सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि यदि कोई महिला पति के साथ नहीं रह रही है, तो भी वह भरण–पोषण की हकदार है, भले ही अदालत ने सहवास बहाली (Restitution of Conjugal Rights) का आदेश दिया हो।
यह निर्णय महिला की मानव गरिमा और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है, न कि केवल कानूनी प्रक्रिया की कठोरता को।
कानून की व्याख्या: धारा 9 बनाम धारा 125
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9: यदि कोई पति/पत्नी बिना उचित कारण के अलग रह रहा है, तो दूसरा पक्ष अदालत से सहवास का आदेश प्राप्त कर सकता है।
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (CrPC): यदि महिला के पास स्वतंत्र आय नहीं है, तो वह अपने पति से भरण–पोषण की मांग कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण–पोषण का अधिकार पूरी तरह स्वतंत्र है, और यह इस पर निर्भर नहीं करता कि महिला धारा 9 के आदेश का पालन करती है या नहीं।
यह मामला कैसे शुरू हुआ?
- 2015: महिला ने पति को छोड़ दिया।
- 2018: पति ने सहवास बहाली (Sec 9) की याचिका दायर की।
- 2019: महिला ने भरण-पोषण की मांग की।
- 2022: अदालत ने महिला को पति के पास लौटने का आदेश दिया।
- महिला ने इनकार किया, फिर भी ₹10,000 प्रतिमाह भरण–पोषण मिला।
- पति ने चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि हर मामला उसकी व्यक्तिगत परिस्थिति के आधार पर देखा जाना चाहिए, खासकर जहां महिला की सुरक्षा, मानसिक स्थिति और आर्थिक निर्भरता का प्रश्न हो।
निर्णय का वास्तविक प्रभाव
यह फैसला महिलाओं को आर्थिक दबाव से बचाता है, विशेष रूप से उन महिलाओं को जो उत्पीड़नपूर्ण या अपमानजनक विवाह से अलग रह रही हैं।
अब महिलाओं को या तो अपमान सहने या भूखे रहने की मजबूरी नहीं होगी। यदि महिला मानसिक प्रताड़ना के कारण अलग रह रही है, तो भी वह किराया, भोजन और बच्चों का खर्च उठा सकेंगी।
यह फैसला महिला की गरिमा और निजता (पुट्टास्वामी फैसला, 2017) के सिद्धांतों पर आधारित है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान (GK) स्नैपशॉट – प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु
विषय | विवरण |
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 | वैवाहिक सहवास की बहाली (Restitution of Conjugal Rights) |
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 | महिला के लिए भरण-पोषण का कानूनी अधिकार |
सुप्रीम कोर्ट का फैसला | भरण-पोषण का अधिकार सहवास आदेश की पालना पर निर्भर नहीं |
संदर्भित ऐतिहासिक फैसला | पुट्टास्वामी बनाम भारत (2017) – निजता मौलिक अधिकार है |
भरण-पोषण की शर्त | महिला की आवश्यकता और पति की क्षमता पर आधारित |
सुप्रीम कोर्ट निर्णय वर्ष | 2025 |