परिचय
पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) ने ग्लैंडर्स पर संशोधित राष्ट्रीय कार्ययोजना 2025 जारी की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सख़्त रोग नियंत्रण, बेहतर निगरानी और अंततः ग्लैंडर्स का उन्मूलन है। यह ज़ूनोटिक खतरा अश्व प्रजातियों के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह ढाँचा वन हेल्थ सुरक्षा और पशुधन अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
रोग का स्वरूप
ग्लैंडर्स का कारण बैक्टीरिया Burkholderia mallei है। यह मुख्य रूप से घोड़ों, खच्चरों और गधों को प्रभावित करता है, लेकिन यह मनुष्यों में भी फैल सकता है। संक्रमण संक्रमित स्राव, चारे, पानी या उपकरणों के माध्यम से होता है। बिना इलाज के मृत्यु दर बहुत अधिक होती है।
यह रोग PCICDA अधिनियम 2009 के तहत अधिसूचित है। वैश्विक स्तर पर यह अधिकतर देशों से समाप्त हो चुका है, लेकिन एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में कभी-कभार प्रकोप होते हैं।
स्थिर जीके तथ्य: PCICDA अधिनियम 2009 केंद्र सरकार को अनिवार्य रोग रिपोर्टिंग और राज्यों में नियंत्रण उपाय लागू करने का अधिकार देता है।
संशोधित ज़ोनिंग उपाय
योजना के तहत संक्रमित क्षेत्र की त्रिज्या 5 किमी से घटाकर 2 किमी कर दी गई है। निगरानी क्षेत्र को 5–25 किमी से घटाकर 2–10 किमी तक सीमित किया गया है। संक्रमित क्षेत्रों के चारों ओर 10 किमी तक पशु आवाजाही पर प्रतिबंध रहेगा, जिससे नियंत्रण केंद्रित होगा और असंबंधित क्षेत्रों में व्यवधान से बचा जा सकेगा।
मज़बूत निगरानी
संशोधित रणनीति के तहत उच्च जोखिम और स्थानिक क्षेत्रों में नियमित परीक्षण अनिवार्य किया गया है। इसमें उन्नत डायग्नोस्टिक उपकरण और फील्ड निरीक्षण शामिल हैं ताकि शीघ्र पहचान और समय पर रिपोर्टिंग हो सके।
स्थिर जीके तथ्य: भारत एशिया में सबसे बड़े गधा जनसंख्या वाले देशों में है, जो मुख्यतः परिवहन और कृषि से जुड़े कार्यों में उपयोग होते हैं।
क्वारंटीन और गतिशीलता नियम
संक्रमित क्षेत्रों में कड़ी क्वारंटीन व्यवस्था लागू होगी। इन क्षेत्रों से बाहर अश्व प्रजातियों की कोई भी आवाजाही केवल प्रमाणित अनुमति से ही संभव होगी। ये नियम विशेष रूप से पशु मेलों, धार्मिक यात्राओं और अंतरराज्यीय व्यापार मार्गों पर लागू होंगे।
त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली
योजना में मानक संचालन प्रक्रिया (SOPs) निर्धारित की गई है ताकि सकारात्मक मामलों को तुरंत अलग-थलग कर नियंत्रित किया जा सके। पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार को प्राथमिकता दी गई है और राज्य पशु चिकित्सा प्राधिकरणों को त्वरित कार्रवाई का दायित्व सौंपा गया है।
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण
पशु चिकित्सकों, पैरावेट और ज़मीनी स्तर के कर्मचारियों को लक्षण पहचान, जैवसुरक्षा और केस प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह क्षमता निर्माण एकरूप प्रोटोकॉल कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा।
जागरूकता और सामुदायिक भूमिका
घोड़ा पालकों, प्रजनकों और स्थानीय समुदायों में जागरूकता अभियान चलाए जाएँगे ताकि वे समय पर रोग की रिपोर्टिंग करें और सहयोग दें। सामुदायिक भागीदारी को रोग के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण माना गया है।
अनुसंधान और प्रयोगशालाओं की भूमिका
योजना में ICAR–राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE), हिसार के साथ सहयोग को मज़बूत किया गया है। ध्यान डायग्नोस्टिक नवाचार, महामारी विज्ञान अनुसंधान और डेटा–आधारित नीतियों पर रहेगा। इससे तैयारी और नियंत्रण दोनों में सुधार होगा।
स्थिर जीके टिप: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की स्थापना 1929 में हुई थी और यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| संशोधित योजना का वर्ष | 2025 |
| कार्यान्वयन प्राधिकरण | पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) |
| रोग | ग्लैंडर्स |
| रोग कारक | Burkholderia mallei |
| प्रभावित प्रजातियाँ | घोड़े, खच्चर, गधे (मानव में जूनोटिक जोखिम) |
| शासक अधिनियम | PCICDA अधिनियम, 2009 |
| संक्रमित क्षेत्र त्रिज्या | 5 किमी से घटाकर 2 किमी |
| निगरानी क्षेत्र | 2–10 किमी |
| अनुसंधान संस्थान साझेदार | ICAR–राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE), हिसार |
| वैश्विक स्थिति | अधिकतर देशों में समाप्त, एशिया-अफ्रीका-मध्यपूर्व में छिटपुट मामले |





