टिप: राजराजा II, विक्रम चोल के पौत्र थे और उन्होंने अपने पूर्वजों द्वारा प्रारंभ किए गए कई स्थापत्य प्रकल्पों को पूर्ण किया।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
थेरीझंधूर की यह खोज तमिलनाडु की समृद्ध शिलालेखीय विरासत (Epigraphical Heritage) को उजागर करती है।
मंदिरों की दीवारें केवल पूजा स्थलों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि राजाज्ञाओं, आर्थिक लेनदेन और सामाजिक प्रथाओं का ऐतिहासिक संग्रह (Historical Archive) भी थीं।
ये अभिलेख यह भी दर्शाते हैं कि मंदिर संस्थाएँ उस काल में शिक्षा, दान और स्थानीय शासन के केंद्र (Centers of Learning, Charity & Governance) के रूप में कार्य करती थीं।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारत के कुल अभिलेखों में से लगभग 60% तमिलनाडु में पाए जाते हैं — जिनमें अधिकांश चोल, पांड्य और विजयनगर काल से संबंधित हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय (Topic) | विवरण (Detail) |
खोज का स्थान | वेदपुरीश्वरर मंदिर, थेरीझंधूर, मयिलादुथुरै जिला |
कुल अभिलेखों की संख्या | 10 |
उल्लेखित शासक | कुलोत्तुंग चोल I, कुलोत्तुंग चोल III, राजराजा II |
प्रमुख दान | दीप प्रज्वलन हेतु पाँच स्वर्ण मुद्राएँ |
उल्लेखित अनुष्ठान | तिरुमंजनम् (पवित्र स्नान), नुंदविलक्कु (अनंत दीप) |
कालावधि | 11वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी |
राजवंश | चोल वंश |
भाषा/लिपि | तमिल (वट्टेलुट्टु/ग्रन्था) |
संस्था | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) |
व्यापक महत्व | मंदिर आधारित प्रशासन और चोल सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाता है |