छठी अनुसूची की पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों के लिए बनाई गई है। यह मुख्यतः असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को कवर करती है। इसका प्रमुख उद्देश्य जनजातीय समुदायों के अधिकारों, संस्कृति और विकास की रक्षा करना है।
स्थैतिक तथ्य: छठी अनुसूची 1950 में संविधान में जोड़ी गई थी, ताकि जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता और आत्म-शासन मिल सके।
संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत राज्यपाल स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (ARCs) बना सकते हैं। इन निकायों को स्थानीय शासन चलाने और जनजातीय रीति-रिवाजों को संरक्षित रखने का अधिकार है।
स्थैतिक टिप: ADCs जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों में प्रशासनिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं।
ADCs और ARCs की भूमिका
स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs) ऐसे ज़िलों में बनाई जाती हैं जहाँ किसी एक जनजाति की बहुसंख्या होती है। इन्हें भूमि स्वामित्व, वनों का प्रबंधन, संपत्ति का उत्तराधिकार और विवाह परंपराओं जैसे मामलों में विधायी, कार्यकारी, न्यायिक और वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं।
स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (ARCs) उन ज़िलों में बनाई जाती हैं जहाँ अनेक अनुसूचित जनजातियाँ रहती हैं। इनका उद्देश्य विभिन्न जनजातीय समूहों के बीच समन्वय स्थापित करना और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना होता है।
स्थैतिक तथ्य: 2025 तक पूर्वोत्तर भारत में कुल 10 ADCs कार्यरत हैं, जिनमें मेघालय और मिजोरम शामिल हैं।
लद्दाख में हाल के विकास
लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में हाल ही में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग को लेकर आंदोलन हिंसक हो गया। स्थानीय जनजातीय समूहों का कहना है कि छठी अनुसूची के अंतर्गत मान्यता मिलने पर भूमि, वन संसाधनों और सांस्कृतिक प्रथाओं पर उनका अधिक नियंत्रण होगा।
प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि छठी अनुसूची को पूर्वोत्तर के बाहर लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं। यह विवाद राजनीतिक प्रतिनिधित्व, संसाधन प्रबंधन और जनजातीय पहचान की सुरक्षा जैसे बड़े मुद्दों को भी सामने लाता है।
स्थैतिक टिप: लद्दाख 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बना, जिसके बाद से अधिक स्वायत्तता की माँग बढ़ गई।
छठी अनुसूची का महत्व
छठी अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों में आत्म-शासन सुनिश्चित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह समुदायों को स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन करने, विवादों को सुलझाने और सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थानों को बनाए रखने का अधिकार देती है। विधायी और न्यायिक शक्तियाँ मिलने से यह स्थानीय लोकतंत्र को मज़बूत करती है और राज्य सरकारों पर निर्भरता घटाती है।
स्थैतिक तथ्य: स्वायत्त परिषदों को भूमि और वन उपज पर कर लगाने का अधिकार है, जिससे वे विकास कार्यों के लिए वित्त जुटाती हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
छठी अनुसूची | अनुच्छेद 244(2) और 275(1) के तहत जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान |
कवरेज | असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम |
परिषदें | स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (ARCs) |
शक्तियाँ | भूमि, वन, उत्तराधिकार, विवाह आदि पर विधायी, कार्यकारी, न्यायिक, वित्तीय अधिकार |
ARCs | बहु-जनजातीय ज़िलों में गठित |
हाल की समस्या | लद्दाख में छठी अनुसूची की मान्यता और राज्य का दर्जा माँगते हुए आंदोलन |
UT स्थिति | लद्दाख 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बना |
ADCs की संख्या | पूर्वोत्तर राज्यों में 10 ADCs |
उद्देश्य | जनजातीय अधिकारों की रक्षा और आत्म-शासन सुनिश्चित करना |
महत्व | स्थानीय स्वायत्तता, संसाधन प्रबंधन और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देना |